किसी को मिल रहा सम्मान तो कोई संघर्ष से बना रहा पहचान

 राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद राष्ट्रीय खेल दिवस के मौके पर शनिवार को ऑनलाइन समारोह में महिला हॉकी खिलाड़ी रानी रामपाल, टेबल टेनिस खिलाड़ी मनिका बत्र और पैरालंपियन मरियप्पन थंगावेलु को देश के सबसे बड़े खेल सम्मान खेल रत्न से सम्मानित करेंगे। क्रिकेटर रोहित शर्मा आइपीएल के लिए दुबई में होने व महिला पहलवान विनेश फोगाट कोरोना होने की वजह से भाग नहीं लेंगे। इस बार 27 खिलाड़ी अजरुन पुरस्कार से सम्मानित होंगे।

कोरोना महामारी की वजह से यह समारोह पहली बार ऑनलाइन हो रहा है। देश के सबसे बड़े हॉकी खिलाड़ी मेजर ध्यानचंद के जन्मदिवस पर खेल दिवस मनाया जाता है। कार्यक्रम में सिर्फ 60 पुरस्कार विजेता ही मौजूद रहेंगे। 14 विजेता अलग-अलग कारणों से शिरकत नहीं करेंगे। खेल दिवस के मौके पर दैनिक जागरण कुछ ऐसी महिला खिलाड़ियों के बारे में बता रहा है जो विपरीत हालात में भी अपने दम पर आगे बढ़ रही हैं। उनका हौसला और हिम्मत उन्हें हर चुनौती से पार पाने की प्रेरणा दे रहा है।

सुलभ शौचालय में रहकर जीत

कपीश दुबे,  इंदौर (नईदुनिया)। सुलभ शौचालय में रहकर देश के लिए एशियन चैंपियनशिप में पदक जीतने वाली मध्य प्रदेश के इंदौर शहर की जूही झा बीते दो साल से नौकरी के लिए सरकारी दफ्तरों के चक्कर काट रही है। सरकारी नियमों के तहत विक्रम पुरस्कार विजेताओं को शासकीय नौकरी मिलती है, लेकिन जूही को नहीं मिली। 28 अगस्त को प्रदेश सरकार ने नए खेल अवॉर्ड विजेताओं के नामों की घोषणा कर दी, लेकिन पुरानों की सुध नहीं ली। जाहिर है, जूही इससे निराशा में डूब रही है।

जूही का परिवार शहर के एक सुलभ शौचालय में रहता था क्योंकि पिता सुबोध कुमार झा की यहीं पर नौकरी थी। एक छोटे से कमरे में पांच लोगों का परिवार 10 साल से ज्यादा समय तक रहा। मां रानी देवी झा सिलाई करके घर में मदद करती थीं। खो-खो खिलाड़ी जूही बताती हैं, खराब लगता था कि हम सुलभ शौचालय में रहते हैं, लेकिन गरीबी के कारण लाचार थे। मैं एक निजी स्कूल में स्पोर्ट्स टीचर बनी। 2016 में एशियन चैंपियनशिप में भारतीय टीम का प्रतिनिधित्व करते हुए स्वर्ण पदक जीता। 2018 में विक्रम पुरस्कार की घोषणा हुई। नियमानुसार विक्रम अवॉर्ड विजेता को शासकीय नौकरी मिलती है। स्कूल को लगा कि सरकारी नौकरी मिलने पर मैं बीच सत्र में चली जाऊंगी तो उन्होंने भी नौकरी से हटा दिया। इधर, सरकारी नौकरी मिली नहीं, उधर निजी स्कूल की नौकरी भी छिन गई। तब से मैं लगातार सरकारी दफ्तरों के चक्कर काट रही हूं। इस बीच प्रदेश में तीन बार सरकारें बदल गईं। मुङो उम्मीद थी कि नए पुरस्कारों की घोषणा के साथ पुराने पुरस्कार प्राप्त खिलाड़ियों के लिए भी नौकरी की घोषणा होगी, लेकिन ऐसा नहीं हुआ। मप्र खेल विभाग के संयुक्त संचालक बीएस यादव ने खिलाड़ियों की नौकरी के विषय में पूछने पर कहा, अभी समिति की बैठक होनी है। नौकरी का मामला सचिवालय से तय होगा। इसलिए अभी हम कुछ नहीं बता सकते हैं।

कपड़े सिलने को मजबूर दिव्यांग तीरंदाज पूजा कुमारी

पुष्पेंद्र कुमार, पूर्वी दिल्ली। सामान्य कद काठी वाली दिव्यांग पूजा कुमारी को देखकर सहसा विश्वास नहीं होता कि वह इतने दर्द, तड़प, उलाहना सहकर आगे बढ़ी होंगी। लंबे संघर्ष के बाद पूजा ने आज हर उस कार्य को करने में महारत हासिल कर ली, जो एक सामान्य व्यक्ति के लिए भी मुश्किल है। खेल जुनून के आगे उन्होंने कभी आíथक व शारीरिक चुनौतियों को सामने नहीं आने दिया। ओलंपिक में पदक हासिल करने का जुनून ऐसा है कि घर के पास मैदान में कोरोना महामारी के बीच शारीरिक दूरी का पालन कर कड़ी धूप में पसीना बहाकर तीरंदाजी का अभ्यास कर रही हैं। उनका जीवन का लक्ष्य बस यही है कि भारत के लिए ओलंपिक में पदक हासिल करना है।

32 वर्षीय पूजा का परिवार त्रिलोकपुरी में रहता है। पिता विश्वनाथ दर्जी का काम करते थे। उम्र ज्यादा होने के कारण उन्होंने काम छोड़ दिया। भाई संतोष किसी निजी कंपनी में काम करते हैं। घर के पालन पोषण में पूजा घर पर ही कपड़ों की सिलाई कर भाई का हाथ बटा रही है। वह सुबह आठ बजे से लेकर शाम चार बजे तक यमुना स्पोर्ट्स कांप्लेक्स के तीरंदाजी केंद्र में तीरंदाजी का अभ्यास करती हैं फिर शाम को घर पर आने के बाद ऑर्डर पर आए कपड़ों की सिलाई करती है। पूजा इंदिरा गांधी नेशनल ओपन यूनिवर्सटिी (इग्नू) से एमए की पढ़ाई कर रही हैं। उन्होंने तीन साल पहले तीरंदाजी में हाथ अजमाया और पैरा राष्ट्रीय तीरंदाजी प्रतियोगिता 2019 में स्वर्ण पदक जीत लिया। पूजा ने दैनिक जागरण से कहा कि मेरा सपना ओलंपिक में पदक जीतना हैं। माता-पिता भी खुश हैं। बेटी अपने बूते आगे बढ़ रही है। सपने देख रही है और पूरे भी कर रही है।

जीत चुकी हैं कई पदक: पूजा बताती हैं कि हरियाणा में आयोजित पैरा राष्ट्रीय तीरंदाजी प्रतियोगिता 2019 में टीम दिल्ली के लिए दो स्वर्ण पदक अपने नाम किए। हैदराबाद में आयोजित पैरा राष्ट्रीय प्रतियोगिता 2017 तीन रजत पदक हासिल किया।

विजय गाहल्याण, पानीपत। आपको चक दे इंडिया फिल्म याद होगी। तमाम कठिनाइयों के बीच कोच कबीर खान अपनी टीम को स्वर्ण पदक जिताकर लौटते हैं। ऐसी ही कहानी है यहां के रियाज व उनकी दो बेटियों की। होम गार्ड विभाग पानीपत में कंप्यूटर ऑपरेटर सोनीपत की कृष्णा कॉलोनी के रियाज सैफी हॉकी की राष्ट्रीय चैंपियन बेटियों के पिता हैं। समाज में अब उनका रुतबा है। खेल में आगे बढ़ाने के कारण वह बेटियों के प्रेरणास्रोत भी हैं। इन्होंने 14 साल पहले बड़ी बेटी इकरा सैफी और छोटी बेटी उमरा को हॉकी थमाई। समाज के लोगों ने साथ नहीं दिया। कहा कि बेटियां घरों से बाहर कम कपड़ों में खेलेंगी तो बदनामी होगी। समाज की प्रतिष्ठा पर ठेस पहुंचेगी। रियाज ने किसी की परवाह नहीं की और आíथक तंगी से जूझते हुए भी बेटियों के सपने को जिंदा रखा। इकरा परिवार की पहली महिला है जो फौज में भर्ती हुई हैं। उमरा राष्ट्रीय हॉकी अकादमी में हैं। इकरा सेंटर हाफ और उमरा फॉरवर्ड खेलती हैं।

कोच प्रीतम ने प्रतिभा को निखारा: इकरा और उमरा ने भारतीय हॉकी टीम की कप्तान व अर्जुन अवॉर्डी प्रीतम सिवाच की सोनीपत इंडस्टियल एरिया स्थित हॉकी अकादमी में अभ्यास किया। प्रीतम ने न सिर्फ दोनों की प्रतिभा को निखारा, बल्कि हर कदम पर साथ दिया। खेल सामान मुहैया कराया और चैंपियन खिलाड़ी बना दिया।

इकरा एसएसबी में सिपाही, उमरा हैं राष्ट्रीय चैंपियन: इकरा ने वर्ष 2011 से लगातार राज्यस्तरीय हॉकी प्रतियोगिता में पदक जीते। 2016 में जूनियर राष्ट्रीय हॉकी प्रतियोगिता में स्वर्ण पदक जीता। यहीं से उनकी किस्मत चमकी। लखनऊ एसएसबी (शस्त्र सुरक्षा बल) में खेल कोटे से सिपाही के रूप में भर्ती हो गईं। उमरा ने भी राज्य स्तरीय प्रतियोगिताओं में पांच पदक, खेलो इंडिया व ऑल इंडिया यूनिवर्सिटी खेलो इंडिया प्रतियोगिता में कांस्य पदक जीता। राष्ट्रीय हॉकी अकादमी दिल्ली में चयनित भी हुईं।

 

Powered by themekiller.com anime4online.com animextoon.com apk4phone.com tengag.com moviekillers.com