पुरुषो में सेक्स शक्ति बढ़ाने की बात तो आम थी किन्तु अब महिलाये भी यौन शक्ति बढ़ाने जैसी दवाइयों की मांग कर रही है जिससे की उन्हें भी यौन सम्बन्ध की परेशानियों से छुटकारा मिले उनका कहना है की जिस तरह से पुरुषो में यौन समस्या की शिकायत होती है उसी तरह महिलाओ में भी यौन सम्बन्ध के समय आनंद की कमी शिकायत होती है तो क्या यौन इच्छा रखना मानवाधिकार है? क्या कोई महिला एक गुलाबी दवा खाकर अपनी यौन इच्छा को बढ़ा नहीं सकती? महिलाओं के वियाग्रा की मांग को लेकर कुछ इसी किस्म के सवाल इन दिनों अमेरिका में पूछे जा रहे हैं. दरअसल, अमेरिका में इन दिनों फूड एंड ड्रग एडमिस्ट्रेशन के पास ऑनलाइन पिटिशन भेजी गई है, जिसमें महिलाओं की यौन इच्छा को बढ़ाने वाली दवाओं की अनुमति की मांग की गई है.
इस पिटिशन पर 40 हजार से अधिक लोगों ने साइन किया है. एफडीए इस बिल को दो बार ठुकरा चुका है. एफडीए की दलील थी कि इस दवा से अनिद्रा, थकान जैसी कई शिकायतें होती हैं. हालांकि इस मुहीम के बाद एफडीए ने इस बिल पर दोबारा विचार करने का आश्वासन दिया है. एफडीए के प्रवक्ता ने कहा, ‘हम किसी किस्म के लैंगिग भेदभाव की बात का खंडन करते हैं.’ अमेरिका में महिलाओं के यौन इच्छा बढ़ाने वाली दवाओं की मांग कोई नई नहीं है. महिलाओं के लिए वियाग्रा का पहला परीक्षण 2004 में हुआ था.
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इसी साल एफडीए ने एक एडवाइजरी जारी कर इसके खिलाफ प्रस्ताव पारित किया था. इसके बाद भी वियाग्रा पर परीक्षण चलता रहा. क्या कुछ किया गया इसी तरह 2011 में महिलाओं में उत्तेजना बढ़ाने के लिए एक जेल बनाई गई, लेकिन लैब परीक्षण में यह भी तय मानकों पर खरा नहीं उतरा. इसके बाद से ही महिलाओं में उत्तेजना बढ़ाने की दवाओं का मामला ठंडे बस्ते में चला गया.
इसके बाद महिलाओं से जुड़े कुछ संस्थाओं ने जिसमें राष्ट्रीय महिला नेटवर्क भी शामिल है. इस अभियान का नाम हिसाब बराबर रखा गया है. इन संस्थाओं का कहना है कि सेक्स में सिर्फ मर्दों की सुविधा का ख्याल क्यों रखा जाए. जिस तरह की समस्या उन्हें होती है वह महिलाओं को भी होती है. हम बाजार के इस एकाधिकार और महिलाविरोधी रवैये को बदलना चाहते हैं.
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