यह आर्थिक सुधार की दिशा में बड़ा कदम था। इसके बाद इसके अगले चरण की शुरुआत होनी है, लेकिन मौजूदा केन्द्र सरकार इसका मूलभूत नहीं समझ पाई। केन्द्र सरकार को यह भी नहीं पता कि जीएसटी को लागू करने के बाद इसके आगे क्या करना है?
पूर्व केन्द्रीय मंत्री ने जीएसटी 5,12,18 और 28 प्रतिशत की दरों पर कहा कि यह सरकार की नासमझी का ही नतीजा है। उन्होंने कहा कि अर्थशास्त्र को लेकर पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह की समझ को आप कहीं से कमतर नहीं आंक सकते। आर्थिक विकास को लेकर जो टीम उनके समय में थी, जिस तरह की समझ से आर्थिक कदम उठाए जा रहे थे, वह मार्केबल रहा है।
चिदंबरम ने कहा कि उन्होंने कभी जीएसटी की आलोचना नहीं की। यह एक अच्छा कदम है। वह इसे आज कहते हैं, लेकिन जिस तरह से केन्द्र सरकार ने इसे जुलाई 2017 से लागू किया, उस तरीके में खामी है। ऐसा इसलिए हुआ क्योंकि अर्थव्यस्था से जुड़े बारीक पहलुओं को केन्द्र सरकार नहीं समझ पाई।
लोगों को रखनी चाहिए समझ
पी चिदंबरम ने कहा कि मौजूदा समय में लोगों की बहुत कम संख्या अर्थशास्त्र की समझ रखती है। जबकि आम जनता को इसके मूलभूत के बारे में जानकारी होनी चाहिए। लोग देश का हिस्सा है और अर्थशास्त्र देश की शासन प्रक्रिया, व्यवहार, प्रशासन का महत्वपूर्ण अंग है।
चिदंबरम के लेख इन दिनों हिन्दी अखबार में रुपांतरण करके छप रहे हैं। उन्हें इन लेखों के बारे में भी अच्छी प्रतिक्रिया मिल रही है। पूर्व वित्तमंत्री के अनुसार अर्थशास्त्र, इसकी शिक्षा तथा जागरुकता के मामले में अभी काफी कुछ किए जाने की जरूरत है।
आगे भी अच्छे दिन के आसार कम
भाजपा चुनाव भले जीत जाए, लेकिन अर्थ व्यवस्था के क्षेत्र में अभी अच्छे दिन आने की संभावना काफी दूर है। पूर्व वित्तमंत्री का कहना है कि जिस तरह से विश्व अर्थ व्यवस्था, बाजार और बदलाव का दौर चल रहा है उसे केन्द्र में रखकर भारतीय परिप्रेक्ष्य में सरकार के वित्त मंत्री सही दिशा में कदम नहीं उठा रहे हैं। यह समय आर्थिक सुधार को आगे बढ़ाने का है, लेकिन इसके लिए जरूरी है कि उसे समझने तथा सभी अवयवों पर विचार करके उसको संतुलित तरीके से आगे बढ़ाने की भी जानकारी हो।