भारतीय रिजर्व बैंक की मौद्रिक नीति समिति ने रेपो रेट में एक बार फिर कोई बदलाव नहीं किया है. इसका मतलब है कि इस बार भी आम लोगों का सस्ते कर्ज के लिए इंतजार खत्म् नहीं हुआ है.
आरबीआई ने रेपो रेट को 6 फीसदी पर बरकरार रखा है. इसके बाद सस्ते कर्ज के लिए आम आदमी को फरवरी तक इंतजार करना पड़ेगा. इससे पहले अक्टूबर में भी आरबीआई की मौद्रिक समिति ने रेपो रेट में कोई कटौती नहीं की थी. है. अक्टूबर में भी इसे 6 फीसदी ही रखा गया था.
एमपीसी की तरफ से रेपो रेट में कटौती न किए जाने के लिए महंगाई को जिम्मेदार बताया है. एमपीसीस ने कहा है कि महंगाई को 4 फीसदी के दायरे में बांधे रखने के लिए और ग्रोथ को सपोर्ट करने के लिए यह फैसला लिया है. इसी वजह से नीतिगत दरों में कोई बदलाव न करने का फैसला लिया गया है.
विकास दर के अनुमान में भी नहीं किया बदलाव
आरबीआई ने अर्थव्यवस्था की विकास दर के अनुमान में भी इस बार कोई बदलाव नहीं किया है. इसे 6.7 फीसदी पर ही रखा गया है. बता दें कि पिछली मौद्रिक नीति समिति की बैठक में विकास दर को 7.3 फीसदी से घटाकर 6.7 फीसदी कर दिया गया था. आरबीआई ने अगस्त में ही 7.3 फीसदी का अनुमान जारी किया था.
बदला महंगाई का अनुमानआरबीआई ने महंगाई के अनुमान में बदलाव कर दिया है. उसने कहा है कि दिसंबर और मार्च की तिमाही में महंगाई 4.3 से 4.7 फीसदी के बची रहेगी. कर दिया है. अक्टूबर की मीटिंग में एमपीसी ने इसे 4.2 से 4.6 की रेंज में रहने का अनुमान लगाया था.
आरबीआई ने कहा कि हाल के दिनों में सब्जियों के दाम में काफी बढ़ोत्तरी हुई है. हालांकि आने वाले वक्त में इससे थोड़ी राहत मिलने की उम्मीद है. दालों की कीमत भी कम होने लगी हैं. जीएसटी परिषद ने भी कई उत्पादों के रेट घटाकर कम कर दिया है. इन सबका फायदा आने वाले दिनों में महंगाई कम होने के तौर पर मिल सकता है.
सस्ते कर्ज का इंतजार बढ़ा
आरबीआई की तरफ से रेपो रेट में कोई बदलाव न करने से सस्ते कर्ज का इंतजार और बढ़ गया है. इसके बाद अब सीधे फरवरी में आरबीआई की मौद्रिक नीति समिति की मीटिंग होनी है. कर्ज सस्ते होने की उम्मीद अब फरवरी तक लटक गई है. हालांकि फरवरी में भी आरबीआई ब्याज दरों में कटौती करेगा. ऐसा जरूरी भी नहीं है.
दरअसल रेपो रेट में कटौती का फैसला महंगाई और इकोनॉमी के हालात देखकर लेता है. अगर आने वाले दिनों में इकोनॉमी की हालत बेहतर स्थिति में रहती है और महंगाई भी नियंत्रण में रहती है, तो आपको सस्ते कर्ज का तोहफा आरबीआई दे सकता है.
रेपो रेट क्या होता है
जब बैंकों के पास फंड की कमी हो जाती है, तो वे केंद्रीय बैंक (आरबीआई) से लोन लेते हैं. उन्हें यह लोन एक फिक्स रेट पर आरबीआई की तरफ से दिया जाता है. यही रेट रेपो रेट कहलाता है. रेपो रेट हमेशा आरबीआई ही तय करता है.
आरबीआई ऐसा क्यों करता है
जब देश में महंगाई का दबाव बना रहता है, तो ऐसे समय में इस पर नियंत्रण पाने के लिए रेपो रेट एक अहम हथियार साबित होता है.
ऐसे समझिए
रेपो रेट को बढ़ाने से महंगाई पर नियंत्रण पाने में मदद मिलती है. दरअसल जब भी रेपो रेट बढ़ता है, तो ऐसे में बैंक आरबीआई से कम कर्ज लेते हैं. इससे इकोनॉमी में मनी सप्लाई में कमी आती है. इससे महंगाई पर नियंत्रण पाने में मदद मिलती है.
आप पर ऐसे पड़ता है असर
जब भी रेपो रेट बढ़ता है, तो इससे बैंकों के लिए आरबीआई से फंड लेना महंगा हो जाता है. इस दबाव को बैंक ग्राहकों तक पहुंचाते हैं. इसकी वजह से आपको मिलने वाला कर्ज महंगा हो जाता है.