गोरखपुर। ट्रेन से सफर करते हुए या रेलवे स्टेशन पर किसी को छोड़ने या लेने तो आप भी गए होंगे। इस दौरान आपने देखा होगा कि कई बच्चे पानी बेचने की बोतलें व अन्य सामान बेचने के लिए दौड़े चले आते हैं। कई बच्चों को आपने पटरियों के बीच फेंकी गई बोलतों व अन्य कूड़े को उठाते भी देखा होगा। लेकिन अब यह नजारा बदलने लगा है। गोरखपुर में इसकी शुरुआत हुई है। चलिए जानें यहां हो क्या रहा है…?
नशा करने वाला राजू अब फर्राटे से ABCD सुनाता है
रेलवे स्टेशन की पटरियों पर जान जोखिम में डालकर पानी की खाली बोतलें और प्लास्टिक की फेंकी गईं थैलियां बटोरने वाली काजल अब ब्लैक बोर्ड पर स्वर और व्यंजन लिख रही है। स्टेशन परिसर के किसी कोने में बैठकर नशा करने वाला राजू अब गिनती और पहाड़ा ही नहीं फर्राटे से एबीसीडी भी सुना रहा है। आदित्य, पूजा, अली और प्रियंका आदि दर्जनों बच्चे रोजाना रेलवे के प्रमुख मुख्य यांत्रिक इंजीनियरिंग कार्यालय परिसर में स्थित अंत्योदय कल्याण केंद्र में नियम से पहुंच जाते हैं।
गोरखपुर रेलवे कार्यालय परिसर में बनाए गए अंत्योदय कल्याण केंद्र में पढ़ते बच्चे।
ये सभी ‘वह शक्ति हमें दो दयानिधे…’ प्रार्थना करते हैं। ये ऐसे बच्चे हैं, जिन्होंने कभी स्कूल का मुंह नहीं देखा था, लेकिन अब नियमित रूप से पढ़ाई करते हैं। बोतल में पानी भरकर बेचना और खाली बोतलें बीनना इन्होंने बंद कर दिया है। अब ये पढ़-लिखकर कुछ बनना चाहते हैं। इतनी समझ अब इनमें विकसित हो गई है।
पूर्वोत्तर रेलवे के इंजीनियरों की पहल
स्टेशन परिसर में घूमने वाले इन बच्चों में शिक्षा के प्रति यह बदलाव किसी विद्यालय या शिक्षकों की बदौलत नहीं आया है, बल्कि पूर्वोत्तर रेलवे के कुछ यांत्रिक इंजीनियरों की इच्छाशक्ति व प्रेरणा का नतीजा है। ये इंजीनियर न केवल गरीब, असहाय परिवारों के बच्चों को निशुल्क शिक्षा दे रहे हैं, बल्कि आचरण और अनुशासन के जरिये उनके जीवन स्तर को सुधारने में लगे हुए हैं। इसके लिए उन्होंने रेलवे परिसर में अंत्योदय कल्याण केंद्र की स्थापना की है।
चेहरे पर समाज के लिए कुछ करने का सुकून
इंजीनियरों ने केंद्र में पढ़ाई के बेहतर माहौल का सृजन करने में सफलता पाई है। शायद यही कारण है कि जो बच्चे पहले बात करने से कतराते थे, वे अब बेझिझक कहते हैं कि हम पढ़ाई करेंगे और पढ़-लिखकर बड़ा आदमी बनेंगे। उनके चेहरों को देखकर रेलवे के इंजीनियरों को भी सुकून मिलता है। इंडियन रेलवे टेक्निकल सुपरवाइजर्स एसोसिएशन के जोनल सचिव रमेश पांडेय कहते हैं कि व्यस्त कार्य के बीच इन बच्चों को पढ़ाकर अच्छा लगता है। मन को शांति मिलती है। लगता है कि वह रेलवे के अलावा समाज के लिए भी कुछ कर रहे हैं।
रोजाना आते हैं दो दर्जन बच्चे
शुरुआत में तो दो-तीन बच्चे ही आए, लेकिन वे भी पढ़ाई की बजाय भाग जाने की ही फिराक में रहते थे। धीरे-धीरे जागरुकता बढ़ी। इंजीनियरों ने बच्चों को खोजना शुरू किया। उनके माता-पिता से मिले। एक-दूसरे से जुड़ते गए। आज बच्चों की संख्या दो दर्जन तक पहुंच गई है। उनमें से एक दर्जन का आधार कार्ड भी बनवा दिया गया है।
मिलती है ड्रेस और किताब भी
यांत्रिक इंजीनियरिंग विभाग के 15 इंजीनियरों की टीम स्टेशन परिसर से खोजकर बच्चों को अंत्योदय कल्याण केंद्र तक लाती है और उन्हें पढ़ाती है। पढ़ाने के लिए तीन-तीन की टीम बनाई गई है। सोमवार से शुक्रवार तक सुबह 9.30 से दोपहर एक बजे तक पढ़ाई होती है। बच्चों के लिए निशुल्क कापी-किताब, ड्रेस, फल-नाश्ता, पानी और आधुनिक प्रसाधन केंद्र की भी व्यवस्था की गई है। अंत्योदय कल्याण केंद्र में स्मार्ट क्लास की व्यवस्था है। रेलवे के अन्य अधिकारी भी मदद कर रहे हैं। अब तक 33 अधिकारियों ने 50 हजार रुपये का सहयोग किया है।
अच्छी पहल..
देश के किसी भी रेलवे स्टेशन पर या स्टेशन आउटर पर ऐसे बच्चे देखने को मिल जाएंगे, जो ट्रेन के रुकते ही या तो पानी की बोतल बेचते हैं या खाली बोतले बीन रहे होते हैं। ये बच्चे गरीब घरों से होते हैं, जो धीरे-धीरे नशा और अपराध में भी शामिल हो जाते हैं। स्टेशन परिसर में शिक्षा का माहौल तैयार करने के उद्देश्य से रेल मंत्रालय के निर्देश पर यह पहल हुई है। दिसंबर 2017 को यहां इसी पहल के चलते अंत्योदय कल्याण केंद्र खोला गया।
पूर्वोत्तर रेलवे के पीसीएमई एके सिंह कहते हैं, रेल मंत्रालय के निर्देश पर सकारात्मक कार्य किया जा रहा है। इससे रेलवे की छवि तो सुधरेगी ही, स्कूल नहीं जाने वाले बच्चों के जीवन में भी सुधार आएगा। इंजीनियरों के अलावा कुछ वालंटियर भी इस सराहनीय कार्य में अपना महत्वपूर्ण योगदान दे रहे हैं।