जो रेत हमारें अंगुलियों के पोरों से फिसल जाती है, बंद मुट्ठी भी जिसे रोक नहीं पाती, ट्रकों-ट्रॅालियों में भरकर वही रेत जेब को नोटों से भर देती है’’ – बस! यही वह बात है, जिस कारण हम रेत से …
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