बिहार की सियासत में आरजेडी अब पुराने और वैचारिक नेताओं को तवज्जो देने की बजाय जिताऊ नेताओं को अहमियत देने की कवायद में है. इसी कड़ी में पूर्व सांसद रामा सिंह की आरजेडी में एंट्री का रास्ता साफ हो गया है. रामा सिंह ने साफ कर दिया है कि लालू प्रसाद, प्रदेश अध्यक्ष जगदानंद सिंह और तेजस्वी यादव की सहमति मिलने के बाद ही उन्होंने 29 अगस्त को आरजेडी में शामिल होने का फैसला किया है. इससे यह तय हो गया है कि आरजेडी ने अपने वरिष्ठ नेता रघुवंश प्रसाद सिंह से किनारे करने का मन बना लिया है, क्योंकि रामा सिंह की पार्टी में एंट्री का वो विरोध करते रहे हैं.
बता दें कि रामा सिंह ने आरजेडी में शामिल होने की तैयारी तो दो महीने पहले ही कर ली थी. उनके आरजेडी की सदस्यता लेने की 29 जून की तारीख भी तय हो गई थी, लेकिन पार्टी के वरिष्ठ नेता रघुवंश प्रसाद ने अपनी नाराजगी जाहिर करते हुए राष्ट्रीय उपाध्यक्ष पद से इस्तीफा दे दिया है और साथ ही ये भी अटकलें हैं कि वो आरजेडी से अलग भी हो सकते हैं. इसके चलते तेजस्वी यादव ने रामा सिंह की एंट्री की तारीख को टाल दिया था, लेकिन अब पार्टी ने एक के बाद एक लगे झटके के बाद दोबारा से रामा सिंह को शामिल कराने की रणनीति अपनायी है.
रामा किशोर सिंह उर्फ रामा सिंह बिहार के बाहुबली नेता के तौर पर जाने जाते हैं. 90 के दशक में रामा सिंह का एक नाम तेजी से उभरा था. हाजीपुर से सटे वैशाली के महनार इलाके में उनकी तूती बोलती थी. रामा सिंह पांच बार विधायक रहे हैं और 2014 के मोदी लहर में राम विलास पासवान की एलजेपी से वैशाली से सांसद रह चुके हैं. रामा सिंह ने आरजेडी के कद्दावर नेता और पूर्व केंद्रीय मंत्री रघुवंश प्रसाद सिंह को हराया था. इसी हार के बाद रघुवंश प्रसाद रामा सिंह का नाम तक नहीं सुनना चाहते हैं.
रामा सिंह ने कहा कि पार्टी किसी की जागीर नहीं होती है और पार्टी से ऊपर कोई नहीं होता है. हमने कुछ दिन पहले आरजेडी में शामिल होने की अर्जी लगाई थी जिसके बाद मुझे इसकी अनुमति मिल गई. कौन मेरे आने का विरोध करता है इसको लेकर मुझे कुछ ज्यादा नहीं कहना है. रघुवंश प्रसाद सिंह पर तंज कसते हुए रामा सिंह ने कहा कि 1990 से जब भी रघुवंश प्रसाद सिंह उनके खिलाफ चुनाव लड़े हैं, उसमें उनकी हार हुई है.
रामा सिंह को आरजेडी में आने की अनुमति की हरी झंडी पार्टी के हाईकमान से मिल गई है. वैशाली जिले में रामा सिंह की गिनती बड़े नेताओं में की जाती रही है और सवर्णों के बीच उनका बड़ा वोट बैंक है. एक दौर में राजपूत समुदाय बिहार में आरजेडी का मूलवोट बैंक हुआ करता था, लेकिन अब धीरे-धीरे इस समुदाय पर बीजेपी की पकड़ मजबूत हुई है. यही वजह है कि तेजस्वी यादव ने रामा सिंह के जरिए राजपूत समीकरण को मजबूत करने के लिए दांव खेलने की रणनीति बनाई हैं.
रघुवंश प्रसाद आरजेडी के उन चुनिंदा नेताओं में से हैं, जिन्होंने पार्टी को बुलंदी पर पहुंचाने में अहम भूमिका अदा की है. रघुवंश आरजेडी के उन गिने-चुने नेताओं में से एक हैं जिनपर कभी भी भ्रष्टाचार या गुंडागर्दी के आरोप नहीं लगे. लालू प्रसाद यादव के जेल जाने के बाद पार्टी में वरिष्ठ नेताओं की कमी हो गई है. रघुवंश प्रसाद ही वह चेहरा माने जाते हैं जो पार्टी के उम्रदराज कार्यकर्ताओं को पार्टी के साथ जोड़े रखने में अहम भूमिका अदा करते रहे हैं.
दिलचस्प बात यह है कि रघुवंश प्रसाद सिंह भी राजपूत समुदाय से आते हैं, लेकिन खाटी समाजवादी नेता होने के चलते उनकी दूसरे राजपूतों नेताओं की तरह सियासी पकड़ नहीं है. रघुवंश प्रसाद वैचारिक तौर पर आरजेडी के मजबूत नेता हैं, लेकिन सामाजिक तौर पर अब फिट नहीं बैठ रहे हैं. वहीं, रामा सिंह भले ही वैचारिक तौर पर आरजेडी के लिए खरे न उतरे, लेकिन राजनीतिक तौर पर ट्रंप कार्ड के तौर पर देखा जा रहा है. इसीलिए रामा सिंह की एंट्री को आरजेडी ने हरी झंडी दे दी है.