जालंधर नगर निगम की नालायकी बनी सरकार के लिए संकट की स्थिति

 स्वच्छ भारत अभियान और स्मार्ट सिटी मिशन से करोड़ों अरबों रूपए की ग्रांट आने के बावजूद जालंधर नगर निगम से शहर के कूड़े की समस्या का कोई हल नहीं हुआ। केंद्र सरकार ने सॉलिड वेस्ट मैनेजमैंट को लेकर 2016 में जो नियम बनाए थे, जालंधर निगम क्या पंजाब का कोई भी शहर उन नियमों पर खरा नहीं उतर पाया।

इसे लेकर नैशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल (एन.जी.टी.) ने पंजाब की अफसरशाही को कटघरे के खड़ा कर दिया है और अभी पंजाब के कई अफसरों पर कार्रवाई की तलवार लटक रही है। एन.जी.टी. ने हाल ही में पंजाब राज्य पर 1026 करोड़ रुपए का पर्यावरण हर्जाना लगाया है और यह राशि 30 दिन के भीतर जमा करवाने को कहा है। इसमें से कूड़े की मैनेजमैंट न करने को लेकर करीब 970 करोड़ का हर्जाना लगाया गया है। खास बात यह है कि इस 970 करोड़ के हर्जाने के लिए पंजाब के सभी शहर जिम्मेदार हैं पर सबसे ज्यादा नालायकी और लापरवाही जालंधर नगर निगम की सामने आई है जिसके कारण 970 में से 270 करोड़ का हर्जाना लगा है। एन.जी.टी का मानना है कि इस समय पूरे पंजाब में जहां 53.87 लाख मीट्रिक टन कूड़ा पड़ा हुआ है, वहां अकेले जालंधर में पड़े कूड़े की मात्रा 15 लाख टन है।

कूड़े को सिर्फ उठाने और फैंकने का ही काम कर रहा जालंधर निगम

जालंधर निगम कई सालों से शहर के कूड़े को एक स्थान से उठाकर दूसरे स्थान पर फेंकने के काम में ही लगा हुआ है जिसपर हर महीने करोड़ों रुपए खर्च किए जा रहे हैं। इस निगम में सैनीटेशन ब्रांच के पास अपनी असंख्य गाडियां हैं, फिर भी कूड़े की लिफ्टिंग हेतु नगर निगम प्राइवेट ठेकेदारों की सेवाएं भी लेता है। पिछले लंबे समय से इस काम पर भी करोड़ों रुपए खर्च किए जा रहे हैं इसके बावजूद शहर की सैनीटेशन व्यवस्था सुधरने का नाम नहीं ले रही।

स्मार्ट सिटी और स्वच्छ भारत के अरबों रुपए खर्च किए, फिर भी कूड़ा मैनेज न हुआ

स्मार्ट सिटी मिशन के तहत आए अरबों रुपयों को 10 साल में खर्च कर देने के बाद आज जालंधर की हालत देखें तो ऐसे लग रहा है कि स्मार्ट सिटी हेतु आया सारा पैसा गलियों, नालियों, स्ट्रीट लाइटों, पार्कों और सीवरेज से संबंधित कामों पर ही खर्च कर दिया गया जबकि यह सारे काम निगम खजाने से होने चाहिए थे। नगर निगम ने स्मार्ट सिटी मिशन के तहत करोड़ों अरबों रुपए खर्च करके कई प्रोजैक्ट शुरू किए परंतु सभी फेल साबित हुए। आज शहर का कूड़ा सबसे बड़ी समस्या है पर स्मार्ट सिटी ने वेस्ट मैनेजमैंट की दिशा में कुछ नहीं किया। शहर से हर रोज़ निकलते कूड़े को खाद इत्यादि में बदलने का कोई प्रोजैक्ट नहीं चलाया गया। सालों साल वरियाणा में बायो माईनिंग प्लांट भी नहीं लग पाया।

हर कमिश्नर एक्शन प्लान ही बनाता रहा, तबादले के बाद सब ठप्प हुआ

एन.जी.टी. के डंडे को देखते हुए जालंधर निगम में रहे हर कमिश्नर ने शहर का सैनिटेशन प्लान बनाया, उसमें दर्जनों निगम अधिकारियों की ड्यूटी लगाई, समय समय पर विभिन्न कमेटियों का गठन भी किया गया पर कोई प्लान सिरे नहीं चढ़ा। हर कमिश्नर के तबादले के बाद हालात फिर पुरानी पटरी पर ही आ जाते रहे। अब भी वर्तमान निगम कमिश्नर गौतम जैन ने कई गंभीर प्रयास किए हैं। उन्होंने एक कमेटी रोड स्वीपिंग मशीन को लेकर बनाई गई है जो इन मशीनों के माध्यम से सफाई व्यवस्था को सुनिश्चित करेगी और यह देखेगी कि स्वीपिंग मशीनें पूरी क्षमता से चलें पर अभी भी स्वीपिंग मशीनें कुछ नहीं कर रहीं।

दूसरी कमेटी फोल्डीवाल प्रोसेसिंग प्लांट और कोहिनूर फैक्ट्री के पीछे लगने वाले एम.आर.एफ फैसिलिटी को लेकर बनाई गई है जहां आने वाले समय में कूडे़ को मैनेज किए जाने का काम किया जाएगा। काम होगा या नहीं, इसकी कोई गारंटी नहीं। एक कमेटी बनाकर बी.पी.सी.एल से संपर्क करने को कहा गया है ताकि शहर में सीएनजी प्लांट लगाया जा सके। एम.आर.एफ यूनिट और पिट्स से संबंधित भी एक कमेटी बनाई गई है। मशीनरी की परचेज का काम भी एक कमेटी देखेगी। इसके अलावा शहर में दो स्थानों पर कूड़े के प्रोसेसिंग प्लांट लगाए जाने हैं जिनके लिए भी एक कमेटी गठित की गई है। वरियाणा डंप की मेंटेनेंस और उसकी दशा सुधारने के लिए भी कमेटी का गठन कर दिया गया है। सी.एंड.डी वेस्ट मैनेजमेंट प्लांट को सुचारू ढंग से चलाने के लिए भी कमेटी बनाई गई है और प्लास्टिक पर प्रतिबंध को सख्ती से लागू करने के लिए भी निगम कमिश्नर ने कमेटी का गठन कर दिया है।

यह कमेटियां कितनी सफल हो पाएंगी, इस बाबत तो कुछ नहीं कहा जा सकता पर माना जा रहा है कि अब एन.जी.टी ऐसी खानापूर्ति को मानने के पक्ष में नहीं दिख रहा और ठोस करवाई की मांग की जा रही है।

270 करोड़ का जुर्माना कौन भरेगा

जालंधर निगम के अफसरों की लापरवाही और नालायकी के कारण पंजाब सरकार पर जो 270 करोड़ रुपए का पर्यावरण हर्जाना लगाया गया है, उसे कौन भरेगा, पंजाब सरकार या जालंधर निगम, यह देखने वाली बात होगी। गौरतलब है कि कुछ समय पहले भी एनजीटी ने पंजाब सरकार पर ऐसा हर्जाना लगाया था जिसे राज्य सरकार ने भर दिया था परंतु इस बार 1000 करोड़ रुपए से ज्यादा का जो हर्जाना लगाया गया है, उसे भरने में पंजाब सरकार के पसीने छूट जाएंगे। देखा जाए तो जालंधर निगम इस समय गंभीर वित्तीय संकट का शिकार है और इसके पास तो अपने स्टाफ को वेतन देने तक के पैसे नहीं होते। ऐसे में जालंधर निगम और पंजाब सरकार दोनों के लिए संकट की स्थिति बनी हुई है।

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