भारत अभी तक फ़्रांस से राफेल लड़ाकू विमान खरीदने में आनाकानी कर रहा था, भारत ने सोचा कि पाकिस्तान से रिश्ते बढ़िया बना लेते हैं तो हमें इतना मंहगा लड़ाकू विमान खरीदना नहीं पड़ेगा और विमान खरीदने में खर्च होने वाले करीब 60 हजार करोड़ रुपये बच जाएंगे और इन पैसों को देश के विकास में खर्च किया जाएगा लेकिन जब भारत ने देखा कि पडोसी देश पाकिस्तान पूरी तरह से पागल हो चुका है, ये मरने मारने पर उतारू हो चुका है और अपने देश में जिहादी आतंकियों की फ़ौज तैयार कर रहा है तो भारत ने राफेल की डील फाइनल करते हुए फ़्रांस से कहा ‘यार अब आप हमें राफेल दे ही दो, हमारा पडोसी पागल हो चुका है, हमें इसे ठीक करना है, और इस तरह से भारत ने करीब 59 हजार करोड़ रुपये में 36 राफेल विमानों की खरीद को मंजूरी दे दी।
कल भारत ने 59 हजार करोड़ रुपये में 36 राफेल विमानों की खरीद को मंजूरी दे दी, इस डील पर अंतिम हस्ताक्षर करने के लिए फ़्रांस के रक्षा मंत्री ज्यां वेस ली ड्रियान को 23 सितम्बर को भारत बुलाया गया है। मोदी सरकार ने डील में करीब 4500 रुपये कम करवाए हैं। इसके साथ ही फ़्रांस भारत में ऑफसेट प्रावधान पर भी जारी हुआ है जिसके बाद फ़्रांस सैन्य उपकरणों में 50 फ़ीसदी भारत में निवेश करेगा और भारत के हजारों लोगों को रोजगार देगा।
क्यों जरूरी हैं नए फाइटर प्लेन
चीन और पाकिस्तान जैसे पड़ोसी मुल्कों से संभावित खतरे से निपटने के लिए भारत को 42-44 फाइटर स्क्वाड्रन की जरूरत है. लेकिन, मौजूदा समय में भारत के पास महज 32 स्क्वाड्रन हैं. एक स्क्वाड्रन में 16 से 18 जेट विमान होते हैं. मिग 21 फाइटर विमान के इस्तेमाल पर पाबंदी लगा दी गई है, जिसके चलते यह संख्या और कम हो जाएगी. पुराने होने की वजह से मिग 21 और मिग 27 के 11 स्क्वाड्रन रिटायर हो रहे हैं.
सुखोई 30 एमकेआई और जगुआर विमान के बेड़े की सेवाएं बेहद खराब हैं. सुखोई टी-50 और सुखोई PAK FA जैसे पांचवीं पीढ़ी के लड़ाकू विमानों के लिए भारत और रूस के बीच डील की अभी तक शुरुआत नहीं हुई है. स्वदेशी तेजस लड़ाकू विमानों में काफी देर हो रही है. पहले 20 तेजस जेट साल 2018 तक एयरफोर्स को मिलेंगे. इसके बाद इनके 100 उन्नत संस्करण 2018 से 2026 तक उपलब्ध हो सकेंगे. जबकि नए राफेल विमान 2019 से इंडियन एयरफोर्स के बेड़े में शामिल होंगे.
राफेल की खूबियां:
यह विमान 4.5 जेनरेशन के ट्विन इंजन से लैस है.
परमाणु हथियार ढोने समेत तमाम तरह के मिशन को अंजाम देने में सक्षम है.
विमान की मारक क्षमता 3700 किलोमीटर है जबकि यह 1900 किलोमीटर प्रति घंटे की रफ्तार से उड़ सकता है.
अफगानिस्तान, लीबिया, सीरिया और माली में ये विमान सफलतापूर्वक आजमाएं जा चुके हैं.
फास्ट डिलिवरी: पहला राफेल 36 महीने में, बाकी अगले 30 महीने में.
पाकिस्तान के एफ-16 विमानों के मुकाबले ज्यादा उन्नत विमान है.
यह विमान खतरनाक मिसाइल और बमों से लैस है.
राफेल डील के माइनस प्वाइंट्स:
इन विमानों की खेप आने से लॉजिस्टिक या रखरखाव की दिक्कत बढ़ जाएगी. भारतीय वायुसेना के पास पहले से ही मिग-21, मिग-23, मिग-29, जगुआर, मिराज-2000, सुखोई 30 एमकेआई और तेजस जैसे छह अलग-अलग तरह के लड़ाकू विमान हैं.
राफेल विमानों की कीमत बहुत ज्यादा है. एक विमान की कीमत 1640 करोड़ रुपये आंकी जा रही है.
ऑपरेशनल प्वाइंट ऑफ व्यू से महज 36 विमानों का बेड़ा बहुत छोटा है. मूल एमएमआरसीए यानी मीडियम मल्टी रोल कॉम्बैट एयरक्राफ्ट प्रोजेक्ट के तहत 126 जेट विमान आने थे.
राफेल डील के तहत ‘मेक इन इंडिया’ या टेक्नोलॉजी ट्रांसफर जैसी कोई बात नहीं है.
ऐसे अंजाम तक पहुंची डील
सितंबर 2000: भारतीय वायुसेना ने 126 एमएमआरसीए की मांग की.
अगस्त 2007: यूपीए सरकार ने फ्रांस से 126 विमानों को खरीदने का सौदा तैयार किया. इसमें 36 विमान सीधे दसाल्ट-एवियशन कंपनी से खरीदे जाने थे. बाकी 90 भारत में तैयार होने थे.
अप्रैल 2011: ट्रायल के बाद अमेरिकी एफए-18, एफ-16, स्वीडन की ग्रिपन और रूस के मिग-35 रिजेक्ट कर दिए गए.
जनवरी 2012: कमर्शियल इवैलुएशन में राफेल ने यूरोफाइटर टाइफून को पछाड़ा.
2012 से 2015 के बीच विमान की लागत को लेकर मोलभाव होता रहा.
अप्रैल 2015: पीएम मोदी ने पुराने सौदे को रद्द कर सीधे फ्रांस सरकार से नई डील की. मोदी और ओलांद की बैठक के दौरान भारत सरकार ने ऐलान किया कि वो फ्रांस से सीधे 36 फाइटर जेट्स खरीदेगा.