हरियाणा: भाजपा-कांग्रेस का समीकरण बिगाड़ सकते हैं क्षेत्रीय गठबंधन

अंबाला में यदि बात करें मुलाना (आरक्षित) विधानसभा सीट की तो यहां कांग्रेस से पूर्व फूलचंद मुलाना का दबदबा रहा है। यहां से वह खुद भी विधायक और मंत्री रहे हैं तो उनके बाद बेटे वरुण चौधरी भी यहां से विधायक बने। अब वह सांसद भी चुने गए हैं।

अंबाला की चारों विधानसभाओं में इस बार का चुनाव फंसा नजर आ रहा है। इस बार क्षेत्रीय दल और उनके गठबंधन वोट बैंक के साथ राष्ट्रीय पार्टियों का समीकरण बिगाड़ सकते हैं। हालत यह है कि एक तरफ जजपा और आजाद समाज पार्टी तो दूसरी तरफ इनेलो-बसपा का गठबंधन प्रत्याशी उतारने को तैयार है। ऐसे में भाजपा ही नहीं कांग्रेस को दिक्कत होगी, क्योंकि ये दोनों दल जाट और अनुसूचित वर्ग के मतदाता को टारगेट करते आए हैं।

ऐसे में ये मतदाता क्षेत्रीय दलों की ओर गए तो कांग्रेस के लिए मुसीबत होगी। वहीं अगर राष्ट्रीय दलों में भाजपा की बात करें तो वह मुख्यमंत्री नायब सिंह सैनी को सीएम बनाने के बाद से ओबीसी वर्ग पर फोकस कर रही है तो कांग्रेस पूर्व सीएम भूपेंद्र सिंह हुड्डा और सांसद कुमारी सैलजा के माध्यम से जाट और अनुसूचित जाति के वर्ग पर फोकस कर रही है। प्रदेश में जो दो गठबंधन हुए हैं वह दोनों ही जाट और एससी वोटरों में ही सेंधमारी करेंगे। इसमें सबसे बड़ा नुकसान विपक्षी दल कांग्रेस को होता नजर आ रहा है।

छावनी में ये बन सकते हैं समीकरण
छावनी विधानसभा की बात करें तो यहां से छह बार के विधायक और पूर्व गृहमंत्री अनिल विज चुनावी मैदान में आ सकते हैं। दूसरी तरफ कांग्रेस से चित्रा सरवारा उम्मीदवार होंगी। पिछले चुनाव में चित्रा सरवारा ने निर्दलीय चुनाव लड़ा था और दूसरे स्थान पर रही थीं। इस बार वह कांग्रेस के चुनाव निशान पर आईं तो हालात बदलने की उम्मीद होगी। दूसरी तरफ इनेलो-बसपा गठबंधन से ओंकार सिंह का नाम लगभग तय माना जा रहा है। अगर वे मैदान में उतरते हैं तो सिख वोटरों में सेंधमारी कर सकते हैं। ऐसे में वे दोनों ही प्रमुख दावेदारों का खेल बिगाड़ेंगे। जजपा और आजाद समाज पार्टी से कोई प्रमुख चेहरा नजर नहीं आ रहा है। आम आदमी पार्टी भी अंबाला कैंट विधानसभा में विकल्प खोज रही है।

शहर से ये दावेदार हैं चर्चा में
शहर विधानसभा की बात करें तो कहने को तो यह शहरी विधानसभा है मगर यहां के 100 से अधिक गांव चुनाव परिणाम पर असर डालते हैं। लोकसभा चुनाव में यहां पर किसान आंदोलन का प्रभाव स्पष्ट नजर आया था। यह विधानसभा चुनाव में भी देखने को मिल सकती है। अंबाला सिटी से मंत्री असीम गोयला भाजपा की ओर से टिकट के दावेदार हैं लेकिन चर्चा यह भी है कि अगर भाजपा का हरियाणा जनचेतना पार्टी से गठबंधन होता है तो यहां से पूर्वमंत्री विनोद शर्मा या उनके परिवार का सदस्य चुनावी मैदान में आ सकता है। कांग्रेस से सैलजा और हुड्डा गुट दोनों से ही दावेदारों की लंबी कतार है लेकिन अभी की स्थिति में हुड्डा गुट से पूर्व मंत्री निर्मल सिंह और सैलजा गुट से रोहित जैन का नाम चर्चा में है।

अगर निर्मल सिंह चुनावी मैदान में आते हैं तो इनेलो बसपा और जजपा-आजाद समाज पार्टी के गठबंधन का सबसे अधिक नुकसान उन्हें ही होगा, क्योंकि कांग्रेस का फोकस जाट वोटरों पर रह सकता है। वहीं पंजाब से सटा क्षेत्र हाेने के कारण इस बार आम आदमी पार्टी भी खेल बिगाड़ेगी। शिरोमणी अकाली दल का भी इस सीट पर प्रभाव है। ऐसे में इनका समर्थन किसे जाएगा वह मायने रखेगा। चर्चा है कि अकाली दल इनेलो बसपा को समर्थन दे सकता है। वर्ष 2009 के चुनाव में सिटी से कांग्रेस पहले तो दूसरे स्थान पर शिरोमणी अकाली दल रहा था। यहां पर शिरोमणी अकाली दल को 25 फीसद से अधिक मत मिले थे। तब यहां से कांग्रेस से पूर्व मंत्री विनोद शर्मा 70 फीसद मत पाकर विधायक बने थे।

यदि बात करें मुलाना (आरक्षित) विधानसभा सीट की तो यहां कांग्रेस से पूर्व फूलचंद मुलाना का दबदबा रहा है। यहां से वह खुद भी विधायक और मंत्री रहे हैं तो उनके बाद बेटे वरुण चौधरी भी यहां से विधायक बने। अब वह सांसद भी चुने गए हैं। इस सीट पर इनेलो का भी प्रभाव रहा है। वर्ष 2009 में यहां से इनेलो से राजबीर सिंह इस सीट पर विधायक बने थे। वर्ष 2014 के चुनाव में यहां से भाजपा से संतोष सारवान ने जीत दर्ज कराई थी तो दूसरे स्थान पर इनेलो से राजबीर सिंह रहे थे। इसी प्रकार वर्ष 2019 में कांग्रेस की टिकट पर यहां से वरुण चौधरी ने जीत दर्ज कराई थी तो इनेलो छोड़कर भाजपा में आए राजबीर सिंह दूसरे स्थान पर रहे थे।

इसी प्रकार नारायणगढ़ विधानसभा को देखें तो यहां पर भी इनेलो का प्रभाव रहा है। वर्ष 2009 में यहां से रामकिशन गुर्जर कांग्रेस से जीते थे तो दूसरे नंबर पर इनेलो से राम सिंह दूसरे नंबर पर रहे थे। अब यहां से बसपा और इनेलो ने हरबिलास रज्जूमाजरा का अपना उम्मीदवार बनाया है। ऐसे में इनेलो और बसपा की इस सीट पर काफी महत्ता देखी जा सकती है। इस बार यहां से कांग्रेस की मौजूदा विधायक शैली चौधरी मैदान में दावेदारी पेश कर रहीं हैं। वहीं, वर्ष 2014 में मोदी लहर में सीएम नायब सैनी भी यहां पर एक बार विधायक बन चुके हैं। इसके बाद वर्ष 2019 के चुनाव में कांग्रेस ने फिर इस सीट पर वापसी की थी।

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