हरियाणा में होली की बात करें तो यहां कुछ अलग अंदाज में ही ठिठोली होती है। यहां दो तरह की होली मशहूर है। राजधानी दिल्ली के आसपास प्रदेश के दक्षिणी जिलों पलवल, फरीदाबाद, गुडगांव व मेवात की बात करें तो यहां ब्रज की होली का मजा ले सकते हैं। बाकी हिस्से में बांगर की बोली मनाने का तरीका कुछ दूसरी तरह का है। यहां कोड़े या कोरड़ा वाली होली होती है। लेकिन करनाल, कुरुक्षेत्र, यमुनानगर व अंबाला जिलों में कुछ पंजाबी कल्चर भी है। हालांकि होली पूजन करने का तरीका पूरे हरियाणा में एक जैसा ही है।

आपने अमूमन युवाओं की टोलियों को ही गलियों में मस्ती करते देखा-सुना होगा, लेकिन हरियाणा में इस दिन हर गली में महिलाओं की दबंगई चलती है। होली के दिन महिलाओं की टोलियां गलियों में निकलती हैं तो अच्छे-अच्छों को घर में दुबकना पड़ जाता है।
हाथों में रंगों की बजाए कपड़ों को ऐंठकर बनाए गए कोड़े होते हैं और इन कपड़ों के बीच में मोटी रस्सी का टुकड़ा भी लिपटा होता है, जिसकी चोट से गहरा नीला निशान पड़ जाता है।
ऐसे में अगर महिलाओं की टोलियों में कोई फंस गया तो उनकी खैर नहीं। अगर भाभियों को रंग लगाना है तो कोड़े की चोट तो खानी पड़ेगी। यह कोई धक्केशाही नहीं, बल्कि देवरों के लिए तो यह नाक की बात होती है। भागने की बजाए उन्हें कुछ देर उनका सामना करना होता है। वह भी दर्द को जाहिर किए बिना…। होली तो बीत जाती है, लेकिन हफ्ते बाद भी पुरुषों को उन मीठी मार का अहसास होते रहता है। यही तो है हरियाणा की होली…।
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