पूर्वान्चल के लिए मौत का सबब बन चुके इन्सेफेलाइटिस ने हर साल की तरह इस बार भी मौत का तांडव मचा रखा है। पिछले 22 दिनों के भीतर 26 मासूम काल की गाल में समा चुके हैं। योगी सरकार की तरफ से इन्सेफेलाइटिस को लेकर बड़े दावे हुए थे, जोरशोर से टीकाकरण अभियान के साथ जागरूकता पर पानी की तरह पैसे बहाए गये. लेकिन हकीकत यह कि इन्सेफेलाइटिस की राजनीतिकरण ने मासूमों की मौतों को दस्तावेजी आंकड़ा बना दिया है।
गोरखपुर, देवरिया, बस्ती, महाराजगंज, कुशीनगर, सिद्घार्थनगर, संत कबीरनगर, बहराइच, लखीमपुर खीरी और गोंडा में हर साल इस बीमारी के कारण सैकड़ों बच्चों की मौत हो जाती है। बीते विधानसभा चुनाव में बीजेपी ने भी मुद्दा बनाकर इस क्षेत्र में वोट की फसल ठीक से काटी थी। इन्सेफेलाइटिस सीजन शुरू हो चुका है और मौतों का ग्राफ पिछले साल से आगे निकलता दिख रहा। मुहिम के तहत 88 लाख 57 हजार 125 बच्चों को टीके लगाये जाने का लक्ष्य था। इसके लिए एक करोड़ वैक्सीन भी मंगाया गया था।
आप को बता दें कि शनिवार को बीआरडी मेडिकल कॉलेज में 24 घंटे में 4 मासूमों ने दम तोड़ दिया। तीन दिनों में 8 मौतों ने अकेले जुलाई महीने में मौतों के आंकड़े को 26 तक पहुंचा दिया है। जबकि कल 9 नए मरीज भर्ती हुए। वर्तमान में मेडिकल कॉलेज में 30 इन्सेफेलाइटिस पीड़ितों का इलाज चल रहा।
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1 जनवरी से अबतक 298 इन्सेफेलाइटिस पीड़ित आ चुके हैं। इनमें 95 मौत के मुंह में जा चुके हैं जबकि 30 अभी जीवन-मौत के बीच में झूल रहा। जो मौत से बच गए वह विकलांगता का दंश झेलने को मजबूर हैं।
गौरतलब है कि हर साल सैकड़ों बच्चों की जान लेने वाले इंसेफेलाइटिस की प्रभावी रोकथाम के लिये पूर्वी इलाकों के 38 जिलों में 25 मई से एक टीकाकरण अभियान चलाया जाएगा। मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने कुशीनगर से इसकी शुरुआत की थी। वर्ष 2017 में इंसेफेलाइटिस से हुई मौतों का मृत्यु दर 31.49 फीसदी है। यह पिछले साल से करीब सवा चार फीसदी अधिक है। 2016 में मृत्युदर 26.16 थी। वर्ष 2008 में मृत्युदर 20.88, 2009 में 19.71, 2010 में 15.56, 2011 में 18.95, 2012 में 20.94, 2013 में 29.34, 2014 में 27.90, 2015 में 25.11 फीसदी थी।