बिहार में 1990 के दशक में मुख्यमंत्री लालू यादव ने चरवाहा विद्यालय की शुरुआत की थी. बिहार के सुदूर गांवों में खुले इन स्कूलों के पीछे सरकार की सोच थी कि गांव-देहात के जो बच्चे आर्थिक कमजोरी के कारण स्कूल नहीं जा पाते हैं, इसके बजाये उन्हें पशुओं की चरवाही करनी पड़ती है, स्कूलों को ही उनके नजदीक पहुंचाया जाए.
शुरुआत में इन स्कूलों की काफी वाहवाही हुई, मगर बाद के दिनों में बिहार सरकार की इस योजना ने दम तोड़ दिया. केंद्रीय माध्यमिक शिक्षा बोर्ड यानी सीबीएसई (CBSE) ने कुछ इसी तर्ज पर स्कूलों में छात्रों को खाना पकाने की ट्रेनिंग देने की योजना बनाई है. हालांकि सीबीएसई ने अपने स्कूलों में कुछ निर्धारित कक्षाओं के छात्र-छात्राओं को ही खाना पकाने की पढ़ाई कराने का फैसला किया है.
बोर्ड की सोच है कि इससे छात्रों को न सिर्फ पौष्टिक भोजन बनाने की सीख मिलेगी, बल्कि उन्हें इसके बहाने कृषि क्षेत्र का भी ज्ञान दिया जा सकेगा.
दरअसल, सीबीएसई ने आगामी अकादमिक सत्र से सभी कक्षाओं में कला के विषय को शामिल करना अनिवार्य कर दिया है. इसके तहत स्कूलों को कक्षा छह से आठ के लिए ‘‘पाक कला” के तहत खाना पकाने की कुछ कक्षाएं देने की सलाह दी है. एक वरिष्ठ अधिकारी के मुताबिक प्रत्येक स्कूल को कला की शिक्षा के लिए हर हफ्ते न्यूनतम दो कक्षा अनिवार्य रूप से सुरक्षित रखने होंगे. बोर्ड ने अनुशंसा की है कि संगीत, नृत्य, रंगमंच एवं विजुअल आर्ट जैसे चार प्रमुख क्षेत्रों के अलावा कक्षा छह से आठ तक के छात्रों को पाक कला भी पढ़ाना चाहिए.
स्कूलों में खाना पकाने की सीबीएसई की यह योजना अगर सफल रहती है तो इससे शहरी इलाके के छात्रों को खेती-किसानी समेत कई अन्य पहलुओं की भी जानकारी हो सकेगी. वहीं, उन्हें कृषि संबंधी कई और जानकारियां भी मिल सकेंगी. बोर्ड से जुड़े एक अधिकारी ने कहा, “इससे छात्रों को पौष्टिक भोजन, भारत में उगाई जाने वाली फसलों एवं मसालों के मूल्य के बारे में, विभिन्न बीजों से तेल कैसे निकाला जाता है और कृषि संबंधी अच्छी आदतों के बारे में जानने में मदद मिलेगी.”
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