दुनियाभर में दवाओं के प्रति बैक्टीरिया में बढ़ती प्रतिरोधक क्षमता को देखते हुए नई दवाओं का विकास चिकित्सा क्षेत्र की प्रमुख चुनौतियों में से एक है. नई एंटीबायोटिक दवाओं का निर्माण आमतौर पर पादप अर्क और फफूंद जैसे प्राकृतिक उत्पादों या फिर केमिकल लाइब्रेरी में संग्रहित रसायनों की शृंखला पर आधारित होता है. लेकिन, एंटीबायोटिक दवाओं की खोज से जुड़े शोध कार्यों में ऐसी प्रक्रियाओं का महत्व कई बार बढ़ जाता है, जिन पर अपेक्षाकृत रूप से कम खोजबीन की गई हो. इसलिए नए एंटीबायोटिक एजेंट के रूप में ‘क्विनोनएपोक्साइड’ का विकास महत्वपूर्ण माना जा रहा है.
मीडिया रिपोर्ट के अनुसार भारतीय वैज्ञानिकों ने स्टैफिलोकॉकस ऑरियस नामक बैक्टीरिया के एंटीबायोटिक दवाओं के खिलाफ प्रतिरोधी क्षमता रखने वाले रूपों में ऐसे प्रोटीन की पहचान की है, जिसे आणविक स्तर पर लक्ष्य बनाकर इस बैक्टीरिया को नष्ट किया जा सकता है. वैज्ञानिकों का कहना है कि इस खोज के आधार पर नई एंटीबायोटिक दवाएं विकसित करने में मदद मिल सकती है.
अपने बयान में शोधकर्ताओं ने इस अध्ययन के दौरान एक अणु भी विकसित किया है जो बैक्टीरिया में पहचाने गए मार-आर प्रोटीन को लक्ष्य बनाकर उस बैक्टीरिया को नष्ट कर सकता है. यह अणु इंडोल आधारित क्विनोन एपोक्साइड है, जो सक्रिय जीवाणुरोधी एजेंट की तरह काम करता है.क्विनोन एपोक्साइड बैक्टीरिया की कोशिकाओं को भेदकर और उसमें मार-आर प्रोटीन की कार्यप्रणाली को बाधित करके उसे मार देता है.सीएसआइआर-केंद्रीय औषधि अनुसंधान संस्थान (सीडीआरआइ), लखनऊ और भारतीय विज्ञान शिक्षा एवं अनुसंधान संस्थान (आइआइएसईआर), पुणे के वैज्ञानिकों द्वारा संयुक्त रूप से किया गया यह अध्ययन शोध पत्रिका जर्नल ऑफ मेडिसिनल केमिस्ट्री में प्रकाशित किया गया है.