सीबीएसई के स्कूलों में आने वाले दिनों में छात्रों को सेकेंडरी कक्षाओं में तीन भाषाएं पढ़नी पड़ सकती हैं। केंद्रीय माध्यमिक शिक्षा बोर्ड (सीबीएसई) ने कक्षा 10 तक त्रिभाषा फार्मूले को लागू करने की सिफारिश मानव संसाधन विकास मंत्रालय से की है। मंत्रालय ने इस सिफारिश को स्वीकार करने के संकेत दिए हैं।
सीबीएसई के स्कूलों में अभी त्रिभाषा फार्मूला आठवीं कक्षा तक लागू है। तमिलनाडु एवं पुड्डुचेरी को छोड़कर अन्य राज्य भी त्रिभाषा फार्मूले को आठवीं कक्षा तक अपना रहे हैं। इसके तहत हिंदी, अंग्रेजी के अलावा आठवीं अनुसूचित में शामिल 22 भाषाओं में से किसी एक भाषा को छात्र चुन सकते हैं जिसमें संस्कृत भी शामिल हैं। गैर हिंदी राज्य तो अपने राज्य की भाषा चुन लेते हैं लेकिन हिंदीभाषी राज्यों में संस्कृत पढ़ने के अलावा और कोई विकल्प छात्रों के पास नहीं बचता है। इसलिए अनिवार्य नहीं किए जाने के बावजूद हिंदीभाषी राज्यों में कक्षा दस तक संस्कृत की पढ़ाई अनिवार्य हो जाएगी।
कक्षा नौ से कोर्स बढ़ने लगता है। विज्ञान एवं गणित विषयों का छात्रों पर दबाव बढ़ जाता है। इसके अलावा इतिहास, समाज विज्ञान जैसे विषयों को भी विस्तार से पढ़ाया जाता है। जबकि दो भाषाएं हिंदी, अंग्रेजी भी पढ़नी अनिवार्य हैं। ऐसे में एक और भाषा की अनिवार्यता से छात्रों पर अनावश्यक बोझ बढ़ने की संभावना है।
संस्कृत की अनिवार्यता नहीं होगी
मानव संसाधन विकास मंत्री प्रकाश जावड़ेकर ने संस्कृत अनिवार्य बनाए जाने के बारे में कहा कि सरकार किसी भी भाषा को अनिवार्य नहीं बनाएगी। लेकिन जहां तक त्रिभाषा फार्मूले को लागू करने की बात है यह कोई आज का नहीं बल्कि कोठारी आयोग की सिफारिश थी। उन्होंने कहा कि सीबीएसई की सिफारिश जैसे ही सरकार के पास आएगी, इसके बारे में उचित निर्णय लिया जाएगा। जाहिर है कि सरकार इसे लागू करने के पक्ष में है। लेकिन कोठारी कमीशन करीब 50 साल पहले बना था और आज उसकी सिफारिशों को लागू करना क्यों जरूरी है, इसका जवाब सरकार के पास नहीं है।