कोलकाता। पश्चिम बंगाल विधानसभा चुनाव से पहले ममता सरकार को बड़ा झटका लगा है। मुख्यमंत्री ममता बनर्जी के खास माने जाने वाले तृणमूल कांग्रेस के ताकतवर नेता शुभेंदु अधिकारी ने नाराजगी की खबरों के बीच परिवहन मंत्री पद से इस्तीफा दे दिया है। इससे टीएमसी से उनकी बगावत की अटकलों को मजबूती मिली है। इससे एक दिन पहले ही उन्होंने हुगली रिवर ब्रिज कमीशन चेयरमैन पद से इस्तीफा दिया था। हालांकि, अभी तक उन्होंने पार्टी से इस्तीफा नहीं दिया है।
शुभेंदु ने ऐसे समय पर हुगली रिवर ब्रिज कमीशन चेयरमैन पद और मंत्री पद से इस्तीफा दिया है, जब उनके पाला बदलने को लेकर अटकलें लग रही हैं। ममता बनर्जी के सबसे करीबी माने जाने वाले दिग्गज टीएमसी नेता शुभेंदु अधिकारी करीब 30 से 40 सीटों पर अच्छा प्रभाव रखते हैं। राजनीतिक गलियारों में पिछलेल कई दिनों से चर्चा थी कि पूर्वी मिदनापुर जिले से आने वाले शुभेंदु अधिकारी टीएमसी से नाराज चल रहे हैं और ऐसे में वह पार्टी का साथ छोड़कर भाजपा में भी शामिल हो सकते हैं। फिलहाल, शुभेंदु ने अपना सियासी पत्ता नहीं खोला है, मगर उन्होंने लगातार दो पदों से इस्तीफा देकर संकेत दे दिया है कि वह अब टीएमसी में टिकने वाले नहीं हैं।
शुभेंदु अधिकारी की ममता बनर्जी से बगावत की तस्वीर उस वक्त सामने आई, जब गुरुवार को ट्रांसपोर्ट मंत्री शुभेंदी ने पूर्व मिदनापुर के नंदीग्राम में एक रैली को संबोधित किया, जहां आज से 13 साल पहले पार्टी कार्यकर्ता की हत्या कर दी गई थी। इसी की याद में हुए कार्यक्रम में नंदीग्राम में शुभेंदु ने सभा को संबोधित किया। इसी नंदीग्राम की घटना ने ममता बनर्जी को बंगाल की कुर्सी तक पहुंचाया था। उस रैली में शुभेंदु ने कहा था कि पत्रकार और राजनीतिक पर्यवेक्षक मेरे राजनीतिक कार्यक्रम की घोषणा करने के लिए मेरा इंतजार कर रहे हैं। वे मुझे उन बाधाओं के बारे में बात करते हुए सुनना चाहते हैं जो मैं झेल रहा हूं और जो रास्ता मैं लेने जा रहा हूं। मैं इस पवित्र मंच से अपने राजनीतिक कार्यक्रम की घोषणा नहीं करूंगा।
दरअसल, शुभेंदु बंगाल में काफी ताकतवर राजनीतिक परिवार से आते हैं। उनका प्रभाव न सिर्फ उनके क्षेत्र पर है, बल्कि पूर्वी मिदनापुर के अलावा आस-पास के जिलों में भी उनका राजनीतिक दबदबा है। राजनीतिक पंडितों की मानें तो शुभेंदु अधिकारी ममता बनर्जी के भतीजे और लोकसभा सांसद अभिषेक बनर्जी से नाराज चल रहे हैं। इसके अलावा, जिस तरह से प्रशांत किशोर ने बंगाल में संगठनात्मक बदलाव किया है, उससे भी वह नाखुश हैं। साथ ही शुभेंदु अधिकारी चाहते हैं कि पार्टी कई जिलों की 65 विधानसभा सीटों पर उनकी पसंद के उम्मीदवारों को मैदान में उतारे।
दो बार सांसद रह चुके शुभेंदु अधिकारी का परिवार राजनीतिक तौर पर काफी मजबूत है। पूर्वी मिदनापुर को कभी वामपंथ का गढ़ माना जाता था मगर शुभेंदु ने अपनी रणनीतिक कौशल से बीते कुछ समय में इसे टीएमसी का किला बना दिया है। अगर वह टीएमसी से बाहर होते हैं तो ममता बनर्जी को काफी नुकसान पहुंचा सकते हैं। यही वजह है कि पार्टी उन्हें मनाने में जुटी है। शुभेंदु अधिकारी के भाई दिब्येंदु तमलुक से लोकसभा सदस्य हैं, जबकि तीन भाई-बहनों में सबसे छोटे सौमेंदु कांथी नगर पालिका के अध्यक्ष हैं। उनके पिता सिसिर अधिकारी टीएमसी के सबसे वरिष्ठ लोकसभा सदस्य हैं, जो कांथी निर्वाचन क्षेत्र का प्रतिनिधित्व करते हैं।
नंदीग्राम आंदोलन की लहर पर सवार होकर शुभेंदु 2019 में तमलुक सीट से लोकसभा चुनाव जीते थे। इसके बाद वह 2014 भी वह जीते। बंगाल विधानसभा चुनाव में जीतने के बाद उन्हें ममता कैबनिनेट में परिवहन मंत्री बनाया गया। बताया जाता है कि न सिर्फ पूर्वी मेदनीपुर जिला बल्कि मुर्शिदाबाद और मालदा में भी उन्होंने कांग्रेस को कमजोर करने और टीएमसी को मजबूत करने के लिए काम किया है। क्योंकि वह ग्रासरूट लेवल के नेता हैं, इसलिए बीते कुछ समय में उनकी स्वीकार्यता भी काफी बढ़ी है। उन्हें मेदिनीपुर, झारग्राम, पुरुलिया, बांकुरा और बीरभूम जिलों में टीएमसी के आधार का विस्तार करने का भी श्रेय दिया जाता है। इस तरह से राजनीतिक पंडितों का मानना है कि शुभेंदु अगर टीएमसी से अलग होते हैं तो इसका असर काफी सीटों पर दिख सकता है। यानी शुभेंदु बंगाल में ममता की करीब 30 से 40 सीटें खराब करने की क्षमता रखते हैं।