नेपीता। म्यांमार में अगस्त में भड़की हिंसा में 6,700 रोहिंग्या मुसलमान मारे गए थे। यह दावा मानवाधिकारों के लिए कार्य करने वाली वैश्विक संस्था मेडिसिंस सैंस फ्रंटियर्स (एमएसएफ) ने किया है। संस्था ने यह दावा बांग्लादेश पहुंचे शरणार्थियों से बातचीत के आधार पर किया है। जबकि म्यांमार सरकार का दावा सुरक्षा बलों की कार्रवाई में 400 लोगों के मारे जाने का है।
बौद्ध बहुल म्यांमार में 25 अगस्त को रोहिंग्या आतंकियों के रखाइन प्रांत में पुलिस और सेना के ठिकानों पर एक साथ हमले के जवाब में यह हिंसा भड़की थी। इस दौरान सेना ने रोहिंग्या बहुल गांवों पर कार्रवाई की थी। लोगों पर आतंकियों को शरण देने का आरोप लगाया था। म्यांमार की सेना का दावा है कि आतंकियों द्वारा आमजनों को ढाल बनाए जाने से लोगों की जान गई। जबकि शरणार्थियों ने सेना पर अत्याचार और हत्या करने का आरोप लगाया है।
मानवाधिकार संगठन के अनुसार मारे गए 6,700 लोगों में 730 पांच साल से कम उम्र के बच्चे थे। एसएसएफ दुनिया के कई देशों में पीडि़तों को स्वास्थ्य सुविधा देने का कार्य करता है। संगठन ने कहा है कि पीडि़तों की आपबीती सुनकर पता चला है कि म्यांमार में सरकारी अधिकारियों के संरक्षण में बड़े पैमाने पर हिंसा हुई। मृतकों के अलावा बड़ी संख्या में लोग घायल भी हुए हैं।
एमएसएफ के निदेशक सिडनी वोंग के अनुसार मारे गए 59 प्रतिशत बच्चे राइफल की गोली से मारे गए जबकि 15 प्रतिशत जलकर मरे। सात प्रतिशत की मौत पिटाई से हुई। अगस्त की हिंसा के बाद करीब साढ़े छह लाख रोहिंग्या मुसलमान भागकर बांग्लादेश आए। इसी के बाद अंतरराष्ट्रीय स्तर पर म्यांमार में हुए रोहिंग्या मुसलमानों के दमन की निंदा हुई। संयुक्त राष्ट्र ने उसे अल्पसंख्यकों के सफाए की मुहिम बताया, तो अमेरिकी संसद ने निंदा प्रस्ताव पारित किया।
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