राहुल गाँधी अभी कितने काबिल, क्या बन सकते हैं PM पद के प्रत्याशी

सात समंदर पार अमेरिका में आखिर उस सस्पेंस से पर्दा उठता दिखा जिसका इंतजार लंबे वक्त से हिंदुस्तान में किया जा रहा था. कांग्रेस उपाध्यक्ष राहुल गांधी अमेरीका की बर्कले स्थित कैलिफोर्निया यूनिवर्सटी पहुंचे तो वहीं से 2019 की तैयारी को लेकर अपनी रणनीति का खुलासा कर दिया. सस्पेंस से पर्दा उठाते हुए राहुल गांधी ने साफ कर दिया कि अगर पार्टी चाहे तो अगले लोकसभा चुनाव के लिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के खिलाफ ताल ठोंकने के लिए वो तैयार हैं.राहुल गाँधी अभी कितने काबिल, क्या बन सकते हैं PM पद के प्रत्याशी

राहुल की तरफ से विदेशी धरती से किए गए इस ऐलान पर सवाल भी खडे़ हो रहे हैं, क्योंकि राहुल को चुनाव लड़ने और चुनावी तैयारियों के लिए हिंदुस्तान की धरती पर ही मेहनत करनी होगी. ऐसे में विदेशी मंच पर जाकर किए गए इस ऐलान की जरूरत ही क्या थी. अगर ऐसा कहना भी था तो अपने देश में अबतक इस मुद्दे पर वो चुप क्यों थे ?

लगता है राहुल गांधी को विदेशी धरती और विदेशी मंच पर कही गई बातों पर ज्यादा यकीन होगा. लगता होगा, कहीं अमेरिका से निकली आवाज की गूंज और उस गूंज का असर भारत की सियासी फिजाओं में ज्यादा होगा. ऐसा हो भी रहा है, लेकिन, राहुल की काबिलियत और उनकी मोदी के विकल्प के तौर पर तैयारी को लेकर नहीं, बल्कि कश्मीर समेत उन सारी बातों को लेकर जो उन्होंने कैलिफोर्निया यूनिवर्सिटी में कह दिया है.

कैलिफोर्निया यूनिवर्सिटी से मोदी सरकार पर बरसने वाले राहुल अब अपने ही जाल में फंसते जा रहे हैं. खासतौर से कश्मीर को लेकर मोदी सरकार की नीति पर सवाल उठाने वाले राहुल कई सवालों से घिर गए हैं.

कश्मीर के जिक्र पर घिरे राहुल

राहुल गांधी ने कहा था कि आज कश्मीर में जिस तरह के हालात बने हैं उसके लिए बीजेपी जिम्मेदार है. राहुल ने सियासी फायदे के लिए कश्मीर मुद्दे को लेकर बीजेपी पर निशाना साधा. उन्होंने कहा कि 2004 में जब यूपीए सरकार सत्ता में आई उस वक्त कश्मीर में आतंकवाद चरम पर था. लेकिन 2013 तक हमने कश्मीर में आतंकवाद की कमर तोड़ दी थी. वहीं अब फिर से हालात खराब हो गए हैं.

लेकिन, इस मुद्दे पर राहुल गांधी खुद घिर गए. अब बीजेपी की तरफ से कश्मीर की समस्या के लिए सीधे नेहरू-गांधी परिवार को जिम्मेदार ठहरा दिया गया. सूचना-प्रसारण मंत्री स्मृति ईरानी ने कहा कि आज कश्मीर के जो हालात हैं उसके लिए कांग्रेस जिम्मेदार है. कश्मीर की समस्या नेहरु-गांधी परिवार की वजह से ही है.

देश के बाहर अमेरिका जाकर राहुल गांधी की तरफ से कश्मीर की समस्या और वहां के हालात का जिक्र करना और उसपर सियासत करना उनकी नीति और रणनीति को ही कठघरे में खड़ा कर रहा है. लेकिन इन सब बातों से लगता है राहुल को कहां फर्क पड़ने वाला?

राहुल गांधी अपने खिलाफ बन रहे माहौल के लिए सीधे बीजेपी के लोगों को जिम्मेदार बता रहे हैं. वो तो यह कहते फिर रहे हैं कि हमारे खिलाफ तो बस बीजपी के लोगों की तरफ से प्रोपेगैंडा चलाया जा रहा है. इसके लिए बाकायदा भगवा ब्रिगेड की तरफ से हजार लोगों की एक टीम भी उनके पीछे लगी है.

एक तरफ भगवा ब्रिगेड पर आरोप तो दूसरी तरफ अपनी ही जुबां से अपनी पार्टी को घमंडी कहना राहुल गांधी को भारी पड़ रहा है. राहुल गांधी ने कहा कि 2012 में कांग्रेस के भीतर अहंकार आ गया था. उस वक्त हम लोग जनता से संवाद भूल गए थे. मतलब जनता से दूरी और संवादहीनता ही 2014 की हार का कारण है.

ऐसा मानते वक्त राहुल गांधी इस बात को भूल गए कि उस वक्त भी कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी ही थीं और पूरी सरकार उन्हीं के इशारे पर काम कर रही थी. ऐसे में उनकी स्वीकारोक्ति सोनिया गांधी की कार्यशैली पर भी सवाल उठा रही है. राहुल गांधी के इस कबूलनामे को ही अब बीजेपी ने अपना हथियार बना लिया है.

लेकिन, राहुल गांधी ने हर मुद्दे पर मोदी सरकार पर दनादन वार किए. देश में दलितों और अल्पसंख्यकों पर हमले से लेकर पत्रकारों पर हमले की बात को सामने लाकर राहुल गांधी ने विदेशी मंच से मोदी सरकार के कार्यकाल पर सवाल खड़े कर दिए हैं. अर्थव्यवस्था में गिरावट और नोटबंदी पर सरकार के फैसले पर भी राहुल की तरफ से हमला किया गया.

रणनीतिकारों की सीख पर कर रहे हैं अमल

लगता है राहुल गांधी को उनके रणनीतिकारों ने यह समझा दिया है कि विदेशी धरती पर अगर वो मोदी सरकार के खिलाफ बोलेंगे तो उसका असर ज्यादा होगा. अभी 2019 की लडाई में डेढ़ साल का वक्त बचा है, लेकिन उसके पहले ही राहुल गांधी लगातार देश-विदेश में अलग-अलग मंचों से सरकार के खिलाफ मोर्चा खोल कर हमले की धार बरकरार रखना चाहते हैं.

अपनी दावेदारी को लेकर राहुल इतने संजीदा दिखे कि उन्होंने पिछली यूपीए सरकार में अपने नौ साल के काम का अनुभव भी गिना दिया. राहुल गांधी ने अपने काम के अनुभव का जिक्र करते हुए कहा कि नौ साल तक हमने प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह, पी चिदंबरम और जयराम रमेश जैसे लोगों के साथ पीछे से काम किया. राहुल की तरफ से यह दिखाने की कोशिश है कि हम अनुभवहीन नहीं हैं, हमारे पास भी सरकार चलाने का अनुभव है.

राहुल ने तो अपनी दावेदारी पेश कर दी है. अब पार्टी को निर्णय लेना है. क्योंकि लंबे वक्त से कांग्रेस में नंबर दो से नंबर वन की भूमिका में आने की उनकी प्रतीक्षा की घड़ी काफी लंबी हो गई है. अब देखना है कांग्रेस 2019 की लड़ाई को मोदी बनाम राहुल के तौर पर पेश करने का साहस जुटा पाएगी, क्योंकि अबतक वो इन सवालों से बचती रही है.

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