डोकलाम के मुद्दे पर रूस ने भारत का साथ दिया है। डोकलाम पर भारत को बदनाम करने की चीन की नीति के बहकावे में आने से रूस ने इनकार कर दिया है। इस मुद्दे पर मॉस्को के रुख का भारत-रूस रिश्तों पर असर पड़ सकता था। इससे ब्रिक्स सम्मेलन में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की भूमिका भी प्रभावित होती। चीन के तटवर्ती शहर जियामेन में रविवार को ब्राजील, रूस, भारत, चीन और दक्षिण अफ्रीका के नेता सम्मेलन में भाग लेंगे। 
डोकलाम विवाद पर रूस का रुख पेइचिंग में उसके राजदूत एंद्रे जिनिसोव के बयान से ही साफ हो गया था। रूसी राजदूत ने कहा था कि भारत-चीन सीमा पर जो भी हालात हैं,
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उससे हमसब दुखी हैं। यह बयान डोकलाम विवाद के सुलझने के कुछ घंटे पहले आया था। रूस की मीडिया में ऐंबैसडर एंद्रे ने कहा कि हमें लगता है कि हमारे चीनी और भारतीय मित्र खुद ही इस समस्या का समाधान निकाल सकते हैं। हमें नहीं लगता कि उन्हें किसी मध्यस्थ की जरूरत है जो इस मुद्दे पर उनके अपने-अपने दावों को प्रभावित करे। पूरी तरह तटस्थ रवैये का संकेत देते हुए रूसी राजदूत ने आगे कहा कि हम यही कह सकते हैं कि रूस दोनों देशों के साथ सद्भाव का इस्तेमाल कर रहा है।
जिनिसोव के बयान से यह स्पष्ट होता है कि चीनी राजनयिक की ओर से सीमा विवाद पर भारत के खिलाफ कूटनीतिक मोर्चाबंदी करने की दो सप्ताह की कोशिशों का असर रूस पर भी नहीं हुआ जिसे दूसरे पश्चिमी देशों के मुकाबले चीन से ज्यादा करीब माना जाता है। रूसी राजदूत ने यह भी संकेत दिए कि रूस ने वैश्विक मामलों में वक्त-वक्त पर अपनी भूमिका निभाई है, जब-जब वह ऐसा कर सकता था।
जिनिसोव ने कहा है कि 20वीं सदी का इतिहास बताता है कि जब कभी भी हमारे देश को सकारात्मक भूमिका अदा करने का मौका मिला, हमने किया। आपको बता दें कि पीएम नरेंद्र मोदी सम्मेलन के दौरान ब्राजील और दक्षिण अफ्रीकी नेताओं से इतर चीनी प्रधान मंत्री शी चिनफिंग और रूसी राष्ट्रपति ब्लादिमिर पुतिन से भी मिल सकते हैं।
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