New Delhi: कहते हैं कभी भी किसी का दिल नहीं दुखाना चाहिए। क्योंकि किसी की आत्मा को चोट पहुंचाने को अपराध माना गया है। नियति इस पाप का दण्ड सबको सामान रूप से देती है। स्वयं भगवान भी नियति के प्रकोप से नहीं बच सके हैं।
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नियति और कर्मों से जुड़ी हुई ऐसी ही एक पौराणिक कहानी है भगवान विष्णु और नारद मुनि की। ऐसा माना जाता है कि नारद मुनि के श्राप के कारण ही भगवान विष्णु को राम रूप में अवतार लेकर देवी सीता से वियोग सहना पड़ा था।
एक पौराणिक कहानी के अनुसार देवर्षि नारद को एक बार इस बात का अभिमान हो गया कि कामदेव भी उनकी तपस्या और ब्रह्मचर्य को भंग नहीं कर सकते। नारदजी ने यह बात शिवजी को बताई। देवर्षि के शब्दों में अहंकार झलक रहा था। शिवजी यह समझ चुके थे कि नारद अभिमानी हो गए हैं।
भोलेनाथ ने नारद से कहा कि भगवान श्रीहरि के सामने अपना अभिमान इस प्रकार प्रदर्शित मत करना। इसके बाद नारद भगवान विष्णु के पास गए और शिवजी के समझाने के बाद भी उन्होंने श्रीहरि को पूरा प्रसंग सुना दिया। नारद भगवान विष्णु के सामने भी अपना अभिमान दिखा रहे थे। तब भगवान ने सोचा कि नारद का अभिमान तोड़ना ही होगा, यह शुभ लक्षण नहीं है। जब नारद कहीं जा रहे थे, तब रास्ते में उन्हें एक बहुत ही सुंदर नगर दिखाई दिया, जहां किसी राजकुमारी के स्वयंवर का आयोजन किया जा रहा था।
नारद भी वहां पहुंच गए और राजकुमारी को देखते ही मोहित हो गए। यह सब भगवान श्रीहरि की माया थी। राजकुमारी का रूप और सौंदर्य नारद के तप को भंग कर चुका था। इस कारण उन्होंने राजकुमारी के स्वयंवर में हिस्सा लेने का मन बनाया। नारद भगवान विष्णु के पास गए और कहा कि आप अपना सुंदर रूप मुझे दे दीजिए और मुझे हरि जैसा बना दीजिए।
हरि का दूसरा अर्थ ‘वानर’ भी होता है। नारद ये बात नहीं जानते थे। भगवान ने ऐसा ही किया, लेकिन जब नारद मुनि स्वयंवर में गए तो उनका मुख वानर के समान हो गया। उस स्वयंवर में भगवान शिव के दो गण भी थे, वे यह सभी बातें जानते थे और ब्राह्मण का वेश बनाकर यह सब देख रहे थे। जब राजकुमारी स्वयंवर में आई तो वानर के मुख वाले नारदजी को देखकर बहुत क्रोधित हुई। उसी समय भगवान विष्णु एक राजा के रूप में वहां आए।
सुंदर रूप देखकर राजकुमारी ने उन्हें अपने पति के रूप में चुन लिया। यह देखकर शिवगण नारदजी की हंसी उड़ाने लगे और कहा कि पहले अपना मुख दर्पण में देखिए। जब नारदजी ने अपने चेहरा वानर के समान देखा तो उन्हें बहुत गुस्सा आया। नारद मुनि ने उन शिवगणों को अपना उपहास उड़ाने के कारण राक्षस योनी में जन्म लेने का श्राप दे दिया।शिवगणों को श्राप देने के बाद नारदजी भगवान विष्णु के पास गए और क्रोधित होकर उन्हें बहुत भला-बुरा कहने लगे। माया से मोहित होकर नारद मुनि ने श्रीहरि को श्राप दिया कि जिस तरह आज मैं स्त्री का वियोग सह रहा हूं उसी प्रकार मनुष्य जन्म लेकर आपको भी स्त्री वियोग सहना पड़ेगा।
उस समय वानर ही तुम्हारी सहायता करेंगे। भगवान विष्णु ने कहा-ऐसा ही हो और नारद मुनि को माया से मुक्त कर दिया। तब नारद मुनि को अपने कटु वचन और व्यवहार पर बहुत ग्लानि हुई और उन्होंने भगवान श्रीहरि से क्षमा मांगी। परंतु दयालु श्रीहरि ने नारद को क्षमा करते हुए कहा कि ये उनकी ही माया थी। इस प्रकार नारद के दोनों श्राप फलीभूत हुए और भगवान विष्णु को राम रूप में जन्म लेकर अपनी पत्नी सीता का वियोग सहना पड़ा। जबकि शिवगणों ने राक्षस योनि में जन्म लिया।
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