प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को एक पत्र लिखकर गनीबेन ठाकोर ने कहा कि ओबीसी कोटा को बांटना जरूरी है क्योंकि गुजरात में कुल 146 पिछड़ी जातियों में से केवल पांच से 10 जातियों को लाभ मिल रहा।
गुजरात में ओबीसी कोटा पर एक बार फिर विवाद खड़ा होता दिख रहा है। दरअसल, कांग्रेस सांसद गनीबेन ठाकोर ने मांग की है कि राज्य में अन्य पिछड़ा वर्ग (ओबीसी) श्रेणी के तहत सभी जातियों के बेहतर प्रतिनिधित्व के लिए मौजूदा 27 प्रतिशत आरक्षण कोटा को दो हिस्सों में बांटा जाए।
पीएम मोदी को लिखा पत्र
गनीबेन ठाकोर ने 17 सितंबर को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को एक पत्र लिखा। इसमें उन्होंने कहा कि ओबीसी कोटा को बांटना जरूरी है क्योंकि गुजरात में कुल 146 पिछड़ी जातियों में से केवल पांच से 10 जातियों को लाभ मिल रहा है जबकि अन्य अति पिछड़ी जातियों को केवल एक या दो प्रतिशत लाभ मिला है।
27 प्रतिशत कोटे को बांटा जाए
बनासकांठा सीट का प्रतिनिधित्व करने वाली ठाकोर ने कहा कि गुजरात में अति पिछड़ी जातियों में ठाकोर, कोली, वाडी, डबगर, खारवा, मदारी, नट, सलात, वंजारा, धोबी, मोची और वाघरी शामिल हैं। उन्होंने असमानता को समाप्त करने के लिए सुझाव दिया कि 27 प्रतिशत ओबीसी कोटा को दो भागों में विभाजित किया जाना चाहिए। पहला सात प्रतिशत कोटा उन लोगों के लिए, जिन्हें अब तक सबसे ज्यादा लाभ मिला है और दूसरा 20 प्रतिशत कोटा अति पिछड़े वर्गों के लिए, जिन्हें पिछले 20 वर्षों के दौरान शून्य के बराबर लाभ मिला।
किसी खास जाति का जिक्र किए बगैर ठाकोर ने दावा किया कि आर्थिक रूप से शक्तिशाली और सामाजिक रूप से सामान्य श्रेणी की करीब आने वाली पांच से 10 जातियां 27 फीसदी ओबीसी कोटा के तहत सभी लाभों में से 90 फीसदी लाभ प्राप्त कर रही हैं।
सर्वे कराने की मांग की
उन्होंने कहा, ‘वहीं दूसरी ओर ठाकोर, कोली और अन्य जातियां जो आर्थिक और सामाजिक रूप से दूसरों के मुकाबले कमजोर हैं उन्हें एक या दो प्रतिशत लाभ मिलता है। मेरी मांग है कि एक सर्वे कराया जाए ताकि पता चल सके कि इन अत्यंत पिछड़ी जातियों को पिछले 20 वर्षों के दौरान कितना लाभ मिला है। सर्वे के बाद, जिन पांच से 10 जातियों को अधिकतम लाभ मिला है, उन्हें 27 प्रतिशत कोटे में से सात प्रतिशत आरक्षण दिया जाना चाहिए, जबकि जो अत्यंत पिछड़ी जातियां पीछे रह गई हैं उन्हें शेष 20 प्रतिशत आरक्षण दिया जाना चाहिए।’
अति पिछड़ी जातियां रह जाएंगी गरीब
उन्होंने दावा किया कि अगर ओबीसी कोटा को अलग करने का यह प्रावधान लागू नहीं किया गया तो अत्यंत पिछड़ी जातियों के लोग गरीब बने रहेंगे जबकि पांच से दस जातियों की जातियां आरक्षण का अधिकतम लाभ पाकर और समृद्ध होती रहेंगी। बिहार, ओडिशा, हरियाणा और पश्चिम बंगाल जैसे कई अन्य राज्यों ने सभी जातियों के बीच समानता लाने के लिए ओबीसी कोटा को विभाजित करने की इस प्रणाली को लागू किया था।