लखनऊ यूनिवर्सिटी प्रशासन यूपी में नई शिक्षा नीति लागू करने वाला पहला विश्वविद्यालय होने का दम जरूर भरता है लेकिन उसके ही करीब 500 कॉलेजों को नई नीति लागू करने में पसीने छूट रहे हैं। इनके सामने सबसे बड़ा संकट लाखों की संख्या में छात्रों को डिग्री विद रिसर्च देने का है। मगर फिलहाल विवि प्रशासन का इस ओर कोई ध्यान नहीं है लेकिन भविष्य में ऐसी बेपरवाही न सिर्फ कॉलेजों का संकट बढ़ाएगी बल्कि जिलों के छात्र-छात्राओं के लिए मुसीबत बन सकता है।

माइनर विषयों की पढ़ाई में भी मुश्किल
नई शिक्षा नीति के लिए अधिक शिक्षकों की भी जरूरत पड़ेगी। कॉलेजों के पास पहले से शिक्षक कम हैं। अब कोई कॉलेज एक ही माइनर विषय पढ़ा रहा है तो उसे उस विषय के लिए अलग शिक्षक रखना पड़ेगा, जो व्यवहारिक रूप से संभव नहीं है। लखनऊ में ही कुछ कॉलेजों में सामान्य विषयों के ही पर्याप्त शिक्षक नहीं हैं, ऐसे में माइनर विषयों के लिए अलग से शिक्षक कहां से आएंगे, ये बड़ा सवाल है। वहीं जिलों की बात करें तो जिलों में बड़ी संख्या में कॉलेजों में न तो लैब हैं और न ही पर्याप्त कोर्स।
लैब तो दूर पूरे शिक्षक भी नहीं
एनईपी विकल्प देती है कि थ्योरी सब्जेक्ट पढ़ने वाले छात्र, एक प्रैक्टिकल विषय ले सकते हैं। रायबरेली, हरदोई, सीतापुर, लखीमपुर जैसे जिलों में कई कॉलेज हैं जो कुछ विषय पढ़ा रहे हैं, जिनमें कोई प्रैक्टिकल नहीं है। यहां छात्र प्रैक्टिकल विषय नहीं ले सकते क्योंकि कॉलेज के पास लैब नहीं हैं। ऐसे में यहां के छात्रों के लिए बड़ा संकट होने वाला है।
प्रमुख समस्याएं जो हो सकती हैं
1. स्नातक के छात्रों के पास विकल्प रहेगा कि वह चार साल का स्नातक करता है तो उसे डिग्री विद रिसर्च मिलेगी। जो छात्र चार साल पढ़ाई नहीं करना चाहेंगे, उनके पास एक्जिट विकल्प होगा। समस्या यहीं से है।
2. विशेषज्ञों के मुताबिक लखनऊ विवि डिग्री विद रिसर्च का इंतजाम कर सकता है पर उन लाखों का क्या होगा, जो सम्बद्ध 500 से ज्यादा कॉलेजों में हैं।
3. लखनऊ में ही प्रमुख कॉलेजों को छोड़ दें तो कई के पास न पर्याप्त कोर्स हैं, न इतने रिसर्च के लिए शिक्षक।
4. कोई छात्र पहले वर्ष में एक्जिट लेगा तो सर्टिफिकेट कोर्स का प्रमाण पत्र मिलेगा, जो काम का नहीं होगा।
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