प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी अमेरिका की यात्र पर हैं। मौजूदा समय में भारत विकासशील देशों की प्रखर आवाज बन चुका है। सुरक्षा परिषद के सदस्य भी भारत की बातों को न केवल गंभीरता से लेते हैं, बल्कि उसके अनुपालन का प्रयास भी करते हैं। जलवायु परिवर्तन, सबको सस्ती वैक्सीन की उपलब्धता, गरीबी उन्मूलन समेत महिला सशक्तीकरण और आतंकवाद जैसे तमाम मुद्दों पर भारत की राय काफी प्रशंसनीय रही है। अमेरिका के इसी दौरे में क्वाड देशों के नेताओं की मुलाकात भी सुनिश्चित है।
खास यह भी है कि क्वाड सहयोगियों के साथ भारत टू-प्लस-टू की वार्ता पहले ही कर चुका है। 12 मार्च, 2021 को क्वाड देशों की वर्चुअल बैठक हो चुकी है।यात्र के अंतिम दिन मोदी वाशिंगटन से न्यूयार्क की ओर प्रस्थान करेंगे जहां संयुक्त राष्ट्र महासभा को संबोधित करना है। विदेश मंत्री एस जयशंकर ने यूएन महासभा में तुर्की द्वारा कश्मीर मुद्दा उठाने पर करारा जवाब दिया है। जाहिर है कश्मीर के बहाने जो देश भारत को लेकर अनाप-शनाप बयानबाजी करेंगे उनसे निपटने में भारत की रणनीति कहीं अधिक सक्षम और प्रबल रहेगी। यह उसी की एक बानगी थी।वैसे जो बाइडन के साथ प्रधानमंत्री मोदी की पहली व्यक्तिगत द्विपक्षीय वार्ता की सफलता काफी हद तक इस बात पर भी निर्भर करेगी कि अफगानिस्तान के बदले हालात पर उनका रवैया क्या है? हालांकि यहां स्पष्ट कर दें कि भारत अब दुनिया के मंच पर खुलकर बात करता है। ऐसे में क्वाड समेत तमाम देशों से द्विपक्षीय मामले में भारत की बातचीत राष्ट्रहित के अलावा वैश्विक हित को ही बल देगी।
दक्षिण एशिया में शांति बहाली का एक मात्र जरिया भारत ही है। आसियान देशों में भारत का सम्मान, ब्रिक्स में उसकी उपादेयता और यूरोपीय देशों के साथ द्विपक्षीय बाजार और व्यापार समेत कई बातें भारत की ताकत को न केवल बड़ा करती हैं, बल्कि अपेक्षाओं से युक्त भी बनाती हैं। चीन के साथ अमेरिका की तनातनी और भारत की दुश्मनी एक ऐसे मोड़ पर है जहां से भारत अमेरिका के लिए न केवल बड़ी उम्मीद है, बल्कि एशियाई देशों में एक बड़ा बाजार और साझीदार है।
भले ही मोदी और बाइडन के बीच व्यक्तिगत कैमिस्ट्री नहीं है, मगर रणनीतिक हित दोनों समझते हैं। चीन द्वारा क्वाड समूह को शुरुआती दौर में ही दक्षिण एशिया के नाटो के रूप में संबोधित किए जाने से उसकी चिंता का अंदाजा लगाया जा सकता है। उसका आरोप है कि उसे घेरने के लिए यह एक चतुष्पक्षीय सैन्य गठबंधन है, जो क्षेत्र की स्थिरता के लिए एक चुनौती उत्पन्न कर सकता है। ऐसे में इससे हिंद प्रशांत क्षेत्र में भारत की भूमिका बढ़ेगी। चीन को संतुलित करने में यह काम आएगा और दक्षिण-चीन सागर में उसके एकाधिकार को चोट भी पहुंचाई जा सकती है।