शिवसेना ने अपने संपादकीय में विपक्ष को निशाने पर लेते हुए यूपीए गठबंधन का नेतृत्व राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (एनसीपी) के मुखिया शरद पवार को सौंपने की वकालत कर दी है। इसके अलावा, संपादकीय में कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष और वायनाड सांसद राहुल गांधी की नेतृत्व क्षमता पर भी सवालिया निशान खड़े किए गए है।
ऐसे में यह देखना दिलचस्प होगा कि शिवसेना के इस कदम का प्रभाव महाराष्ट्र में महाविकास अघाडी सरकार पर पड़ता है या नहीं। महाराष्ट्र में शिवसेना, एनसीपी और कांग्रेस ने मिलकर सरकार का गठन किया है। वहीं, वर्तमान में यूपीए गठबंधन की कमान कांग्रेस की अंतरिम अध्यक्ष सोनिया गांधी के हाथों में हैं।
संपादकीय में कहा गया है कि भाजपा का विरोध करने के लिए जब तक यूपीए के सभी दल शामिल नहीं होंगे, तब तक विपक्ष सरकार के आगे बेअसर नजर आएगा। शिवसेना ने कहा, प्रियंका गांधी को दिल्ली की सड़क पर हिरासत में लिया गया, राहुल गांधी का मजाक उड़ाया गया, यहां महाराष्ट्र में सरकार को काम करने से रोका जा रहा है, यह पूरी तरह लोकतंत्र के खिलाफ है।
शिवसेना ने विपक्ष को निशाने पर लेते हुए अपने संपादकीय में लिखा, किसानों द्वारा दिल्ली की सीमाओं पर प्रदर्शन किया जा रहा है। सत्ता पक्ष को इस आंदोलन की फिक्र नहीं है। सरकार के इस रवैया का कारण है, कमजोर विपक्ष। मौजूदा विपक्ष पूरी तरह बेजान है, विपक्षियों की अवस्था बंजर गांव के मुखिया का पद संभालने जैसी है। इस कारण ही प्रदर्शन कर रहे किसानों की सुध लेने वाला कोई नहीं है। बंजर गांव के हालात को सुधारने की जरूरत है। विपक्ष के इस हाल के लिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी या गृह मंत्री अमित शाह जिम्मेदार नहीं है। विपक्ष इसका जिम्मेदार है और इसे आगे आकर इसकी जिम्मेदारी लेनी होगी।
सामना ने लिखा गया है कि यूपीए नाम के एक राजनीतिक संगठन की कमान कांग्रेस के नेतृत्व में है। यूपीए वर्तमान में एक एनजीओ की तरह प्रतीत हो रहा है, यही वजह है कि इस गठबंधन में शामिल पार्टियां किसान आंदोलन को लेकर बेफिक्र हैं। एनसीपी के अलावा इस गठबंधन में शामिल किसी भी पार्टी ने मुखर होकर आवाज नहीं उठाई है।
शिवसेना ने सामना में लिखा है कि राष्ट्रीय स्तर पर शरद पवार का व्यक्तित्व बिल्कुल अलग है। उनके राजनीतिक अनुभव का फायदा प्रधानमंत्री से लेकर अन्य पार्टियां लेती हैं। ममता बनर्जी ने पश्चिम बंगाल में अकेले ही सरकार के खिलाफ मोर्चा खोला हुआ है। सत्ता के जोर के जरिए केंद्र सरकार ममता की पार्टी तृणमूल कांग्रेस (टीएमसी) को तोड़ने की कोशिश कर रही है। ऐसे वक्त में सभी विपक्षी दलों को चाहिए कि वे ममता को अपना समर्थन दें। लेकिन मुसीबत की इस घड़ी में ममता लगातार शरद पवार से संपर्क हैं। कुछ हलकों में कहा गया है कि शरद पवार बंगाल जा रहे हैं। ऐसी स्थिति में कांग्रेस को आगे आने की जरूरत थी, लेकिन कांग्रेस की स्थिति इतनी विकराल हो गई है कि पार्टी के पास पूर्णकालिक अध्यक्ष तक नहीं है।
संपादकीय में कांग्रेस के अगले अध्यक्ष के चुनाव पर भी सवाल खड़ा किया गया है। इसमें कहा गया है कि सोनिया गांधी कांग्रेस और यूपीए दोनों की अध्यक्ष हैं। अभी तक उन्होंने यूपीए अध्यक्ष की जिम्मेदारी को बखूबी संभाला है। लेकिन उनकी मदद के लिए मोतीलाल वोरा और अहमद पटेल हुआ करते थे, जो अब नहीं हैं। कांग्रेस के अगले अध्यक्ष और यूपीए के भविष्य को लेकर भ्रम बरकरार है।
राहुल गांधी को लेकर संपादकीय में कहा गया है कि राहुल गांधी व्यक्तिगत तौर पर सरकार पर दबाव बनाने के लिए भरसक प्रयास कर रहे हैं, लेकिन कहीं ना कहीं कुछ कमी है। टीएमसी, शिवसेना, अकाली दल, बीएसपी, जगन मोहन रेड्डी, नवीन पटनायक कृषि कानूनों को लेकर भाजपा का विरोध कर रहे हैं। लेकिन कांग्रेस के नेतृत्व वाले यूपीए में ये लोग शामिल नहीं हैं। ऐसे में इन पार्टियों का यूपीए में शामिल हुए बिना सरकार को घेरने का प्रयास नाकामयाब रहने वाला है।