बिहार चुनाव खत्म होते ही 2022 के उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव के मद्देनजर बहुजन समाज पार्टी ने अपने संगठनात्मक मजबूती के लिए प्रदेश अध्यक्ष बदल दिया है. बसपा अध्यक्ष मायावती ने मुनकाद अली को प्रदेश अध्यक्ष पद से हटाकर भीम राजभर को पार्टी की कमान सौंप दी है. राजभर के जरिए बसपा की नजर सूबे के अतिपिछड़ी जाति के वोटों को साधने की रणनीति के तौर पर देखा जा रहा है.
भीम राजभर मऊ जनपद के रहने वाले हैं और वह लंबे समय से बसपा के संगठन में अलग-अलग पदों पर जिम्मेदारी संभाल चुके हैं. अभी तक वे आजमगढ़ मंडल के जोनल कोऑर्डिनेटर की जिम्मेदारी संभाल रहे थे. भीम राजभर को बसपा ने हाल ही में हुए बिहार चुनाव की जिम्मेदारी दे रखी थी, जहां पार्टी एक सीट जीतने में कामयाब रही है. भीम राजभर साल 2012 के विधानसभा चुनाव में बसपा के टिकट पर बाहुबली मुख्तार अंसारी के खिलाफ किस्मत आजमा चुके हैं. हालांकि, अब दोनों लोग एक ही पार्टी में हैं.
भीम राजभर का जन्म 3 सितंबर 1968 में को मऊ जनपद के कोपगंज ब्लॉक के मोहम्मदपुर बाबूपुर गांव में हुआ था. भीम राजभर ने अपनी प्राथमिक पढ़ाई महाराष्ट्र से और सेकेंड्री शिक्षा नागपुर से प्राप्त की. भीम राजभर के पिता रामबली राजभर कोल्ड फील्ड में सिक्योरिटी इंचार्ज के पद पर नौकरी की. उन्होंने 1985 में ग्रेजुएशन किया और 1987 में पोस्ट ग्रेजुएशन किया. एलएलबी पास भीम ने एक अधिवक्ता होने के साथ बसपा से ही अपने राजनीतिक सफर की शुरुआत साल 1985 में की थी. वे बसपा के मऊ जिलाध्यक्ष भी रहे हैं.
दरअसल, यूपी के पूर्वांचल में अतिपिछड़ा समुदाय से आने वाले राजभर समुदाय काफी अहम माना जा रहा है. मऊ, आजमगढ़, वाराणसी और बलिया आदि जिलों में राजभर जाति निर्णायक भूमिका में है. दलितों को एक बड़ा तबका अभी भी मायावती के साथ है, लेकिन बसपा के अन्य जातियों के वोटबैंक में बीजेपी ने सेंधमारी कर ली है. इसका असर 2014 से लेकर अब तक हुए लोकसभा व विधानसभा चुनाव में साफ देखने को मिला है. ऐसे में बसपा अपना खोए हुए जनाधार को वापस लाने की कवायद में लगातार जुटी है.
सूबे में राजभर वोट एक समय बसपा का मजबूत वोटबैंक हुआ करता था, लेकिन 2012 के बाद से यह लगातार छिटकता जा रहा है. राजभर वोटों का साधने के लिए मायावती ने रामअचल राजभर को भी प्रदेश अध्यक्ष बनाया था, लेकिन राजनीतिक तौर पर सफल नहीं रहे. अब एक बार फिर अतिपिछड़ा समाज को साधने के लिए मायावती ने भीम राजभर का प्रदेश अध्यक्ष बनाया है.
बसपा आलाकमान का फोकस है कि संगठन को बूथ स्तर तक मजबूत किया जाए ताकि आने वाले चुनाव में एक बेहतर सियासी समीकरण के साथ बहुजन समाज पार्टी सभी सीटों पर प्रमुखता से चुनाव लड़ सके. इसी के मद्देनजर मायावती ने मुनकाद अली को हटाकर भीम राजभर को पार्टी की कमान सौंपी है. दरअसल, माना जा रहा है कि मायावती के बीजेपी के प्रति नरम रुख अपनाए जाने के चलते मुस्लिम समाज में बसपा को लेकर संशय बना हुई है.
मुनकाद अली प्रदेश अध्यक्ष रहते हुई भी मुस्लिम वोटरों को बसपा को पक्ष में बनाए रखने में सफल नहीं रहे हैं. यही वजह है कि मायावती ने सिंतबर 2020 में मुनकाद अली को उत्तराखंड प्रभारी के पद से मुक्त किया था और साथ ही अलीगढ़ आगरा मंडल के सेक्टर से बदलकर अब पूर्वांचल के चार मंडलों की जिम्मेदारी सौंपी थी. बसपा के मुस्लिम विधायकों के द्वारा किए गए बगावत को रोक पाने में मुनकाद अली सफल नहीं रहे हैं. यही वजह है कि मायावती अब मुस्लिम के बजाय अतिपिछड़ा वोटरों का साधने का दांव चल रही हैं. ऐसे में देखना होगा कि मायावती भीम राजभर के जरिए सूबे में अतिपिछड़ा समुदाय को पार्टी में वापस लाने में कितना सफल होती हैं?