हाल में मेरे एक मित्र ने मुझे बताया कि वह एक मकान खरीदने वाले हैं। मैंने उन्हें घर खरीदने से पहले किसी एक्सपर्ट से लीगल ओपिनियन लेने का सुझाव दिया। इस पर उन्होंने जवाब दिया कि ‘बैंक अपनी ओर से जरूरी जांच-पड़ताल कर रहा है, ऐसे में कानूनी राय के लिए हमें अलग से पैसे खर्च करने की क्या जरूरत है।’ इसके बाद मैंने उन्हें विस्तार से बताया कि घर खरीदते समय बैंक जो जरूरी जांच-पड़ताल करता है, उसके बाद भी कुछ चीजों को लेकर विशेषज्ञ से राय लेना बहुत महत्वपूर्ण होता है। इसके बाद मेरे दिमाग में इस विषय पर आलेख लिखने का विचार आया। संपत्ति की लेनदेन से जुड़े कानून काफी जटिल होते हैं और कई बार काफी जानकार व्यक्ति को भी इसे समझने में काफी अधिक दिक्कत पेश आती है।
आइए यह समझने की कोशिश करते हैं कि बैंक के वकील द्वारा जांच-पड़ताल किए जाने के बावजूद स्वतंत्र तरीके से कानूनी राय लेना क्यों अहम है।
संपत्ति से जुड़े कानूनों का मूल्यांकन
बैंक द्वारा नियुक्त वकील सिर्फ इस बात की जांच करता है कि मकान का टाइटल यानी स्वामित्व से जुड़ी जानकारी सही है या नहीं। साथ ही संपत्ति के टाइटल को लेकर किसी तरह का विवाद तो नहीं है। यहां आप फर्ज करिए कि आप किसी गंभीर बीमारी के इलाज से पहले दूसरे डॉक्टर से भी एक राय जरूर ले लेते हैं। इसी तरह संपत्ति खरीदने से पहले अपने वकील से एक बार सलाह करना काफी अच्छा रहता है क्योंकि आपको लेंडर द्वारा नियुक्त वकील की पेशेवर क्षमता के बारे में कोई जानकारी नहीं होती है।
वहीं, प्रोपर्टी के डेवलपमेंट और निर्माण को लेकर स्थानीय नगर निकाय और राज्य सरकार के कानून में अंतर हो सकता है। ऐसे में स्वतंत्र स्तर पर ली गई राय काफी अहम हो सकती है क्योंकि कई बार लेंडर के वकील इन बातों पर खास ध्यान नहीं देते हैं। ऐसे में आपकी प्रोपर्टी बाद में किसी तरह के पचड़े में ना पड़े, इसके लिए कुछ अतिरिक्त राशि खर्च करने लेने में कोई बुराई नहीं है।