गंगा किनारे एक मंदिर ऐसा है, जहां पर प्रतिदिन सुबह पट खुलने पर शिवलिंग पर सफेद फूल और जल चढ़ा मिलता है। कहा जाता है कि इस मंदिर में रोजाना रात में अश्वस्तथामा पूजन करने आते हैं। करीब सात सौ साल पहले खुदाई में मिले शिवलिंग की स्थापना करके मंदिर बनवाया गया था और तब से इसे खेरेश्वर बाबा के मंदिर के नाम से जाना जाता है।
गंगा किनारे स्थापित है मंदिर
कानपुर के शिवराजपुर कस्बे में गंगा नदी से ढाई किमी दूर खेरेश्वर मंदिर स्थापित है। इस मंदिर के पास ही एक प्राचीन तालाब है, जिसकी मान्यता है कि उसमें स्नान करने से त्वचा व कुष्ठ रोग दूर हो जाते हैं। पुजारी की मानें तो प्रतिदिन मंदिर का पट खोलने पर शिवलिंग के ऊपर सफेद फूल और जल चढ़ा मिलता है। यह क्रम सैकड़ों वर्षों से चला आ रहा है। वह बताते हैं पहले कई बार लोगों ने रात में जागकर मंदिर की निगरानी की लेकिन भोर होने से पहले उनकी झपकी लग गई। काफी समय पहले कुछ लोग रात में जागते रहे और भोर होने पर उन्हें एक विकराल सफेद साया दिखाई दिया। उसे देखकर वो भयवश बेहोश हो गए और सुबह कुछ भी ठीक से बताने में घबराते रहे।
प्रतिदिन पूजन करने आते है अश्वस्तथामा
महाभारत में गुरु द्रोण पुत्र अश्वस्तथामा को अजर अमर माना गया है। उन्हें शिवजी का अवतार भी कहा जाता है और उनके मस्तक पर मणि होने की भी उल्लेख मिलता है। लोग कहते हैं कि महाभारत काल में यहां अश्वस्तथामा पूजन करते रहे हैं और आज भी वो ही पूजन करते आते हैं। इस बात की पुष्टि मंदिर के पुजारी सुरेंद्र कुमार गिरी उर्फ कल्लू बाबा भी करते हैं।
बुजुर्ग बताते हैं कि उन्होंने अपने पूर्वजों से सुना है कि गंगा किनारे जंगल में गाय एक स्थान पर खड़ी हो जाती थीं और अपना सारा दूध निकाल देती थीं। परेशान गौपालकों ने जब उस स्थान पर की खुदाई की तो शिवलिंग निकला था। काफी प्रयास के बाद भी कोई शिवलिंग को हिला न सका तो उसी जगह पर मंदिर का निर्माण करा दिया गया था। शिवलिंग निकलने के बाद से ही सफेद पुष्प अर्पित मिल रहे हैं।
विशेष है मान्यता
पुजारी कल्लू बाबा बताते हैं कि मंदिर में खेरेश्वर बाबा के पूजन की विशेष मान्यता है, यहां दर्शन पूजन करने से मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं। सावन में एक माह तक मेला चलता है और शिवरात्रि पर विशेष पूजन का कार्यक्रम होता है। मंदिर में ग्रामीण व शहरी इलाके के अलावा दूरस्थ जनपदों से लोग दर्शन पूजन करने आते हैं। शिवरात्रि पर कांवडिय़ों की भीड़ लगती है। भक्त व कांवडि़ए गंगा जल लेकर ढाई किमी पैदल चलकर मंदिर पहुंचते हैं और जलाभिषेक करते हैं। महाशिवरात्रि पर सुबह रुद्राभिषेक का अनुष्ठान संपन्न होता है।