शास्त्रों में लिखा है की हर जीव की तीन आंखें होती हैं। लेकिन पुरे ब्रम्हांड में सिर्फ शिव शंकर एक ऐसे हैं, जिनकी तीसरी आंख दिखाई देती हैं।
ऐसे में जब दुनिया के हर जीव की तीन आंखे होती है तो सिर्फ शिव शंकर की ही तीसरी आंख क्यों दिखाई देती है। यह एक बहुत बड़ा राज है, जिसके बारे में बहुत कम लोग ही जानते है।
आज हम आपको बताएँगे शिव की तीसरी आँख का राज –
– भगवान शिव त्रिलोचन नाम से भी जाना जाता है, जिसका अर्थ है 3 आंखों वाला होता है।
– भगवान शिव शंकर सृष्टि में एक मात्र है, जिनके त्रि नेत्र है। शास्त्रों के अनुसार शंकर की दो नेत्रों में एक चंद्रमा और दूसरा सूर्य कहा गया है, जो खुलते बंद होते है, जबकि तीसरी आँख को विवेक कहा गया है।
– शंकर एक मात्र देव है, जिनकी आंखों से सत्य कभी नहीं छिप सकता इसलिए शिव को परमब्रह्म कहा जाता है।
– यह तीसरी आँख ज्ञान चक्षु होती है। इसको विवेक यानी बुद्धि का प्रतीक भी कहा जाता है।
इसलिए शंकर जी अपनी तीसरी आंख हमेशा ही बंद किये रहते है और यह तीसरी आँख तब खुलती है जब भगवान शंकर के मन में क्रोध की अधिकता होने लगती है और विवेक विचलित होता है, जिसके कारण प्रलय आने लगता है। यह त्रिनेत्र हर मनुष्य को प्राप्त है, जो अत:प्रेरणा के सामान अंदर होता है, जिसको जगाने के लिए कठोर साधन और ज्ञान की जरुरत होती है।
वास्तव में यह तीसरी आंख काम, वासना, क्रोध, लोभ, मोह, और अहंकार को काबू में रखती है और आत्मा को जन्म मरण से मुक्त कराती है। सांसरिक दृष्टि से कहा जाए तो यह आंख संसार में सही गलत जीवन में आने वाली कठिनाई और समस्याओं से अवगत कराती है और सही रास्ता दिखाती है। अपने तीसरे नेत्र की सहायता से हम ज्ञान प्राप्त कर काम, क्रोध, लोभ, मोह और अहंकार को समाप्त कर सकते है और जीवन मरण के चक्र से खुद को मुक्त कर सकते है। वेदों में भगवान शंकर के इस तीसरी आंख को प्रलय कहा गया है। इस तरह यह तीनो नेत्र त्रिकाल का प्रतीक माना जाता है जो भूत, वर्तमान, भविष्य को बताते है। भगवान शिव शंकर के इस त्रिनेत्र को त्रिकाल दृष्टा भी कहते है। इन त्रिनेत्रों में त्रिलोक बसा हुआ है त्रिलोक का तात्पर्य पाताल, धरती और आकाश है. इसलिए भगवान शिव शंकर को त्रिलोक स्वामी भी कहा जाता है।