जयपुर: कानून की जानकारी के अभाव में लोग यूं ही खामियाजा भुगतते रहते हैं। राजस्थान के जयपुर में भी इसकी एक बानगी सामने आई है।
उस शख्स को 11 साल पहले उम्र कैद हुई थी। तुंरत ही ऊपरी अदालत ने याचिका दाखिल करता तो शायद जमानत मिल जाती, लेकिन उसे पता ही नहीं था कि वह ऐसा कर सकता है। बस सजा काटता रहा।
अब पता चला तो राजस्थान हाईकोर्ट से अनुमति मांगी। हाईकोर्ट ने भी कह दिया है कि वह निचली अदालत की सुनाई सजा को चुनौती दे सकता है।
राजस्थान हाईकोर्ट की जस्टिस केएस आहलूवालिया और वीके माथूर की खंडपीठ कैदी विकास के अपील पर सुनवाई कर रही थी। सुनवाई के दौरान जजों ने पूछा कि इतने साल तक फैसले को चुनौती क्यों नहीं दी, तो उनसे साफ कहा कि मुझे इस प्रावधान की जानकारी नहीं थी।
इसके बाद कोर्ट ने डीपीजी (जेल) को निर्देश दिए कि प्रदेश की सभी जेलों में सर्कूलर जारी किया जाए, ताकि जेल में लाते समय ही कैदियों को जानकारी दी जा सके कि उन्हें फैसले के खिलाफ ऊपरी अदालत का दरवाजा खटखटाने का अधिकार है तथा वे जेल में रहते हुए खुद ही ऐसा कर सकते हैं। साथ ही स्टेट लीगल एड अथॉरिटी को जेलों में कैंप लगाने को भी कहा गया है ताकि कैदियों को कानून के प्रावधानों की जानकारी दी जा सके।
क्या कहता है नियम
सामान्यतः निचली अदालत का फैसला आने के 90 दिन भीतर ऊपरी अदालत ने याचिका दाखिल करना अनिवार्य है।
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