एक ओर बर्फबारी न होने से उच्च हिमालयी पहाड़ियों के दरकने से पर्यावरणविद चिंतित हैं तो भू-वैज्ञानिक परेशान हैं कि पहाड़ों पर बर्फबारी जितनी अधिक बढ़ेगी भूकंप के झटके उतने तेज होते जाएंगे।बर्फबारी होने और न होने से दोनों में नुकसान की ऐसी आशंका से उत्तराखंड पहली बार दो-चार हो रहा है। मौसम और भू-वैज्ञानिक कहते हैं कि क्लाइमेंट चेंज क्या गुल खिला सकता है, यह इसका अपूर्व नजारा है। गौरतलब है कि 11500 की ऊंचाई पर स्थित केदारनाथ में पिछले डेढ़ महीने से न बारिश हुई है न ही बर्फबारी। दिन का पारा 24 डिग्री तक पहुंच रहा है, नतीजा सूखे से केदारनाथ की पहाड़ियां दरक रहीं हैं।मौसम वैज्ञानिक इस बदलाव के लिए कहीं न कहीं क्लाइमेंट चेंज को जिम्मेदार मान रहे हैं। उनका कहना है कि इस मौसम में 10 फुट से ज्यादा बर्फ जमी रहती थी। ऐसी स्थितियां केवल केदारनाथ ही नहीं हिमालय के बड़े क्षेत्र में बन रहीं हैं। अजीबोगरीब यह है कि इस हालात को भू-वैज्ञानिक सुकून की नजर से देख रहे हैं।पिछले सोमवार, बुधवार और फिर सोमवार को एक हफ्ते के भीतर तीन बार उत्तरकाशी में काफी कम तीव्रता के झटके महसूस किए गए हैं। इससे पहले चमोली और पिथौरागढ़ में भी हल्के भूकंप के झटके महसूस किए गए हैं। भू-वैज्ञानिकों का मानना है कि बर्फबारी का दबाव अधिक बढ़ने से भूगर्भ की प्लेटों पर असर आता है। अधिक बर्फबारी पर भूकंप के झटकों के बढ़ने की आशंका ज्यादा हो जाती है।भूगर्भ की प्लेटों के दबने की वजह से इनके नीचे संचित ऊर्जा इधर-उधर खिसकने लगती है, जिससे धरती की सतह पर झटके महसूस किए जाते हैं। संभव है कि अधिक बर्फ का दबाव न होने की वजह से यह झटके ज्यादा तीव्रता में तब्दील न हो पा रहे हों। यह एक अनुमान है और हम विभिन्न परीक्षणों द्वारा इसे पुष्ट करने की कोशिश कर रहे हैं।भू-वैज्ञानिक कहते हैं कि हम केवल इसी धारणा पर मुगालते में नहीं रहना चाहते हैं, इस क्षेत्र में भूकंप के हल्के झटकों को लेकर हम काफी गंभीर हैं। कंपन दिल्ली, एनसीआर, यूपी आदि नीचे के क्षेत्रों में भी महसूस किया गया है। नेपाल भूकंप का ‘आफ्टर शॉक’ इस क्षेत्र में अभी सक्रिय है।इस क्षेत्र में भूकंप के दौरान ऊर्जा निकलने से खिसकीं भूगर्भ प्लेटें अपनी जगह बना रही हैं। इसके साथ ही कई स्थानों पर भूकंप पट्टियां सक्रिय हो गई हैं। विज्ञानियों ने यह भी आशंका व्यक्त की थी कि नेपाल भूकंप की पूरी ऊर्जा रिलीज नहीं हुई, जिससे आपदा प्रबंधन के संबंध में चौंकने रहने की जरूरत है।भू-वैज्ञानिकों का कहना है कि हिमालयी क्षेत्र के गर्भ में हो रही हलचल से बड़े भूकंप की आशंका से इनकार नहीं किया जा सकता। विज्ञानी चौंकने हैं, वाडिया हिमालय भू विज्ञान संस्थान ने करीब 15 स्थानों पर भूगर्भ तरंगों के अध्ययन के लिए केंद्र बना दिए हैं। संस्थान के विज्ञानी इन पर भी नजर रखे हुए हैं। जाड़े के साथ चौकसी और बढ़ा दी गई है।
सतह पर बर्फबारी का नीचे की प्लेट पर प्रेशर पड़ता है। इससे प्लेटें इधर-उधर खिसक सकती हैं। इससे भूगर्भीय ऊर्जा प्रभावित होती है। जिससे भूकंप के झटके बढ़ सकते हैं। यह एक मेकेनिज्म है। प्रेशर घटने से भी भूगर्भीय प्लेटों पर असर आता है।