अयोध्या मामले पर सुप्रीम कोर्ट के फैसले से राम मंदिर निर्माण का मामला फिर चर्चा में है। साथ ही याद इा गई है करीब तीन दशक पहले भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) के वरिष्ठ नेता लालकृष्ण आडवाणी की वो रथ यात्रा, जिसे बिहार में तत्कालीन मुख्यमंत्री लालू प्रसाद यादव ने रोककर आडवाणी को गिरफ्तार कर लिया था। इस घटना ने सारे सियासी समीकरण उलट-पुलट डाले थे। साथ ही भविष्य में कई तरह के राजनीतिक बदलाव के बीज भी उग आए थे।
इस घटना ने उस वक्त के छोटे कद के नेता लालू प्रसाद को अचानक ही राष्ट्रीय पहचान दिला दी थी। लालू को ललकार कर नरेंद्र मोदी ने भी संकेत दे दिए थे कि उनकी सैद्धांतिक और वैचारिक प्रतिबद्धता का रथ ज्यादा दिनों तक झुरमुट में छुपा नहीं रह सकेगा। तब नरेंद्र मोदी, आडवाणी की रथयात्रा के सूत्रधार थे।
सोमनाथ से समस्तीपुर पहुंची थी रथ यात्रा
दौर अक्टूबर 1990 का था। अयोध्या में राम मंदिर निर्माण के संकल्प के साथ आडवाणी रथ यात्रा लेकर गुजरात के सोमनाथ से बिहार के समस्तीपुर पहुंचे थे। लालू प्रसाद यादव मुख्यमंत्री थे। तब उनका नाम आज की तरह मशहूर नहीं था। वे बीजेपी के समर्थन से पहली बार सत्ता में आए थे।
23 अक्टूबर 1990 को हुई गिरफ्तारी
आडवाणी के रथ को बिहार से होते हुए सात दिन बाद 30 अक्टूबर को अयोध्या पहुंचना था। हजारों स्वयंसेवकों को वहां आडवाणी के आने का इंतजार था। बिहार सरकार ने उन्हें पहले धनबाद में ही गिरफ्तार करने की तैयारी कर रखी थी, किंतु वहां के तत्कालीन जिलाधिकारी (डीएम) ने कानून व्यवस्था का हवाला देकर इनकार कर दिया। आखिरकार 23 अक्टूबर को लालू ने समस्तीपुर में रथ के पहिए को रोक दिया और आडवाणी को गिरफ्तार कर लिया।
दो भागों में बंट गई देश की राजनीति
लालू के इस कदम से देश की राजनीति वैचारिक रूप से दो भागों में बंट गई। एक धारा बीजेपी की थी और दूसरी उसके विरोध की। बिहार में हाशिये से निकलकर फ्रंट की राजनीति करने के लिए दो दशकों से संघर्ष कर रही बीजेपी को नई ऊर्जा मिल गई थी। उधर, लालू बीजेपी विरोधी राजनीति की धुरी बन गए।
‘माय’ समीकरण को मिला आधार
राम मंदिर की राजनीति के दायरे से बिहार अभी भी बाहर नहीं निकल पाया है। आडवाणी की गिरफ्तारी के बाद लालू की छवि बीजेपी विरोधी नेता के रूप में बन गई। इसका भरपूर फायदा मिला। वे मुस्लिमों और वामपंथियों के चहेते बन गए। बाद में उन्होंने माय (मुस्लिम और यादव गठजोड़) फॉर्मूला दिया, जिसके दम पर उन्होंने अगले डेढ़ दशक तक बिहार में निष्कंटक सरकार चलाई। आज भी ‘माय’ समीकरण लालू का मजबूत सियासी आधार है, जो अन्य पार्टियों को परेशान करता है।
कांग्रेस को भूल का खामियाजा
लालू प्रसाद को पहली बार बीजेपी के सहारे ही बिहार की सत्ता नसीब हुई थी। तब कांग्रेस मजबूती के साथ विपक्ष में थी। किंतु आडवाणी की गिरफ्तारी के बाद बीजेपी ने केंद्र के साथ लालू सरकार से भी समर्थन वापस ले लिया। कांग्रेस ने यहीं पर चूक कर दी और उसने बीजेपी की बढ़ती ताकत को रोकने के लिए लालू सरकार को थाम लिया। लालू सत्ता में बरकरार रहे, लेकिन कांग्रेस के वोटर खिसकने लगे। कुछ बीजेपी की तरफ आ गए तो कुछ को लालू ने ही हथिया लिया।