पितृपक्ष में इन परिजनों को है पितृों के श्राद्ध का अधिकार

श्राद्धकर्म के संबंध में शास्त्रों में कई सारी बाते कही गई है। इसमें विधि-विधान से लेकर उसके महिमामंडन तक का वर्णन किया गया है।

पितृकर्म कैसे किए जाते है, कौन कर सकता है इसकी विधि क्या है, कौन-कौन सी जगहों पर श्राद्ध किया जा सकता है इन सभी बातों का विस्तारपूर्वक वर्णन किया गया है। पितृों का पितृपक्ष के मौके पर धरती पर आगमन होता है और वे श्राद्धकर्म से तृप्त होते हैं।

अब यह बात भी सामने आती है परिवार में किसको श्राद्ध का अधिकार है और परिवार में किस-किस को पितृकर्म करने की पात्रता है। क्योंकि पात्र परिजन के हाथों ही श्राद्ध करने के विधान का शास्त्रों में वर्णन किया गया है।

शास्त्रों के अनुसार पिता की मृत्यु के बाद यदि मृतक पिता के एक से अधिक पुत्र हो और उनमें धन-संपत्ति का बंटवारा नहीं हुआ हो और सभी संयुक्त परिवार में रहते हो, एक ही जगह पर निवास करते हो अर्थीत एक छत के नीचे रहते हो तो ऐसी स्थिति में पिता का श्राद्ध आदि पितृकर्म परिवार के ज्येष्ठ पुत्र को करना चाहिए। इस स्थिति में सभी भाईयों को अलग-अलग पितृकर्म करने का प्रावधान नहीं है।

पुत्र करता है पिता का श्राद्ध

यदि दिवंगत पिता की संपत्ति का बंटवारा हो चुका है और उनके सभी पु‍त्र अलग-अलग निवास करते हो तो उस स्थिति में सभी पुत्रों को अलग-अलग श्राद्ध करना चाहिए। इसके साथ ही सनातन धर्मावलंबियों को अपने पहले की तीन पीढ़ियों पिता, पितामह तथा प्रपितामह के साथ-साथ अपने नाना तथा नानी का भी श्राद्ध अवश्य करना चाहिए।

पिता का श्राद्ध पुत्र को करना चाहिए। पुत्र ना होने की स्थिति में पत्नी श्राद्ध कर सकती है। यदि पत्नी ना हो तो सगा भाई श्राद्ध कर सकता है। भाई ना हो तो संपिंडों के श्राद्ध का प्रावधान है। पुत्र के ना होने पर पौत्र और प्रपौत्र श्राद्ध कर सकते हैं।

पौत्र और प्रपौत्र ना होने पर विधवा स्त्री श्राद्ध कर सकती है। पति- पत्नी का श्राद्ध तभी कर सकता है जब पुत्र ना हो। पुत्र, पौत्र, पुत्री का पुत्र ना होने पर भतीजा श्राद्ध कर सकता है। गोद लिया पुत्र और दामाद भी श्राद्ध कर सकता है।

इन पितृों का भी करना चाहिए श्राद्ध

पितृपक्ष के दौरान इनके अलावा गुरु, ससुर, ताऊ, चाचा, मामा, भाई, बहनोई, भतीजा,‍ शिष्य, जामाता, भानजा, फूफा, मौसा, पुत्र, मित्र, विमाता के पिता एवं इनकी पत्नियों का भी श्राद्ध करने का शास्त्रों में वर्णन किया गया है।

इन सभी दिवंगतों का उनकी पुण्यतिथि वाले दिन श्राद्ध करना चाहिए। मृत्युतिथि से मतलब उस तिथि से होता है, जिस दिन उन्होंने अंतिम सांस ली हो। अंतिम संस्कार वाली तिथि को मृत्युतिथि नहीं माना जाता है। इस दिन दोपहर के समय श्राद्धकर्म करना चाहिए। यदि तिथि का ज्ञान ना हो तो सर्व पितृ अमावस्या को श्राद्ध किया जा सकता है।

Powered by themekiller.com anime4online.com animextoon.com apk4phone.com tengag.com moviekillers.com