आपदा प्रभावित आराकोट क्षेत्र में मृतकों की संख्या 15 पहुंच चुकी है, जबकि प्रशासन के अनुसार 12 से अधिक लोग अब भी लापता हैं। आपदा के इन तीन दिनों में मृतकों के बढ़ते आंकड़े के बीच बड़ा फर्क ये नजर आ रहा है कि नदियों की आसमान छू रही लहरें अब शांत हैं।
बावजूद इसके आपदा प्रभावितों की पीड़ा पहाड़ जैसे बढ़ रही है और पीड़ितों को मुंह दिखाई जैसी रस्म निभाने नेताओं के पहुंचने का सिलसिला भी तेज हुआ है। इस सारे परिदृश्य के बीच पीड़ितों के उदास चेहरों और व्याकुल आंखों में आपदा की दास्तान साफ पढ़ी जा सकती है।
बारिश और बादलों के खौफ में जी रहे उत्तरकाशी जिले के आराकोट बंगाण क्षेत्र में मंगलवार सुबह से चटख धूप खिली। दो दिन पहले तक अपना रौद्र रूप दिखाने वाली पावर नदी का वेग भी काफी हद तक शांत है। लेकिन, कुदरत के कहर से खंडहर हुए घर, जिंदा दफन हुए लोग, मलबे में दबे वाहन, टूटे पुल, बही सड़कें, नदी-नालों व मलबे में जहां-तहां बिखरे सेब के फल और उदास चेहरों पर आपदा के जख्म साफ नजर आ रहे हैं।
सुबह से लेकर शाम तक राजकीय इंटर कॉलेज आराकोट और वन विश्राम गृह में ठहरे आपदा पीड़ितों की अपनों को तलाशती आंखें भविष्य को लेकर आशंकित हैं। इन्हीं पीड़ितों में शामिल हैं आराकोट की इंद्रा देवी। आसमान को एकटक निहारती उनकी आंखों में कई सवाल तैर रहे हैं। कुरेदने पर कहती हैं-घर-बार तो सब उफान में बह गया। अब यह खानाबदोश जिंदगी कब तक चलेगी, कुछ पता नहीं।
दिन चढ़ने लगा तो शिविर में नेताओं के आने का सिलसिला भी शुरू हो गया। इसी बीच नेपाली मूल की कुछ महिलाएं विकासनगर विधायक मुन्ना सिंह चौहान को घेरकर उनके सामने तंत्र की उपेक्षा और आपदा की पीड़ा बयां करने लगीं। महिलाएं बोलीं-हमारे परिवार के 20 लोग लापता हैं, उनकी खोजबीन में भी कुछ मदद कीजिए हुजूर।
सीएम के दौरे को लेकर प्रशासन आपदा राहत शिविर और राहत कैंप में व्यवस्थाओं को सही करने में जुटा हुआ है। जिलाधिकारी डॉ. आशीष चौहान के निर्देश पर सुबह दस बजे से पहले दो बार हेली से टिकोची, माकुड़ी व बलावट गांव में राहत पैकेट डाले जा चुके हैं। जबकि, चिवां व टिकोची के पास प्रभावित ग्रामीण जंगल में तिरपाल का टेंट लगाने में जुटे हैं।
कुछ देर में सीएम त्रिवेंद्र सिंह रावत के हेलीकॉप्टर ने प्रभावित इलाके का दौरा किया तो पीड़ित हेलीकॉप्टर से पानी व अन्य राहत सामग्री मिलने की उम्मीद लगा बैठे। दोपहर में सीएम आराकोट पहुंचे, प्रभावितों का ढांढस बंधाया। फिर कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष प्रीतम सिंह, पुरोला विधायक राजकुमार समेत अन्य नेताओं के आने-जाने का दौर भी चलता रहा।
स्पष्ट दिखाई दे रहे आपदा के जख्म
उफनती नदी और नाले कुछ शांत हुए तो आपदा के जख्म साफ नजर आने लगे। आपदा ने जो कहर बरपाया, उसका मंजर खौफनाक है। आराकोट से लेकर बलावट मोंडा तक आपदा ने जख्म ही जख्म दिए हैं। सबसे बुरी स्थिति आराकोट, सनेल, टिकोची, चिवां और माकुड़ी की है। यहां तक पहुंचाने वाली सड़क, पैदल रास्ते व पुल लापता हैं। मलबे में जगह-जगह दबे वाहनों को देखकर अंदाजा हो रहा है कि यहां भी सड़क रही होगी।
सेब की मंडी कहे जाने वाले टिकोची बाजार में एक भी दुकान ऐसी नहीं है, जहां एक कप चाय मिल सके। यहां सब-कुछ तबाह हो चुका है। चिवां उत्तरकाशी जिले का अंतिम बस स्टॉप माना जाता है, लेकिन यहां अब न सड़क बची है, न बस स्टॉप।
हर जिंदगी जोखिम में
सड़क व पैदल रास्तों के बह जाने से जिंदगी जोखिमभरी हो गई है। इससे सिर्फ गांव के लोग ही नहीं, बल्कि रेस्क्यू और राहत पहुंचाने वाले भी जूझ रहे हैं। यहां तक की हेली से जो राहत ड्रॉप की जा रही है, उसे लेने के लिए भी ग्रामीणों को दलदल से सने नाले पार करने पड़ रहे हैं। आइटीबीपी (भारत-तिब्बत सीमा पुलिस), एनडीआरएफ (राष्ट्रीय आपदा प्रतिवादन बल), एसडीआरएफ (राज्य आपदा प्रतिवादन बल) व पुलिस के जवानों के साथ रेडक्रॉस के स्वयंसेवक कंधों पर राहत सामग्री लेकर निकटवर्ती प्रभावित गांवों तक पहुंच रहे हैं।
प्रभावितों को राहत देने का इन सभी कर्मियों जुनून भी सलाम करने लायक है। मंगलवार शाम तक रेस्क्यू टीम टिकोची, चिवां व माकुड़ी में वैकल्पिक पैदल रास्ते तैयार करने के साथ अस्थायी हेलीपैड भी बना चुकी थी। इसके बाद ही चिवां, माकुड़ी और टिकोची में हेलीकॉप्टर से राहत सामग्री पहुंचाई जा सकी।
हर एक की पीड़ा पहाड़ जैसी
आराकोट की आपदा को तीन दिन बीत चुके हैं, लेकिन इसके जख्म आराकोट क्षेत्र के हर गांव को मिले हैं। गांव सुरक्षित भी हैं तो उनको जोड़ने वाले रास्ते नहीं बचे। मोंडा अंतिम गांव है। इस गांव में कुछ ही घर भूस्खलन की चपेट में आए, लेकिन सेब के बागीचों को भारी नुकसान पहुंचा। गांव में बीते चार दिन से बिजली गुल है और सड़क बंद होने से खाद्यान्न संकट भी गहरा गया है।
टिकोची के गुड्डू सिंह पंवार से जब हमने इस संबंध में बात की तो उनका कहना था कि टिकोची पर पहले आपदा का कहर टूटा और अब तंत्र की उपेक्षा का टूट रहा है। कहते हैं, उनकी दुकान, घर सब आपदा में बह गए। उधर, टिकोची व चिवां के पास जंगल में प्रभावितों ने खुद ही टेंट लगाया, जहां 50 से अधिक प्रभावित बच्चों के साथ रह रहे हैं। इन्हें सोमवार को कुछ राहत मिली थी, पर मंगलवार को इनकी शिकायत पीने के पानी व छोटे बच्चों के लिए दूध सहित अन्य वस्तुओं को लेकर थी।