लोकसभा चुनाव 2019 के छठे चरण में उत्तर प्रदेश की 14 सीटों पर 12 मई को वोट डाले जाएंगे. ये सारी सीटें पूर्वांचल इलाके में आती है. पिछले चुनाव में पूर्वांचल में मोदी लहर की रफ्तार को कम करने के लिए सपा के तत्कालीन अध्यक्ष मुलायम सिंह यादव आजमगढ़ सीट से मैदान में उतरे थे. लेकिन वह अपनी सीट के अलावा किसी दूसरी सीट पर साइकिल दौड़ाने में कामयाब नहीं हो सके. 2014 के लोकसभा चुनाव में 14 में से बीजेपी को 12 व सहयोगी अपना दल को एक और सपा को महज एक सीट से संतोष करना पड़ा था.
पांच साल के बाद इस बार मुलायम की तर्ज पर अखिलेश यादव पूर्वांचल को साधने के लिए आजमगढ़ की जमीन पर उतरे हैं. हालांकि इस बार अखिलेश ‘हाथी’ के सहारे सियासी संग्राम में हैं. लेकिन, उनके सामने एक तरफ मोदी-योगी की जोड़ी है तो दूसरी तरफ उन्हें कांग्रेस महासचिव प्रियंका गांधी के सक्रिय होने से कड़ी टक्कर मिल रही है. ऐसे में क्या अखिलेश पूर्वांचल में साइकिल को रफ्तार दे सकेंगे या फिर एक बार फिर बीजेपी कमल खिलाने में कामयाब रहेगी?
आजमगढ़:
आजमगढ़ लोकसभा सीट पर सपा अध्यक्ष अखिलेश यादव के सामने बीजेपी ने दिनेश लाल यादव (निरहुआ) को चुनावी मैदान में उतारा है. 2014 में अखिलेश यादव के पिता मुलायम सिंह यादव को इस सीट पर अपने ही शागिर्द रमाकांत यादव से जीतने में काफी मशक्कत करनी पड़ी थी. मुलायम को 3.40 लाख और रमाकांत को 2.77 लाख वोट मिले थे. जबकि सूबे की सत्ता पर सपा की सरकार थी और अखिलेश यादव मुख्यमंत्री थे. इसके बावजूद मुलायम करीब 60 हजार वोट से ही चुनाव जीत पाए थे.
इस बार के लोकसभा चुनाव में सपा और बसपा एक साथ हैं. मुलायम की जगह अखिलेश खुद मैदान में उतरे हैं तो वहीं, बीजेपी ने रमाकांत यादव की जगह दिनेश लाल यादव (निरहुआ) को उतारा है. 2017 के विधानसभा चुनाव में मोदी का मैजिक आजमगढ़ में नहीं नजर आया था. इसी का नतीजा था कि बीजेपी आजमगढ़ जिले की 10 सीटों में से महज एक सीट ही जीते में कामयाब रही थी. जबकि इस बार बसपा और सपा एक हैं. 2014 में यहां बसपा कैंडिडेट को 2.66 लाख वोट मिले थे. ऐसे में आजमगढ़ सीट पर अखिलेश के खिलाफ बीजेपी का कमल खिलना आसान नहीं है.
अंबेडकरनगर:
अंबेडकरनगर सीट गठबंधन के तहत बसपा के खाते में गई है, यहां से पार्टी ने रितेश पांडेय को अपना उम्मीदवार बनाया है. जबकि बीजेपी ने अपने मौजूदा सांसद हरिओम पांडेय का टिकट काटकर मुकुट विहारी वर्मा पर दांव लगाया है. वहीं, कांग्रेस के उम्मीदवार रहे फूलन देवी के पति उम्मेद सिंह का नामांकन रद्द हो गया है.
2014 में बीजेपी के हरिओम पांडेय ने बसपा के राकेश पांडेय को एक लाख चालीस हजार वोटों से हराया था. इस बार के बदले हुए समीकरण में बीजेपी ने कुर्मी समुदाय पर दांव लगाया है. जबकि बसपा ने ब्राह्मण दांव खेला है. इस सीट से मायावती सांसद रह चुकी हैं ऐसे में यहां पार्टी की मजबूत पकड़ मानी जाती है. पिछले चुनाव में मिले सपा और बसपा के वोट जोड़ दें तो बीजेपी से काफी ज्यादा पहुंचता है. ऐसे में बीजेपी के लिए यह सीट बरकरार रखना बड़ी चुनौती है.
प्रतापगढ़:
प्रतापगढ़ की सियासत की धुरी राजघरानों और सवर्ण समुदाय के इर्द-गिर्द ही घूमती है. राजघरानों से यदि सीट बाहर गई तो भी सवर्णों का ही कब्जा रहा. प्रतापगढ़ सीट पर राजा भैया के करीबी अक्षय प्रताप सिंह उर्फ गोपाल जनसत्ता पार्टी के उम्मीदवार हैं. गठबंधन के तहत बसपा के अशोक त्रिपाठी, कांग्रेस की राजकुमारी रत्नासिंह और बीजेपी के संगमलाल गुप्ता चुनावी मैदान में हैं. हालांकि 2014 में यह सीट अपना दल के खाते में गई थी और कुंवर हरिबंश सिंह जीतकर सांसद चुने गए थे.
इस बार के चुनाव में रत्ना सिंह राजपूत, मुस्लिम और ब्राह्मण मतदाताओं के सहारे जीत की उम्मीद लगाए हुए हैं.अक्षय प्रताप से ज्यादा राजा भैया की प्रतिष्ठा दांव पर लगी है. ऐसे में राजा उन्हें जिताने के लिए जमकर पसीना बहा रहे हैं, लेकिन उनका प्रभाव वाला इलाका अब प्रतापगढ़ के बजाय कौशांबी क्षेत्र में आता है. बसपा के अशोक त्रिपाठी ब्राह्मण, दलित और यादव मतों के सहारे जंग जीतना चाहते हैं. जबकि बीजेपी के उम्मीदवार संगमलाल गुप्ता मोदी लहर में अपनी जीत देख रहे हैं.
सुल्तानपुर:
सुल्तानपुर लोकसभा सीट पर इस बार बीजेपी से वरुण गांधी की जगह उनकी मां मेनका गांधी चुनावी मैदान में हैं. उनके सामने कांग्रेस से डॉ. संजय सिंह और बसपा से चंद्रभद्र सिंह हैं. पिछले चुनाव में वरुण गांधी ने इस सीट पर 4 लाख 10 हजार के करीब वोट हासिल कर सांसद बने थे. हालांकि उस समय सपा और बसपा अलग-अलग चुनावी मैदान में थे. इस बार के हालात बदले नजर आ रहे हैं. सपा-बसपा एक साथ मिलकर चुनावी मैदान में हैं और 2014 में इन दोनों पार्टियों के वोट मिला दें तो बीजेपी से करीब 50 हजार से ज्यादा होता है. ऐसे में बीजेपी के लिए यह सीट बरकरार रखना बड़ी चुनौती होगी
फूलपुर:
फूलपुर लोकसभा सीट देश के पहले प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू की सीट रही है, जहां 2014 में पहली बार बीजेपी मोदी लहर में कमल खिलाने में कामयाब रही थी. लेकिन 2018 में उपचुनाव में बीजेपी ने यह सीट सपा के हाथों गवां दी थी. 2019 के सियासी संग्राम में सपा ने अपने मौजूदा सांसद नागेंद्र सिंह पटेल का टिकट काटकर पंधारी यादव को उतारा है, जिनका मुकाबला बीजेपी की केशरी देवी पटेल और कांग्रेस के पंकज निरंजन से है. कुर्मी बहुल सीट होने के नाते बीजेपी और कांग्रेस दोनों ने कुर्मी समुदाय से अपना प्रत्याशी बनाया है. जबकि सपा ने यादव पर दांव लगाया है.
इलाहाबाद:
इलाहाबाद लोकसभा सीट पूर्व प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री, वीपी सिंह, जनेश्वर मिश्रा, मुरली मनोहर जोशी जैसे राजनीतिक दिग्गजों के साथ-साथ अमिताभ बच्चन की कर्मभूमि रही है. इस बार बीजेपी से रीता बहुगुणा जोशी, कांग्रेस से योगेश शुक्ला, सपा से राजेंद्र प्रताप सिंह पटेल उर्फ खरे और आम आदमी पार्टी से किन्नर अखाड़े की महामडलेश्वर भवानी नाथ वाल्मीकि सियासी रणभूमि में हैं. 2014 में यह सीट बीजेपी से श्यामा चरण गुप्ता जीतने में कामयाब रहे थे, लेकिन अब वो सपा का दामन थाम चुके हैं.
जौनपुर:
सिराजे हिन्द की नगरी के नाम से प्रसिद्ध जौनपुर की चुनावी जंग बसपा और बीजेपी के बीच सीधा मुकाबला माना जा रहा है. जौनपुर सीट पर बीजेपी ने अपने मौजूदा सांसद केपी सिंह को उतारा है. जबकि बसपा ने श्याम सिंह यादव और कांग्रेस ने देव व्रत मिश्र पर दांव लगाया है. 2014 में केपी सिंह ने करीब ढेड़ लाख मतों से जीत दर्ज की थी. हालांकि इस बार के सियासी समीकरण बदले हुए हैं सपा-बसपा एक साथ चुनावी मैदान में है. ऐसे में अगर बसपा और सपा के वोट मिला दें तो बीजेपी से कहीं ज्यादा हो जाता है. ऐसे में बीजेपी के लिए यह सीट बचाए रखने की बड़ी चुनौती है.
मछलीशहर:
जौनपुर जिले की मछलीशहर लोकसभा सीट पर बीजेपी ने अपने मौजूदा सांसद रामचरित्र निषाद का टिकट काटकर बीपी सरोज को उतारा है. जबकि बसपा ने त्रिभुवन राम को प्रत्याशी बनाया है. बता दें कि 2014 के लोकसभा चुनाव में रामचरित्र निषाद ने पौने दो लाख मतों से जीत हासिल की थी. इस बार के रण में बीजेपी ने बसपा से आए बीपी सरोज पर दांव लगाया है, जिसके चलते रामचरित्र निषाद ने बीजेपी छोड़कर सपा का दामन थाम लिया है. इस तरह से बदलते राजनीतिक समीकरण में मछलीशहर का मुकाबला काफी दिलचस्प हो गया है.
भदोही:
भदोही लोकसभा सीट की सियासी लड़ाई काफी दिलचस्प होती नजर आ रही है. यहां से बीजेपी ने अपने मौजूदा सांसद वीरेंद्र सिंह मस्त की जगह रमेश चंद्र बिंद को उतारा है. जबकि बसपा ने रंगनाथ मिश्रा और कांग्रेस ने रमाकांत यादव पर दांव लगाया है. 2014 में वीरेंद्र सिंह मस्त ने बसपा के राकेशधर त्रिपाठी को करीब ढेड़ लाख मतों से मात दी थी. हालांकि उस समय सपा से विजय मिश्रा की बेटी चुनावी मैदान में थी. इस बार के चुनाव में विजय मिश्रा ने बीजेपी के समर्थन में खड़े नजर आ रहे हैं. जबकि सपा और बसपा एक हैं, लेकिन कांग्रेस ने जिस तरह यादव उतारा है उससे मुकाबला त्रिकोणीय हो गया है.
लालगंज:
आजमगढ़ जिले की लालगंज लोकसभा सीट अनुसूचित जाति के लिए आरक्षित है. बीजेपी ने यहां से अपनी मौजूदा सांसद नीलम सोनकर को एक बार फिर उतारा है, जिनका मुकाबला बसपा की संगीता आजाद और कांग्रेस के पंकज मोहन सोनकर से है. 2014 में बीजेपी पहली बार इस सीट पर कमल खिलाने में कामयाब रही थी. इस बार के बदले हुए समीकरण सपा और बसपा एक साथ मिलकर चुनावी मैदान में हैं और दोनों पार्टियों के वोट तो बीजेपी के लिए इस बार की लड़ाई कठिन है. लालगंज सीट के तहत पांच विधानसभा सीटें आती हैं, जिनमें से चार सीटों पर सपा-बसपा का कब्जा है.
डुमरियागंज:
डुमरियागंज लोकसभा सीट पर जगदंबिका पाल की जीत की हैट्रिक लगाने के लिए बीजेपी से चुनावी मैदान में उतरे हैं. उनके सामने बसपा से आफताब आलम और कांग्रेस से डॉ. चंद्रेश उपाध्याय खड़े हैं. बता दें कि 2014 के लोकसभा चुनाव से ऐन पहले जगदंबिका पाल ने कांग्रेस का हाथ छोड़कर बीजेपी में शामिल होकर चुनावी मैदान में उतरे थे और उन्होंने करीब एक लाख मतों से जीत हासिल की थी.
इस बार सपा और बसपा मिलकर चुनावी मैदान में है तो वहीं, बीजेपी का साथ छोड़कर डॉ. चंद्रेश उपाध्याय कांग्रेस से ताल ठोंक रहे हैं. इससे बीजेपी के लिए मुश्किलें बढ़ गई हैं. 2014 में मिले सपा और बसपा के वोट को जोड़ दें तो बीजेपी के लिए यह सीट जीतना आसान नहीं है. इतना ही नहीं यहां के जातीय समीकरण को देखें तो करीब 43 फीसदी मुस्लिम मतदाता हैं. इसके अलावा यादव और दलित समुदाय के सहारे बसपा के आफताब आलम बीजेपी के जगदंबिका पाल की हैट्रिक लगाने के मंसूबों पर पानी फेरना चाहते हैं.
श्रावस्ती:
श्रावस्ती लोकसभा सीट से बीजेपी ने अपने मौजूदा सांसद दद्दन मिश्र को उतारा है. जबकि कांग्रेस ने धीरेन्द्र प्रताप सिंह (धीरू) और बसपा ने राम शिरोमणि वर्मा को उतारा है. 2014 में दद्दन मिश्र ने सपा के अतीक अहमद को एक लाख से ज्यादा मतों से जीत दर्ज की थी. हालांकि इस बार के चुनावी संग्राम में पिछली बार के कई महारथी मैदान में नहीं हैं, लेकिन तीनों मजबूत उम्मीदवार के होने से मुकाबला त्रिकोणीय हो गया है.
संतकबीर नगर:
संतकबीर नगर सीट पर बीजेपी ने अपने मौजूदा सांसद शरद त्रिपाठी का टिकट काटकर सपा से आए प्रवीण निषाद को मैदान में उतारा है. बसपा ने यहां बाहुबली हरिशंकर तिवारी के बेटे भीष्मशंकर उर्फ कुशल तिवारी और कांग्रेस ने भालचंद्र यादव पर दांव लगाया है. इस इलाके के यादव समुदाय के बीच भालचंद्र की मजबूत पकड़ मानी जाती है, जिससे महागठबंधन के रणनीतिकारों की नींद उड़ गई है.
हालांकि बीजेपी यहां मोदी-योगी के सहारे जीत की आस लगाए हुए है. जबकि बसपा दलित, मुस्लिम और ब्राह्मण मतों के सहारे जीत उम्मीद लगाए हुए, लेकिन भालचंद्र ने आखिर वक्त में कांग्रेस से उतरकर मुकाबले को दिलचस्प बना दिया है.
बस्ती:
बस्ती लोकसभा सीट से बीजेपी ने अपने मौजूदा सांसद हरीश द्विवेदी दोबारा टिकट दिया है. जबकि बसपा ने यहां से पूर्व मंत्री राम प्रसाद चौधरी और कांग्रेस ने राजकिशोर सिंह को मैदान में उतारकर चुनाव मुकाबले त्रिकोणीय बना दिया है. 2014 में राजकिशोर के भाई बृजकिशोर सिंह डिंपल सपा से चुनाव मैदान में उतरे थे, जो बीजेपी के हरीश द्विवेदी से महज 33 हजार वोटों से हार गए थे. इस बार यह सीट गठबंधन के तहत बसपा के खाते में गई है, जिससे वो नाराज होकर कांग्रेस का दामन थाम लिया है. इसके चलते यहां का मुकाबला काफी दिलचस्प हो गया है.