आखिर क्यों पुरानी फोटो की तरह धुंधली पड़ जाती हैं यादें, ज्यादा समय तक नहीं रहती हैं याद नकारात्मक घटनाएं 

जिस तरह पुरानी फोटो समय के साथ धुंधली पड़ने लगती हैं उसी तरह यादों की विजुअल क्वालिटी भी वक्त बीतने के साथ घटने लगती है। एक शोध में बताया गया है कि जब लोग अतीत को याद करते हैं तो उनमें उनको लेकर स्पष्टता का स्तर अलग-अलग होता है। कभी-कभी लोगों को किसी एक घटना के बारे में तमाम तरह के विवरण याद रहते हैं- ठीक उस तरह जैसे वे उन्हीं क्षणों को फिर से जी रहे हों।

अमेरिका में बोस्टन कॉलेज की सहायक प्रोफेसर मौरिन रिची कहती हैं कि यादों का रूप अलग-अलग होता है। कुछ लोगों के लिए पुरानी घटनाओं को पूरी स्पष्टता के साथ याद करना आसान होता है, लेकिन हर कोई ऐसा नहीं होता। अक्सर ऐसा भी होता है कि याद धुंधली पड़ गई है और उससे जुड़ी घटनाएं-प्रसंग अस्पष्ट से हो जाते हैं।

रिची का यह शोध जर्नल साइकोलाजिकल साइंस में प्रकाशित किया गया है। पहले के शोध में बताया गया है कि कार दुर्घटना सरीखे भावनात्मक रूप से महत्वपूर्ण घटनाएं अन्य घटनाओं की तुलना में ज्यादा याद रहती हैं। रिची ने कहा कि हम देखना चाहते थे कि क्या यादें धुंधली पड़ने की भावना केवल इससे जुड़ी है कि हमें क्या याद है और क्या नहीं, बल्कि क्या इसका संबंध इससे भी है कि हम किसी चीज को कैसे याद करते हैं।

उन्होंने कहा कि हमारे शोध के दौरान लोगों ने बताया कि उनकी यादों में उसी तरह बदलाव हुआ जैसे हम किसी पिक्चर को एडिट करने के लिए फिल्टर का इस्तेमाल करते हैं। शोध के दौरान तीन तरह के परीक्षण किए गए। प्रतिभागियों को भावनात्मक रूप से नकारात्मक और तटस्थ चित्रों के अध्ययन के लिए कहा गया। इन चित्रों में विजुअल क्वालिटी के लिहाज से अंतर था। इसके साथ ही उनमें रंगों का प्रभाव भी भिन्न-भिन्न था।

इसके बाद दूसरे परीक्षण में प्रतिभागियों से उन्हीं चित्रों को विजुअल क्वालिटीज के साथ फिर से तैयार करने के लिए कहा गया। शोधकर्ताओं के अध्ययन में यह निष्कर्ष सामने आया कि यादों के आधार पर बनाए गए चित्र विजुअल क्वालिटी के लिहाज से कम सजीव थे।

जहां तक भावनात्मक रूप से नकारात्मक चित्रों का प्रश्न है तो उनके रिक्रिएशन में सटीकता का स्तर अपेक्षाकृत बेहतर था। निष्कर्ष के रूप में यह भी सामने आया कि कम महत्वपूर्ण बातें, जैसे रंग और आकार आदि समय के साथ धुंधली पड़ गई हैं, जबकि समग्र अनुभव की मूल बात यादों में बनी रही।

इसे ऐसे समझा जा सकता है कि लोगों को यह तो याद रहता है कि वह किसी म्युजिक फेस्टिवल में गए और अपने पसंदीदा बैंड को देखने-सुनने का उनका अनुभव कैसा रहा, लेकिन वे इन बातों को भुला देते हैं कि स्टेज लाइट कैसी थी, आसपास का माहौल क्या था। एक अन्य शोधकर्ता रोस कूपर ने कहा कि हमने पाया कि यादें वस्तुत: हल्की पड़ जाती हैं।

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