नदी के पास चीन में पाए गए 51.80 करोड़ साल पुराने सॉफ्ट टिश्यू

वैज्ञानिकों ने चीन में एक नदी के किनारे हजारों जीवाश्मों का एक चकित करने वाला खजाना खोज निकाला है। बीबीसी की रिपोर्ट के अनुसार, ये जीवाश्म लगभग 51.80 करोड़ साल पुराने हो सकते हैं और ये खासतौर से असामान्य हैं, क्योंकि ये सॉफ्ट बॉडी टिश्यू (ऊतक) हैं और अच्छी तरह संरक्षित हैं। इनमें चमड़ी, आंखों और अंदरूनी अंगों के ऊतक शामिल हैं।

जीवाश्म विज्ञानियों ने इस खोज को अद्भुत बताया है, क्योंकि आधे से अधिक जीवाश्म ऐसी प्रजातियों के हैं, जिन्हें इससे पहले खोजा ही नहीं गया था। किंगजियांग बायोटा के रूप में बुलाए जाने वाले ये जीवाश्म हुबेई प्रांत में दानशुई नदी के पास पाए गए हैं। इनके 20,000 से अधिक नमूने लिए गए हैं और अभी तक इनमें से 4,351 के विश्लेषण किए जा चुके हैं, जिनमें कीड़े, जेलीफिश, समुद्री एनीमोन और शैवाल शामिल हैं।

चीन की नॉर्थवेस्ट यूनिवर्सिटी के प्रोफेसर शिनजियांग झांग ने कहा कि ये जीवाश्म जीवों के प्रारंभिक उत्पत्ति के अध्ययन में एक बहुत ही महत्वपूर्ण स्नोत बनेंगे। इस अध्ययन में भाग लेने वाले एक भूविज्ञानी प्रोफेसर राबर्ट गेन्स ने बताया कि यह अध्ययन विशेष रूप से उल्लेखनीय है क्योंकि जीवाश्मों में ऐसे ऊतक मिले हैं जो बहूत ही नरम प्राणियों के हैं जैसे- जेलीफिश और कीड़े, जिनके आमतौर पर कोई जीवाश्म बचने की संभावना नहीं होती है। जीवाश्मों का अधिकांश हिस्सा जो प्राप्त होता है वह कठोर शरीर वाले प्राणियों का प्राप्त होता है जैसे हड्डी आदि का। पुरातत्वविदों ने संभावना जताई है कि तूफान आने पर तलछट में यह नरम ऊतक दफन हो गए होंगे। जिससे किंगजियांग बायोटा नामक इन जीवाश्मों का सरंक्षण हो सका।

सदी की सबसे महत्वपूर्ण खोज

जेलीफिश और समुद्री एनीमोन जीवाश्मों से वैज्ञानिक विशेष रूप से उत्साहित हैं। प्रो. गेन्स ने बताया कि यह उनके द्वारा देखी गई सभी चीजों से अलग है। जो पुरातत्वविद इस टीम का हिस्सा नहीं हैं उनका भी यह कहना है कि यह खोज पिछले 100 सालों की सबसे महत्वपूर्ण खोज है। जीवाश्म विज्ञानी एलिसन डले का कहना है कि उन्होंने कभी सोचा नहीं था कि वह कभी इस अविश्वसनीय साइट की खोज के गवाह बनेंगे। उन्होंने बताया कि जेली फिश इतनी ज्यादा सॉफ्ट बॉडी की होती है कि उसका जीवाश्म मिलना नामुमकिन सा लगता है। अनुसंधान टीम अब इस साइट पर और ज्यादा ड्रिलिंग कर जीवाश्मों की खोज कर रही है, ताकि प्राचीन स्थानीय पारिस्थितिकी तंत्र के बारे में जानकारी जुटाई जा सके।

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