ईएमओ डॉ. कुणाल जैन का फोन आया। बोले, सर जल्दी अस्पताल आ जाइये। एसएसपी भी आए हैं। यहां कोई शराब कांड हो गया है। तुरंत ही ट्रैक सूट पहने डॉ. वार्ष्णेय अस्पताल पहुंच गए। देखा तो अस्पताल का मंजर भयावाह था। हर तरफ लाशें और बीमार पड़े थे। पूरे अस्पताल में इमरजेंसी घोषित कर स्टाफ की छुट्टी रद कर दी। डॉक्टरों की टीम बीमारों के इलाज और मृतकों के पोस्टमार्टम में जुट गई।
हमने जैसे ही यह देखा कि शराब कांड के पीड़ितों की संख्या बढ़ती जा रही है, तुरंत अस्पताल के सभी 32 डॉक्टरों को बुला लिया और उपचार में जुट गए। चंद घंटों में मरने वालों की संख्या 20 को पार कर चुकी थी। सहारनपुर, शामली और मुजफ्फरनगर जिला अस्पताल के कुल छह डॉक्टर तीन शिफ्टों में पोस्टमार्टम प्रक्रिया में लगाए गए। आठ फरवरी की रात एक बजे तक 23 लाशों को खोलने और सिलने के बाद स्वीपर सुशील बेहोश हो गया, तुरंत ही दूसरा स्वीपर बुलाया गया।
डॉ. एसके वार्ष्णेय के मुताबिक, शुक्रवार दोपहर तीन बजे से शनिवार रात आठ बजे तक 69 शवों के पोस्टमार्टम किए गए। इस दौरान डॉक्टरों ने बिना आराम किए काम किया। रविवार को छुट्टी में भी डॉक्टरों को बुलाकर लाशों का पोस्टमार्टम कराया गया। डॉ. वार्ष्णेय बताते हैं कि लाशों का ऐसा मंजर वह जनवरी 1997 में हरदोई में देख चुके हैं, जहां दो ट्रेनों की भिड़ंत में 49 रेलयात्रियों की मौत हो गई थी। डॉ.वार्ष्णेय और उनकी टीम ने घटनास्थल पर ही इन सभी मृतकों का पोस्टमार्टम किया था।
मेरठ में आठ घंटे में 21 शवों का पोस्टमार्टम करने वाली टीम के ईएमओ डॉ.यशवीर सिंह ने बताया कि अपने करियर में उन्होंने एक साथ इतनी लाशें नहीं देखीं। अमूमन पीएम हाउस की एक टेबिल पर ही पोस्टमार्टम प्रक्रिया होती है, लेकिन मृतकों की संख्या बढ़ने से दूसरी टेबिल पर भी पोस्टमार्टम करने पड़े। डॉ. यशवीर बताते हैं कि मरने वालों के परिजन रो-रोकर बेहाल थे। सभी शवों का बिसरा प्रिजर्व करना था और सभी की पोस्टमार्टम रिपोर्ट तैयार होनी थी। हमने टीमवर्क से काम किया और तय समय में सारे काम पूरे कर लिए। लंच भी पोस्टमार्टम हाउस के भीतर बैठकर किया।