‘कुत्ता कहो, लेकिन पाकिस्तानी नहीं’-बलूच शरणार्थी

नई दिल्ली| 25 साल के मजदक दिलशाद बलूच जब नई दिल्ली पहुंचे तो इमिग्रेशन अधिकारियों के लिए वह शंका का विषय थे। इसकी वजह है कि उनके पास कनाडा का पासपोर्ट था और जन्मस्थान वाले कॉलम में पाकिस्तान के क्वेता का नाम दर्ज था। पाकिस्तान के बलूच क्षेत्र से आए कुछ शरणार्थियों में से एक मजदक भी हैं।

'कुत्ता कहो, लेकिन पाकिस्तानी नहीं'-बलूच शरणार्थी

हमारे सहयोगी अखबार इकनॉमिक टाइम्स को दिए इंटरव्यू में उन्होंने बलूचिस्तान में हो रहे अत्याचार और पाकिस्तान से अपनी नाराजगी जाहिर की। बहुत ही तल्ख अंदाज में इस बलूच शरणार्थी ने कहा, ‘आप मुझे कुत्ता कह लें, लेकिन पाकिस्तानी नहीं कहें। मैं बलूच हूं और अपने जन्मस्थान के कारण मुझे जीवन में बहुत सारी परेशानियों का सामना करना पड़ा।’

मजदक की कहानी और पीड़ा उन हजारों बलूच लोगों की है, जो विश्व के अलग-अलग हिस्सों में शरणार्थी की जिंदगी बिताने के लिए अभिशप्त हैं। पाकिस्तान की सेना द्वारा प्रताड़ित किए जाने के बाद बलूचिस्तान में रह रहे हजारों लोगों ने वहां से भाग जाने का विकल्प ही चुना। मजदक बताते हैं कि उनके पिता को अगवा कर लिया गया था और मां का शोषण किया गया। उनके परिवार की संपत्ति को नुकसान पहुंचाया गया

मजदक और उनके परिवार ने कनाडा जाकर शरण ली। इन दिनों वह दिल्ली में हैं और अपनी पत्नी के साथ मिलकर बलूचिस्तान की आजादी के लिए लोगों को जागरूक करने की कोशिश कर रहे हैं। मजदक का कहना है कि मैं खुश हूं कि 70 साल बाद ही सही भारत ने हमारे समर्थन में अपने दरवाजे खोले हैं।

मजदक ने बताया, ‘ बलूचिस्तान में हालात बद से बदतर हैं। वहां बच्चों की पढ़ाई के लिए कोई स्कूल नहीं है। पाकिस्तान की सेना वहां के युवाओं पर जुल्म कर रही है।’ फिल्ममेकर पिता और सामाजिक कार्यकर्ता मां के बेटे मजदक के पिता को पाकिस्तान की सेना ने 2006 से 2008 के दौरान हिरासत में रखा। उस वक्त को याद करते हुए वह कहते हैं, ‘वह दौर बैहद खौफनाक था। सेना के अधिकारी मेरी मां को प्रताड़ित करते थे। इन सबसे परेशान होकर 2008 में हमने बलूचिस्तान छोड़ कनाडा में पनाह ले ली।’

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