प्रासंगिक : सरकारें बदलती हैं, शहर नहीं-नगर निकायों और विकास प्राधिकरणों की विफलता

  • एक प्रश्न खुद से पूछें। नागरिक सुविधाओं की दृष्टि से डेढ़, दो या दस-पांच बरसों में आपके जीवन में क्या कोई बदलाव आया? गली की गंदगी कम हुई क्या? मुहल्ले की सड़कों और बाजारों के बेतहाशा अवैध कब्जे हटे क्या? अपनी इमारत में पार्किंग आप कर पाते हैं या फिर बेसमेंट में भी दुकानें बनवाकर बिल्डर ने वह जगह खुद को उपहार दे दी है? सरकारी अस्पतालों में संवेदना और सुविधा और दवाएं कुछ बढ़ीं क्या?

लखनऊ राजधानी है और बनारस प्रधानमंत्री का संसदीय क्षेत्र, लिहाजा कुछ हद तक ये भाग्यशाली हैं वरना तो उत्तर प्रदेश के शहर यहां के नगर निकायों और विकास प्राधिकरणों की विफलता और भ्रष्टाचार की वह बदरंग तस्वीर हैं जिसे साफ करने की इच्छाशक्ति और हिम्मत कोई सरकार नहीं दिखा सकी।

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