माधव मंत्री. सीधे हाथ का बैट्समैन और स्पेशलिस्ट विकेटकीपर. 1940 के दशक के आखिरी हिस्से में बम्बई के लिए खेलना शुरू किया. 1951-52, 1953-54 और 1955-56 में मुंबई रणजी ट्रॉफी की कप्तानी करते हुए जीत दिलाई. 1952 में ही इंडिया के लिए खेलने का मौका मिला. इंग्लैंड के खिलाफ़ पहला मैच खेला. लीड्स के मैदान पर सीरीज़ का पहला मैच हो रहा था. इंडिया की दूसरी इनिंग्स शुरू हुई. पहला विकेट गिरा. ज़ीरो रन पर. बिना खाता खुले. दूसरा विकेट भी बिना किसी रन बने गिरा. तीसरा भी और चौथा भी. इंडियन का स्कोर था – ज़ीरो रन पर चार विकेट. इन आउट होने वाले बैट्समेन में माधव मंत्री भी थे. फ्रेड ट्रूमैन ने इंडियन बैटिंग लाइनअप को धोबी पछाड़ मार दिया था.
माधव मंत्री एक दिन यूं ही घर पर बैठे हुए थे. उनका भांजा उनके घर पर आया हुआ था. क्रिकेट में उसे भी खासी दिलचस्पी थी. वो खुद भी खेलता था. उस वक़्त तक ठीक-ठाक क्रिकेट खेल लेता था. माधव मंत्री के भांजे ने मंत्री की इंडियन जर्सी टंगी हुई देखी. उसकी आंखें चमक उठीं. उसने उसे पहले तो छुआ, फिर पहनना चाहा. लेकिन सवाल ये था कि जर्सी उसके मामा की थी. और मामा की नाराज़गी से बेहतर था कि उनसे पूछ लिया जाए. वो भागकर मामा के पास पहुंचा और एक बार उनकी इंडियन जर्सी पहनने की ख्वाहिश जताई. मामा ने उसकी इस अपील को सिरे से ख़ारिज कर दिया. उसके लाख कहने पर भी वो जर्सी माधव मंत्री ने नहीं पहनने दी. उन्होंने अपने भांजे को समझाया कि ये जर्सी यूं ही किसी स्टोर से खरीद लाने पर नहीं मिलती है. इसके लिए पसीना बहाना पड़ता है. हज़ारों मुश्किलें पार करनी पड़ती हैं. उस जर्सी को कमाना पड़ता है. लाखों जतन करके. टीम इंडिया की जर्सी यूं ही नहीं पहनी जाती.
लड़के के मन में ये बात ऐसे छपी जैसे दीवार के बच्चन के हाथों पर जो गुदवा दिया गया, वो ज़िंदगी भर उसके साथ रहा.सुनील मनोहर गावस्कर. माधव मंत्री का भांजा. दुनिया के लिए आने वाले वक़्त में ‘लिटिल मास्टर’.
कहानी फ़ास्ट-फॉरवर्ड करते हैं. साल 2002. सुनील गावस्कर इंडिया के लिए सालों क्रिकेट खेलकर रिटायर हो चुके हैं. अब कमेंट्री करते हैं. इंडिया के वेस्ट इंडीज़ टूर पर कमेंट्री के लिए सुनील गावस्कर पहुंचे हुए थे. टीम के एक नए और युवा प्लेयर ने एक रात जमकर पार्टी और मौज मस्ती की. वहां मौजूद किसी लड़की से उसकी खासी दोस्ती हो गयी. उस लड़की के बार-बार कहने पर उस प्लेयर ने उसे अपनी इंडियन कैप दे दी. अगले दिन वो लड़की उस कैप को लेकर सुनील गावस्कर के पास पहुंची. उसे गावस्कर का ऑटोग्राफ चाहिए था. गावस्कर ने जैसे ही इंडियन कैप उसके हाथ में देखी, उन्होंने ऑटोग्राफ देने से साफ़ इनकार कर दिया. साथ ही उसे वहीं बिठा लिया. उससे पूछने लगे कि उसे वो कैप कहां से मिली. लड़की ने इस राज़ से पर्दा उठाने से साफ़ मना कर दिया. गावस्कर का गुस्सा अब चरम पर पहुंच चुका था. उन्होंने कहा कि अगर उसने ये नहीं बताया तो वो फ़ौरन पुलिस को बुलाकर उसे चोरी के इल्ज़ाम में अन्दर करवा देंगे. लड़की ने इस धमकी के दबाव में आकर उस प्लेयर का नाम बता दिया.
इस वक़्त तक सभी प्लेयर्स अपने होटल से निकलकर टीम बस में जा बैठे थे. बस स्टेडियम की ओर बस निकलने ही वाली थी. गावस्कर तमतमाए हुए उस बस में जा धमके. उन्होंने उस प्लेयर को खड़ा किया और उसे लम्बी झाड़ लगायी. गावस्कर के मन में आज भी उनके मामा माधव मंत्री की दी हुई सीख ताज़ा थी. उन्होंने उस प्लेयर से कहा कि उस दिन के बाद से जब भी वो इंडिया की कैप अपने सर पे रक्खे, उसे शर्म से भर जाना चाहिए. वो दिन सिर्फ़ उस प्लेयर के लिए ही नहीं, पूरी टीम के लिए सीख लेने का मौका था. और गावस्कर एक बार फिर खेल के प्रति अपने न खतम होने वाले जूनून को साबित कर चुके थे.