रानीखेत, अल्मोड़ा: जंगल का सबसे तेज शिकारी तेंदुआ खुद रोगों का शिकार हो रहा है। उत्तराखंड के पर्वतीय क्षेत्र के जंगलों में तेंदुओं की मौत की बड़ी वजह श्वसन तंत्र के संक्रमण (निमोनिया) को माना जा रहा है। हिमालयी राज्य में पिछले कुछ वर्षों से तेंदुओं के ठंड की चपेट में आकर बेमौत मारे जाने का ग्राफ बढ़ता जा रहा है। साल की शुरूआत में ही बीती चार जनवरी को गैरखेत कपकोट (बागेश्वर), 16 जनवरी को भेटुली ताकुला (अल्मोड़ा) व वर्षायत डीडीहाट (पिथौरागढ़) में एक-एक तेंदुए की मौत तो महज बानगी भर है।
पूरे पर्वतीय क्षेत्रों को छोड़ अकेले रानीखेत डिवीजन का ही जिक्र करें तो वर्ष 2014 में आठ तेंदुए निमोनिया के शिकार हुए। 2015 में सात तेंदुओं की मौत का कारण भी ठंड व श्वसन तंत्र का संक्रमण रहा। वर्ष 2016 में नारायणबगढ़ चमोली व रुद्रप्रयाग (गढ़वाल) व द्वाराहाट में दो-दो तथा रानीखेत (अल्मोड़ा) से कुछ दूर बणारसी गधेरे में निमोनियाग्रस्त गुलदार ने दम तोड़ दिया। वर्ष 2017 में भी 10 से अधिक गुलदार मारे गए। पोस्टमार्टम की रिपोर्ट में निमोनिया से मौत के बढ़ते मामलों से वन्यजीव प्रेमी चिंतित हैं।
घट रही रोग प्रतिरोधक क्षमता
मानवीय जंगल और घटते जंगल क्षेत्र ने तेंदुओं के लिए भोजन की विकट समस्या पैदा कर दी है। जंगल में शिकार का मास्टर शिकार कर पेट नहीं भर पा रहा। इससे उसकी रोग प्रतिरोधक क्षमता घट रही है।
वन संरक्षक डॉ. पराग मधुकर धकाते कहते हैं कि निमोनिया से न लड़ पाने की बड़ी वजह खाली पेट होना सामने आ रहा है। वन्य जीव विशेषज्ञ एवं सेवानिवृत्त सहायक वन संरक्षक भूपेंद्र सिंह जीना के अनुसार जंगलों में ठंड से बचने को घनी झाड़ियां भी कम ही हैं। प्राकृतिक जलस्रोत से पानी भी नसीब नहीं हो पा रहा।
वासस्थल की नहीं है बेहतर स्थिति
वन्य जीव विशेषज्ञ एवं शूटर जॉय विहकल के मुताबिक उत्तराखंड के वन क्षेत्रों की स्थिति बहुत अच्छी नहीं रही। गुलदार के लिए वासस्थल के दायरे में ही जलस्रोत व भोजन बेहद जरूरी है, जो अब बिगड़ गया है। जंगलों के दोहन से जलस्रोत लगभग सूख चुके। आबादी की ओर घुसपैठ वन्यजीवों की मजबूरी बन गया है। प्राकृतिक घनी झाड़ियों से घिरी मांद भी खत्म होती जा रही तो सर्दी में निमोनिया व डिहाइड्रेशन की चपेट में आना स्वाभाविक है।