कोलंबोः वैसे तो दुनिया भर में स्थानीय काउंसिल चुनाव बेहद स्थानीय मुद्दों पर लड़े जाते हैं, लेकिन श्रीलंका में स्थानीय काउंसिल चुनाव के आए नतीजों को कई अन्य संदर्भों से जोड़कर देखा जा रहा है. इन चुनावों में सत्ताधारी गठबंधन की बुरी हार हुई है वहीं विपक्षी दल एसएलपीपी (श्री लंका पोडुजना पार्टी) ने शानदार जीत हासिल की है. एसएलपीपी पूर्व राष्ट्रपति महिंदा राजपक्षे की पार्टी है. राजपक्षे को श्रीलंका में एक मजबूत नेता माना जाता है जिसने देश में लंबे समय से चल रहे गृह युद्द को 2009 में खत्म करवाया था. श्रीलंका में लिट्टे विद्रोहियों और सेना के बीच चले गृह युद्ध में एक लाख से अधिक लोग मारे गए थे.
अब तक के चुनावी नतीजों के मुताबकि एसएलपीपी को 44.05 फीसदी जबकि प्रधानमंत्री रनिल विक्रमेसिंघे की पार्टी यूनाइटेड नेशनल पार्टी (यूएनपी) को 31.65 फीसदी वोट मिले. राष्ट्रपति मैत्रीपाला सिरीसेना की लंका फ्रीडम पार्टी को केवल 9.52 फीसदी ही वोट मिले हैं. राजपक्षे की पार्टी ने सभी क्षेत्रों में शानदार जीत हासिल की है. स्थानीय काउंसिल के इस चुनाव को सत्ताधारी गठबंधन के कामकाज पर जनमत संग्रह माना जा रहा है. इस जीत के बाद राजपक्षे ने अपने समर्थकों को बधाई दी है और उनसे शांतिपूर्वक जीत का जश्न मनाने को कहा है.
सिरीसेना की सरकार कमजोर हुई
राजपक्षे की पार्टी के कुछ नेताओं ने इस जीत के बाद सत्ताधारी गठबंधन की सरकार से इस्तीफे की मांग की है. राजपक्षे ने अपने फेसबुक पेज पर लिखे एक पोस्ट में कहा है कि देश की जनता मौजूदा सरकार के नकारापन से उब चुकी है और वह श्रीलंका का पुनर्निमाण चाहती है. न्यूयॉर्क टाइम्स में छपी एक रिपोर्ट के मुताबिक इस चुनावी नतीजे से न केवल मौजूदा सरकार कमजोर हुई है बल्कि दो साल बाद देश में होने वाले चुनाव में भी उसकी स्थिति कमजोर होती दिख रही है.
दरअसल, 2015 में अल्पसंख्यक समूहों के एक ‘बेमेल’ गठबंधन की बदौलत सिरीसेना राष्ट्रपति बने थे. जनता को उम्मीद थी कि सिरीसेना के आने के बाद सत्ता का विकेंद्रीकरण होगा, सेना को काबू में किया जाएगा और भ्रष्टाचार पर चोट किया जाएगा, लेकिन पिछले तीन साल में ठोस तौर पर ऐसा कुछ नहीं दिखा. इसके उलट राष्ट्रपति सिरीसेना और प्रधानमंत्री रनिल विक्रेमासिंघे के बीच का टकराव अब बाहर आ गया है.
राजपक्षे को चीन समर्थक माना जाता है
पूर्व राष्ट्रपति महिंदा राजपक्षे को चीन समर्थक माना जाता है. स्थानीय काउंसिल चुनाव में उनकी जीत से वहां चीनी दखल बढ़ने के आसार हैं. वहीं राष्ट्रपति मैत्रीपाला सिरिसेना और प्रधानमंत्री रानिल विक्रमसिंघे की गठबंधन सरकार को भारत समर्थक माना जाता है. इन चुनावों में पूर्व राष्ट्रपति और विपक्षी नेता महिंदा राजपक्षे ने अपनी नई पार्टी एसएलपीपी के साथ वापसी की है. राजपक्षे के कार्यकाल में चीन में श्रीलंका में बड़े पैमाने पर निवेश किया था. उनके शासनकाल में रणनीतिक रूप से अहम कई जगहों पर चीन के लोगों और सैनिकों की मौजूदगी ने भारत की चिंता बढ़ा दी थी. चुनाव नतीजों से संकेत मिल रहे हैं कि अब श्रीलंका में चीन की बड़ी भूमिका वापस लौटेगी. स्थानीय निकायों में बहुमत मिलने से लोकल काउंसिल के वित्तीय मामलों में राजपक्षे की पार्टी का दखल बढ़ेगा.
माना जा रहा है कि ताजा चुनाव नतीजों के बाद राष्ट्रपति सिरिसेना के इस्तीफे की मांग भी तेज होगी. ताजा हार के बाद राष्ट्रपति के दल के बिखरेने की भी आशंका है. इस पार्टी में बड़ी संख्या में ऐसे लोग हैं, जो दूसरे दलों से आए हैं. श्रीलंका की संसद में 225 की सदस्य संख्या में पीएम की पार्टी के 106 और राष्ट्रपति की पार्टी के 41 सांसद हैं. दोनों के दलों में आपस में भी सिरफुटौव्वल चल रही है. विपक्षी राजपक्षे को 54 सांसदों का समर्थन हासिल है. संविधान संशोधन के नियम के मुताबिक राजपक्षे फिर से राष्ट्रपति नहीं बन सकते हैं, लेकिन माना जा रहा है कि उनके भाई जी. राजपक्षे राष्ट्रपति पद के लिए दावेदारी पेश कर सकते हैं.