पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी अगले महीने यानी जनवरी 2018 में बीरभूम में एक ब्राह्मण सम्मेलन को संबोधित कर सकती हैं. इस सम्मेलन का आयोजन उनकी पार्टी तृणमूल कांग्रेस करने जा रही है. इसे ममता सरकार का सॉफ्ट हिंदुत्व कार्ड बताया जा रहा है.
बीरभूम जिले के टीएमसी प्रमुख अनुब्रतो मंडल ने बताया कि ब्राह्मण सम्मेलन का आयोजन विशाल स्तर पर करने की तैयारियां की गई हैं. उन्होंने कहा है कि 6 जनवरी को बूथ सम्मेलन और 8 जनवरी को पुरोहित सम्मेलन होगा. अनुमान है कि इस सम्मेलन में करीब 15,000 ब्राह्मण हिस्सा लेंगे.
पश्चिम बंगाल में पहली बार इस तरह का सम्मेलन हो रहा है और इसे सत्ता में मौजूद तृणमूल कांग्रेस आयोजित कर रही है. ममता के इस कदम को 2016 में हुए पश्चिम बंगाल विधानसभा चुनावों में पहली बार तीन सीटें जीतने वाली बीजेपी के उग्र हिंदुत्व के बरक्स सॉफ्ट हिंदुत्व की रणनीति के तौर पर देखा जा रहा है. भले ही बीजेपी के पास केवल तीन विधानसभा सीटें हों, लेकिन इसी साल कांति दक्षिण विधानसभा सीट पर हुए उपचुनाव में यह सीपीएम को पछाड़कर दूसरे नंबर पर रही और 30 फीसदी वोट हासिल किए. इसके बाद, हाल ही में साबंग विधानसभा सीट पर हुए उपचुनाव में भी बीजेपी ने अपने वोटशेयर को तीन गुना बेहतर किया. शायद यही वजह है कि ममता बनर्जी राज्य में बीजेपी को रोकने के लिए यह कदम उठा रही हैं.
बीजेपी टीएमसी पर मुस्लिमों के तुष्टिकरण के आरोप लगाती रही है. आपको बता दें कि टीएमसी 15 जनवरी को मुस्लिम कांफ्रेंस भी आयोजित करेगी. इससे संकेत मिलते हैं कि ममता बनर्जी राज्य के दो बड़े समुदायों को एक साथ साधने की कोशिश कर रही हैं. 2011 की जनगणना के मुताबिक पश्चिम बंगाल में हिंदुओं की आबादी 70.54 फीसदी है. यहां का दूसरा बड़ा समुदाय मुस्लिम है, जो संख्या में 27 फीसदी हैं. ममता बनर्जी की इस सारी कवायद की वजह अगले साल यानी 2018 में पश्चिम बंगाल में होने वाले पंचायत चुनाव हो सकते हैं.
केंद्रीय मंत्री बाबुल सुप्रियो ने राज्य सरकार के इस फैसले पर कहा है कि ममता सरकार हमेशा तुष्टिकरण की राजनीति करती है, कभी वे इमाम भत्ता देते हैं तो इस बार उसे बैलेंस करने के लिए इस प्रकार का कार्यक्रम कर रहे हैं. हमें सरकार की मंशा पर भी ध्यान देना होगा. हालांकि ममता बनर्जी कह चुकी हैं कि उन्हें हिंदू कहलाने के लिए बीजेपी के सर्टिफिकेट की जरूरत नहीं है.
आपको याद दिला दें कि इससे पहले गुजरात के चुनाव में कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी भी कई मंदिरों में गए थे. इसे राहुल का सॉफ्ट हिंदुत्व कार्ड बताया गया था. माना जा रहा है कि कांग्रेस की इस रणनीति का फायदा उसे गुजरात विधानसभा चुनावों में देखने को मिला और पार्टी की राज्य में सीटें 61 से बढ़कर 77 हो गईं.