कहते हैं जब तक लक्ष्य निर्धारित नहीं होता, तब तक मंज़िल नहीं मिलती. शायद यही वजह है कि देश की मौजूदा राजनीती के सबसे बड़े चाणक्य कहे जाने वाले भारतीय जनता पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह हमेशा चुनावी मिशन में दिखाई देते हैं. यूं तो सभी राजनीतिक दल और उनके नेता भरपूर रणनीति के साथ चुनावी समर में जाते हैं, लेकिन सिकंदर जीतने वाला ही कहलाता है.
साल 2017 देश की चुनावी राजनीती के लिहाज़ से बेहद खास रहा. देश को नए राष्ट्रपति और उपराष्ट्रपति मिले, उत्तर प्रदेश समेत कुल 7 राज्यों में विधानसभा चुनाव हुए. कई सूबों में स्थानीय चुनाव भी संपन्न हुए.
दिसंबर जाते-जाते देश की 132 साल पुरानी कांग्रेस पार्टी की कमान 47 वर्षीय राहुल गांधी को सौंप दी गई. राहुल की ताजपोशी के कुछ घंटों बाद ही गुजरात और हिमाचल प्रदेश में कांग्रेस पार्टी को पराजय का मुंह देखना पड़ा. इस तरह अमित शाह के सिर जीत का एक और सेहरा बंध गया और राहुल को सिंहासन मिलने का रंग फीका पड़ गया.
2017 के सबसे बड़े सियासी चेहरे के रूप में अमित शाह और राहुल में किसने अपना प्रभाव छोड़ा, इसके लिए साल के बड़े सियासी पर्वों का आंकलन जरूरी है, जिनकी शुरुआत फरवरी-मार्च में हुई. साल की पहली तिमाही में देश के राजनीतिक आंकड़ों में बड़ा उलटफेर देखने को मिला. उत्तर प्रदेश, पंजाब, उत्तराखंड, गोवा और मणिपुर में विधानसभा चुनाव हुए. यूपी और उत्तराखंड में भारतीय जनता पार्टी को प्रचंड बहुमत मिला. राजनीतिक रूप से देश के सबसे बड़े सूबे यूपी के नतीजों ने सबको चौंका दिया. पार्टी ने अपने दम पर 403 सीटों विधानसभा में 312 पर परचम लहराया और घटक दलों की सीट मिलाकर ये आंकड़ा 325 तक पहुंच गया.