बीते कुछ सालों के दौरान हमारी जीवनशैली में आए बदलाव का सीधा असर हमारे मानसिक स्वास्थ्य पर भी पड़ा है। कम उम्र में तनाव और अवसाद की बीमारियों ने हमारे जीवन में गहरी पैठ बना ली है। अधिक तनाव और अवसाद के गंभीर परिणाम दिमागी दौरे के रूप में भी देखने को मिलते हैं। इसके चलते अपने हर छोटे-बड़े काम के लिए उसकी निर्भरता किसी दूसरे व्यक्ति पर हो जाती है। अनके मरीजों में बोलने, समझने, लिखने, पढ़ने व स्मृति की क्षमताएं घट जाती हैं।
दिमागी दौरा क्या है
हमारे मस्तिष्क को ठीक से काम करने के लिए पर्याप्त मात्रा में ऑक्सीजन की दरकार होती है। यदि मस्तिष्क की कोशिकाओं को उचित मात्रा में निरंतर ऑक्सीजन या अन्य पोषक तत्व न मिलें तो इसकी कार्यक्षमता पर असर पड़ता है। इसका परिणाम दिमागी दौरे के रूप में सामने आता है। दिमाग के किसी खास हिस्से को रक्त देने वाली कोशिकाओं में अचानक किसी थक्के के जमने के कारण बाधा उत्पन्न होती है। दिमागी दौरे के बाद एक मिनट के अंदर मस्तिष्क की प्रभावित कोशिकाएं मरने लगती है। मरीज में हिलने तक की ताकत नहीं रहती। मरीज स्वयं की देखभाल करने तक में असमर्थ हो जाता है।
दिमागी दौरे के लक्षण
चेहरे या हाथ-पैरों में एकाएक झुनझुनाहट या कमजोरी आना। शरीर के एक तरफ के भाग में लकवा भी लग सकता है। बोलने या समझने में अचानक रुकावट। एक या दोनों आंखों से दिखाई देने में परेशानी। चलने में परेशानी, चक्कर आना। शरीर को संतुलित करने में परेशानी। गंभीर मरीजों में बेहोशी। किसी कारण के बिना सिर में एकाएक बहुत तेज दर्द होना। अगर किसी व्यक्ति को इनमें से कोई भी लक्षण है या होते है, तो उसे तुरंत किसी न्यूरोलॉजिस्ट से परामर्श लेना चाहिए। ऐसे में समय बहुत कीमती होता है और जरा सी लापरवाही की कीमत कई बार जान देकर भी चुकानी पड़ सकती है।
दिमागी दौरे के कारण
यह बीमारी किसी को भी हो सकती है, लेकिन ऐसे लोगों में ज्यादा होती है, जिन्हें उच्च रक्तचाप, मधुमेह, डायबिटीज, धूम्रपान या तंबाकू का सेवन करने की आदत होती है। व्यायाम न करने वालों में, मोटे लोगो में, खाने में घी, तली हुई चीजें और चर्बीयुक्त पदार्थ ज्यादा खाने वाले और अत्यघिक शराब पीने वालों में भी यह समस्या होती है। तनाव व आनुवंशिकता इसमें बहुत बड़ा कारण है। तनाव स्तर में काफी वृद्धि हुई है और तनाव एक बीमारी की तरह उभरकर सामने आने लगा है।
दिमागी दौरे से बचाव
गतिहीनता को दूर करने में मांसपेशियों के खिंचाव को कम किया जाता है। नियमित व्यायाम भी काफी लाभ पहुंचाता है। लेकिन, पूरी तरह सुधार होने में यह उपाय अपर्याप्त होते हैं। इसलिए डाक्टर मरीज की हालत और गतिहीनता को देखते हुए ही दवाइयां देते हैं। खानपान में कुछ परिवर्तन करके भी इसके जोखिम को कम किया जा सकता है। आहार में हरी सब्जियां और फलों को प्राथमिकता देनी चाहिए। अत्यधिक वसा व चिकनाईयुक्त खाद्य-पदार्थो और जंक फूड्स से परहेज करना चाहिए। नमक व चीनी का कम प्रयोग भी मदद करता है। वजन नियंत्रित करने के लिए सुबह टहलना चाहिए।