अकेली महिला और उम्र 92 साल। जीने के साथ जिंदगी चलाने के लिए मेहनत करने का दम। हालात से लड़ने का जोरदार हौसला। नाम है संतोष देवी और काम- दिन भर थैले बेचना। इन्हें सिर्फ मेहनत की रोटी मंजूर है। किसी से मांगकर खाना कबूल नहीं। युवा अवस्था में भीख मांगने वालों और नौकरी में होकर भी घूस मांगकर गुजारा करने वालों के लिए लानत भेजने वाली है इस बुजुर्ग महिला की कहानी।
दूसरी तरफ संतोष देवी के जीवन का डरावना पहलू यह भी है कि उनकी अपनी ही संतानें उन्हें धोखा दे गईं, वरना इस उम्र में ये दिन न देखने पड़ते। हौसला उम्र के आगे नहीं झुकता। इसकी बेहतरीन मिसाल भी हैं संतोष देवी। मूल रूप से उत्तर प्रदेश के जिला बिजनौर के अफजलगढ़ की रहने बुजुर्ग महिला आठ साल से थैले बेचकर अपनी गुजर-बसर कर रही हैं। उम्र के अंतिम पड़ाव पर होने के कारण बुजुर्ग को उठने और बैठने में परेशानी तो होती है, लेकिन वे इस उम्र में भी हार मानने को तैयार नहीं हैं। बुजुर्ग बताती हैं कि जिंदगी के आखिरी किनारे पर आकर भी और तमाम विषमताओं के बावजूद भीख मांगना उन्हें मंजूर नहीं है। जब तक शरीर में जान है, तब तक मेहनत कर अपना पेट पालती रहूंगी।
हरकी पैड़ी के पास संजय पुल का प्लेटफार्म बुजुर्ग महिला का आशियाना बना है। मेहनतकश बुजुर्ग की कहानी रिश्तों के स्याह पहलू को भी बयां करती है कि दो बेटे थे, अल्पायु में ही चल बसे। इकलौती बेटी आखिरी सहारा थीं, लेकिन वह भी जमीन-जायदाद बेचकर पति को लेकर हल्द्वानी चली गई। बुजुर्ग ने बताया कि उन्हें पहले वृद्धावस्था पेंशन मिलती थी। उससे सहारा मिल जाता था, लेकिन अब पेंशन भी बंद हो गई। उन्होंने बताया कि माली हालात का हवाला देकर पेंशन को दोबारा शुरू करवाने को लेकर नेताओं और अन्य लोगों से गुहार लगाई, लेकिन किसी ने भी मदद नहीं की। झूठा आश्वासन देकर टरका दिया।