भारत और चीन में सिक्किम के डोकलाम इलाके को लेकर पिछले कुछ दिनों से तनातनी बढ़ी है. ड्रैगन भारत को लगातार 1962 युद्ध की याद दिला रहा है तो वहीं भारत पर पंचशील समझौते को तोड़ने का आरोप भी लगा रहा है.वहीं, रक्षा मंत्री अरुण जेटली कह चुके हैं कि मौजूदा हालत 1962 से काफी अलग हैं.
2017 में दोनों देशों की सैन्य ताकतों पर गौर करें तो हथियार और तकनीक के मामले में चीन भले ही आगे हो लेकिन युद्ध जैसी स्थिति में भारत उसे लंबे समय तक रोकने की ताकत रखता है.
एक रिपोर्ट के मुताबिक,1962 में जब दोनों देशों के बीच युद्ध हुआ था तब भारत के पास 12 हजार कुल सैनिक थे जबकि चीन के पास 80 हजार सैनिकों की बड़ी ताकत थी. वहीं, 2017 में स्थिति काफी अलग है. चीन के पास जहां 46,35,000 सैनिक हैं वहीं भारत के पास 34,68,000 सैनिक हैं. इनमें भारत के 13,25,000 सक्रिय सैनिक हैं. वहीं, चीन के सक्रिय सैनिकों की संख्या 23,35,000 है.
चीन का रक्षा बजट जहां 9815 अरब रुपए का है वहीं, भारत का रक्षा बजट 3315 अरब रुपए का है. लड़ाकू विमानों की बात की जाए तो चीन के पास 1385 और भारत के पास 809 लड़ाकू विमान हैं. चीन के पास 206 हेलीकॉप्टर हैं जबकि भारत के पास 27 हेलिकॉप्टर हैं.
गौरतलब है कि चीनी वायुसेना के पास 1962 में ऐसे लड़ाकू विमान नहीं थे जो तिब्बत के ऊंचे इलाके में भारतीय वायुसेना से लोहा ले पाते. लेकिन उस वक्त तत्कालीन भारत सरकार ने इस कमजोरी पर ध्यान नहीं दिया था.
सैन्य साजो-सामान और तकनीक के मामले में भारत की ताकत लगातार बढ़ रही है. चीन के पास एस-400 डिफेंस मिसाइल सिस्टम है. भारत भी रूस से इसी तरह का सिस्टम खरीद रहा है. हवा से हवा में मार करने वाली मिसाइल से लेकर लड़ाकू विमान और जमीनी ताकत के मामले में भारत ने काफी प्रगति की है.
मौजूदा टेंशन में सबसे बड़ा खतरा परमाणु युद्ध का है. लेकिन परमाणु हथियारों के मामले में भी चीन आगे ही है. चीन के पास 150 से 200 परमाणु हथियार हैं जबकि भारत के पास 50 से 90 परमाणु हथियार हैं.
हालांकि भारत के पास दुनिया की सबसे तेज एंटी-शिप क्रूज मिसाइल ब्रह्मोस है. इसकी स्पीड 3,675 किमी प्रति घंटा है. यह 290 किलोमीटर दूरी तक के लक्ष्य को भेद सकती है. यही नहीं ब्रह्मोस मेनुवरेबल तकनीक से लैस है. यानी दागे जाने के बाद यदि लक्ष्य रास्ता बदल ले तो यह मिसाइल भी अपना रास्ता बदल लेती है और उसे निशाना बनाती है.
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वहीं, रिटायर्ड मेजर जनरल अशोक मेहता ने एक हिंदी अखबार के लेख में लिखा था कि हम चीन को वैसे ही रोक सकते हैं जैसे वर्ष 1986 में तवांग जिले के सोमदोरुंग चू में रोका था. हम हटे नहीं, डटे रहे. आखिरकार करीब डेढ़ साल बाद मामला बातचीत से सुलझा.
ऐसे में युद्ध से दोनों देशों को नुकसान होगा इसलिए हमें अपनी तरफ से न तो युद्ध के बारे में सोचना चाहिए और न ही नाथुला में सीमा पर 1967 जैसी झड़प ही होनी चाहिए.