अभी बीएस (भारत स्टेज)-3 से बीएस-4 में अपग्रेड होने की बात हो रही है. लेकिन 2020 तक देश में सीधे बीएस-6 लागू करने की तैयारी है. बीएस के तहत गाड़ियों में ईंधन से होने वाला प्रदूषण नियंत्रित किया जाता है.
इसे बदलने के लिए रिफाइनरियों को काफी पैसा खर्च करना पड़ेगा. इंडियन ऑयल से जुड़े एक अधिकारी ने बताया कि सरकार ने एक साल पहले ही यह फैसला ले लिया था. ताकि वायु प्रदूषण की वजह से लोगों की सेहत न खराब हो.
सेंटर फॉर साइंस एंड एनवायरमेंट के वैज्ञानिक विवेक चटोपाध्याय कहते हैं वाहन प्रदूषण का भारत स्टैंडर्ड यानी बीएस यूरो मानकों के बराबर ही माना जाता है. यूरोप में यूरो-4 2005 में आ गया था. हमने इसे 12 साल बाद अब अपनाया है. यूरो-6 2015 से लागू है और हम बीएस-6 2020 में लागू करेंगे.
कुमार के मुताबिक बीएस-6 लागू होने के बाद प्रदूषण को लेकर पेट्रोल और डीजल कारों के बीच ज्यादा अंतर नहीं रह जाएगा.
उनका कहना है कि डीजल कारों से 68 फीसदी और पेट्रोल कारों से 25 फीसदी तक नाइट्रोजन ऑक्साइड का उत्सर्जन कम हो जाएगा. यही नहीं डीजल कारों से (पीएम) का उत्सर्जन 80 फीसदी तक कम हो सकता है.
परिवहन मंत्री नितिन गडकरी ने एक कार्यक्रम में कहा था कि ‘भारत में कार बनाने वाली ज्यादातर कंपनियां यूरो-6 के अनुरूप इंजन बना रही हैं. उनके पास तकनीक है और 2020 तक का समय भी है’
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इसके लिए सरकारी रिफायनरियों को अपग्रेड करने का काम शुरू हो गया है. मंत्रालय के एक अनुमान के मुताबिक इस पर करीब हजारों करोड़ का खर्च आएगा.
जबकि बीएस-4 उत्सर्जन मानकों वाले वाहनों के ईंधन के लिए 2010 से अब तक कई रिफानरियों ने अब तक करीब 30 हजार करोड़ रुपये खर्च किए हैं. 29 मार्च को इस केस की सुनवाई के दौरान सॉलिसिटर जनरल रंजीत कुमार ने यह जानकारी दी थी.