2019 से पहले गोरखपुर, फूलपुर में होगा विपक्षी एकता का इम्तिहान....

2019 से पहले गोरखपुर, फूलपुर में होगा विपक्षी एकता का इम्तिहान….

सीएम योगी आदित्यनाथ व डिप्टी सीएम केशव प्रसाद मौर्य निर्विरोध विधान परिषद सदस्य निर्वाचित हो चुके हैं। इन्हें सीएम व डिप्टी सीएम के पद पर बने रहने के लिए 19 सितंबर तक उच्च सदन की सदस्यता की शपथ लेनी होगी। 2019 से पहले गोरखपुर, फूलपुर में होगा विपक्षी एकता का इम्तिहान....पीसीएस प्रारंभिक-2017: परीक्षा केंद्र के लिए तीन विकल्प लेने की तैयारी

योगी व मौर्य 2014 में लोकसभा सदस्य चुने गए थे। अब एमएलसी चुने जाने के बाद इन दोनों को क्रमश: गोरखपुर व फूलपुर संसदीय सीट से इस्तीफा देना होगा।

ऐसे में इन दोनों संसदीय सीटों पर होने वाले उपचुनाव में सबसे बड़ा इम्तिहान विपक्षी एकता का होगा। विपक्षी दलों ने साझा प्रत्याशी उतारा तो भविष्य में गैर भाजपा गठबंधन की नींव पड़ सकती है। सभी दलों के अलग-अलग प्रत्याशी आए तो 2019 में विपक्ष की राह आसान नहीं रहेगी।
 
उपचुनाव में भाजपा के सामने जहां दोनों संसदीय सीटें बरकरार रखने के साथ ही जीत का अंतर बढ़ाने की चुनौती रहेगी, वहीं विपक्ष के लिए यह एकता प्रदर्शित करने का मौका हो सकता है।

मुख्य विपक्षी दलों में सपा, बसपा के साथ कांग्रेस भी भाजपा के खिलाफ बड़े गठबंधन की पक्षधर हैं। कांग्रेस और सपा तो पटना में लालू प्रसाद यादव की भाजपा भगाओ-देश बचाओ रैली में भी शामिल हो चुकी हैं।

राहुल गांधी और सीएम योगी

बसपा आम तौर पर उपचुनाव लड़ने से बचती रही है। गोरखपुर व फूलपुर के उपचुनाव में बसपा का स्टैंड क्या होगा, यह तो अभी साफ नहीं है लेकिन मायावती सिद्धांत रूप में भाजपा के खिलाफ गठबंधन की हिमायत कर चुकी हैं।

वह चाहती है कि विपक्ष के संयुक्त अभियान से पहले सीटों का बंटवारा हो जाए। सीटों पर कोई बातचीत नहीं होने के कारण ही उन्होंने पटना रैली से दूरी बनाए रखी। उपचुनावों में अभी वक्त है। ऐसे में देखना होगा कि तब तक विपक्षी एका की कोशिशें आगे बढ़ती हैं या नहीं।

यदि बसपा ने चुनाव नहीं लड़ा और सपा या कांग्रेस उम्मीदवारों का समर्थन नहीं किया तो इसका अच्छा संदेश नहीं जाएगा। यदि सपा और बसपा एक-एक सीट पर चुनाव लड़ें तो विपक्षी एका की संभावना बढ़ेगी।

सपा-कांग्रेस में सहमति बनने के आसार

अभी तक के हालात के हिसाब से उपचुनावों में भाजपा के खिलाफ साझा प्रत्याशी उतारने पर सपा और कांग्रेस में सहमति बन सकती है। विधानसभा चुनाव में सपा-कांग्रेस गठबंधन को झटका लगने के बावजूद सपा मुखिया अखिलेश यादव इसे बरकरार रखने के पक्ष में हैं।

वह कहते रहे हैं कि राहुल और उनकी दोस्ती लंबी चलेगी। हालांकि राजनीति के जानकारों का मानना है कि बसपा के सक्रिय समर्थन के बिना सपा-कांग्रेस उपचुनावों में उलटफेर करने की स्थिति में नहीं रहेंगी। 

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