2017 जा रहा है और इस साल हमने खो दिया ऐसे कई शख्सियतों को, जो कई सालों से भारत का नाम दुनियाभर में मशहूर कर रहे थे. इस साल सबसे ज्यादा दुख भरी खबर संगीत, कला और रंगमंच की दुनिया से आई. ओम पुरी, विनोद खन्ना, गिरिजा देवी और शशि कपूर जैसे बड़ी शख्सियतों ने इस दुनिया से विदा ली. आइए जानते हैं उन हस्तियों के बारे में जो गुजर जाने के बाद भी हमारी यादों में जिंदा रहेंगे….
शशि कपूर: हिंदी सिनेमा और रंगमंच के दिग्गज अभिनेता शशि कपूर का 4 दिसंबर को 79 साल की उम्र में निधन हो गया. पिछले काफी समय से वे बीमार चल रहे थे. मुंबई के कोकिलाबेन अस्पताल में उन्होंने अंतिम सांस ली. उनको पिछले कई वर्षों से किडनी की समस्या थी. वे कई सालों से डायलिसिस करा रहे थे. उनका जन्म 18 मार्च 1938 को कोलकाता में हुआ था. उनके निधन पर राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद, पीएम नरेंद्र मोदी समेत कई राजनीतिक और बॉलीवुड की हस्तियों ने शोक जताया. 60 और 70 के दशक में उन्होंने जब-जब फूल खिले, कन्यादान, शर्मीली, आ गले लग जा, रोटी कपड़ा और मकान, चोर मचाए शोर, दीवार कभी-कभी और फकीरा जैसी कई हिट फिल्में दी. साल 2011 में शशि कपूर को भारत सरकार ने पद्म भूषण से सम्मानित किया था. 2015 में उन्हें दादा साहेब पुरस्कार भी मिल चुका था. शशि ने एक्टिंग में अपना करियर 1944 में अपने पिता पृथ्वीराज कपूर के पृथ्वी थिएटर के नाटक ‘शकुंतला’ से शुरू किया था. उन्होंने फिल्मों में भी अपने एक्टिंग की शुरुआत बाल कलाकार के रूप में की थी. आकर्षक व्यक्तित्व वाले शशि कपूर के बचपन का नाम बलबीर राज कपूर था.
ओम पुरी:2017 की शुरुआत ने ही हमसे एक बेहतरीन अभिनेता छिन लिया. बॉलीवुड के जाने-माने अभिनेता ओम पुरी का 66 साल की उम्र में 6 जनवरी की सुबह निधन हो गया. उनकी मृत्यु की वजह दिल का दौरा पड़ना बताई गई. हालांकि पोस्टमार्टम की रिपोर्ट से उनकी मौत की वजह पर विवाद हुआ. ओम पुरी अपने करियर में 300 से ज्यादा फिल्मों में काम किया. ओम पुरी अभिनय के हर फन के माहिर माने जाते रहे थे. उन्होंने हॉलीवुड की फिल्मों में भी काम किया है. ओम पुरी को पद्मश्री पुरस्कार से भी नवाजा गया था. ओमपुरी पिछले कई वर्षों से अभिनय के क्षेत्र में सक्रिय थे. ओम पुरी थिएटर की दुनिया का भी एक बड़ा नाम रहे हैं. ओम पुरी का जन्म 18 अक्टूबर 1950 में अम्बाला में हुआ था. ओम पुरी ने अपने फिल्मी सफर की शुरुआत मराठी नाटक पर आधारित फिल्म ‘घासीराम कोतवाल’ से की थी. 1980 में आई ‘आक्रोश’ ओम पुरी के सिने करियर की पहली हिट फिल्म साबित थी. 1976 में पुणे फिल्म संस्थान से प्रशिक्षण प्राप्त करने के बाद ओमपुरी ने लगभग डेढ़ वर्ष तक अभिनय पढ़ाया. उन्होंने अपने निजी थिएटर ग्रुप ‘मजमा’ की स्थापना की. अपनी जिंदगी में ओम पुरी कई विवादों में भी घिरे रहे. पर्सनल लाइफ को लेकर भी कंट्रोवर्सी में घिरे रहे. हालांकि अभिनय की क्षेत्र में वह एक ध्रुव तारा साबित हुए हैं.
गिरिजा देवी:ठुमरी गायिका गिरिजा देवी का 24 अक्टूबर की रात कोलकाता में दिल का दौरा पड़ने से निधन हो गया. पिछले कई दिनों से बीएम बिड़ला नर्सिंग होम में उनका इलाज चल रहा था. गिरिजा देवी को ठुमरी क्वीन के नाम से भी जाना जाता है. उनके निधन पर पीएम नरेंद्र मोदी ने ट्वीट करते हुए लिखा था कि ”क्लासिकल सिंगर का ऐसे जाना भारतीय संगीत के लिए क्षति है. क्लासिकल संगीत के क्षेत्र में उनके योगदान को हमेशा याद रखा जाएगा.” बनारस घराने की शास्त्रीय गायिका गिरजिा देवी को शास्त्रीय संगीत के साथ ही ठुमरी गाने में भी महारथ हासिल थी. 1972 में गिरिजा देवी को पद्म श्री अवॉर्ड से सम्मानित किया गया था. 1989 में उन्हें पद्म भूषण और 2016 में पद्म विभूषण से सम्मानित किया गया था. गिरिजा देवी के साथ एक युग का अंत हो गया, लेकिन उनकी गायिकी जिंदा रहेगी.
कुंदन शाह:मशहूर फिल्म डायरेक्टर और राइटर कुंदन शाह का 7 अक्टूबर को दिल का दौरा पड़ने से निधन हो गया. उन्होंने मुंबई स्थित बांद्रा इलाके में अपने घर पर अंतिम सांस ली. कुंदन शाह 69 साल के थे. उन्होंने कई बेहतरीन फिल्में और लोकप्रिय टीवी शोज बनाए थे.1983 की अपनी मोस्ट पॉपुलर फिल्म जाने भी दो यारों और टीवी सीरीज नुक्कड़ से मशहूर हुए. कुंदन शाह ने पुणे FTII से डायरेक्शन का कोर्स किया था. उन्हें कॉमेडी फिल्में और नाटक बनाने में महारत हासिल थी. उन्होंने कभी हां, कभी ना, क्या कहना, खामोश, हम तो मोहब्बत करेगा, दिल है तुम्हारा जैसी फिल्मों को डायरेक्ट किया. कुंदन शाह को फिल्म कभी हां, कभी ना के लिए बेस्ट मूवी का फिल्मफेयर अवॉर्ड मिला. वह बहुचर्चित फिल्म जाने भी दो यारों के लिए नेशनल अवॉर्ड से सम्मानित किए गए. उन्होंने पॉपुलर टीवी सीरीज नुक्कड़, वागले की दुनिया और परसाई कहते हैं जैसे सीरियल्स बनाए. नवंबर 2015 में कुंदन शाह ने एक बड़ा ऐलान किया था जिसके बाद वह सुर्खियों में आए थे. देश में छाए असहिष्णुता विवाद पर प्रदर्शन करते हुए उन्होंने 23 निर्देशकों के साथ नेशनल अवॉर्ड को लौटाने की घोषणा की थी.
टॉम ऑल्टर:जाने-माने एक्टर टॉम ऑल्टर का 29 सितंबर को निधन हो गया है, वे कैंसर से जूझ रहे थे. टॉम को एक प्रकार का स्किन कैंसर था. ऑल्टर कैंसर की चौथी स्टेज में थे. मुंबई के सैफी अस्पताल में इनका इलाज चल रहा था. 67 साल की उम्र में निधन हो गया है. टॉम ऑल्टर ने सिर्फ टीवी और फिल्मों में ही नहीं, थियेटर में भी लंबे समय तक काम किया है. टॉम ने 1974 में फिल्म एंड टेलीविजन इंस्टीट्यूट ऑफ पुणे से एक्टिंग में ग्रेजुएशन के दौरान गोल्ड मेडल हासिल किया था. 67 साल के टॉम ने टीवी शोज के अलावा 300 के करीब फिल्मों में भी काम किया है. उन्हें खासतौर पर मशहूर टीवी शो जुनून में उनके किरदार केशव कल्सी के लिए जाना जाता है. 1990 के दशक में यह टीवी शो लगातार पांच साल तक चला था. 1980 से 1990 के दौरान टॉम एक स्पोर्ट्स जर्नलिस्ट भी रहे हैं. इतना ही नहीं उनके नाम एक और उपलब्धि है. वह टीवी पर सचिन तेंदुलकर का इंटरव्यू लेने वाले वह पहले व्यक्ति थे.ऑल्टर ने तीन किताबें भी लिखी हैं 2008 में उन्हें कला और सिनेमा के क्षेत्र में योगदान के लिए पद्म श्री अवॉर्ड भी दिया गया था. बता दें इंडियन-अमेरिकन एक्टर टॉम ऑल्टर का जन्म मसूरी में हुआ था और उनकी परवरिश भी वहीं हुई. उन्होंने 1976 की धर्मेंद्र की फ़िल्म ‘चरस’ से बॉलीवुड में डेब्यू किया था. 1977 में ऑल्टर ने नसीरुद्दीन शाह के साथ मिलकर मोल्टे प्रोडक्शन के नाम से एक थियेटर ग्रुप बनाया था. वह थियेटर में लगातार सक्रिय रहे हैं. उनकी खास फिल्मों की बात करें, तो इनमें परिंदा, शतरंज के खिलाड़ी और क्रांति जैसी फिल्में शामिल हैं.
शकीला: गुजरे जमाने की मशहूर अभिनेत्री शकीला का भी इस साल निधन हो गया है. वो 82 साल की थी. ब्लैक एंड व्हाइट सिनेमा के दौरान उनका रुतबा किसी सुपरस्टार से कम नहीं था. वो गुरुदत्त के साथ आर-पार और सीआईडी फिल्मों में नजर आई थीं. वो बहुत ख़ूबसूरत थीं. परियों की रानी के तौर पर मशहूर थीं. हार्ट अटैक की वजह से उनका निधन हुआ. शकीला 50 के दशक में बेहद मशहूर थीं. उन्हें जिन लोकप्रिय गानों के लिए आज तक याद किया जाता है उनमें – बाबूजी धीरे चलना, नींद णा मुझको आए लेके पहला-पहला प्यार शामिल है.
मार्शल अर्जन सिंह:वायु सेना के मार्शल अर्जन सिंह का 16 सितंबर को निधन हो गया. वह 98 वर्ष के थे. अर्जन सिंह को जब वायु सेना प्रमुख बनाया गया था तो उनकी उम्र उस वक्त महज 44 साल थी और आजादी के बाद पहली बार लड़ाई में उतरी भारतीय वायुसेना की कमान उनके ही हाथ में थी. पीएम नरेंद्र मोदी ने भी ट्वीट कर उनके निधन पर शोक जताया था. भारतीय सैन्य इतिहास के नायक रहे अर्जन सिंह ने 1965 की लड़ाई में भारतीय वायुसेना का नेतृत्व किया था. चीन के साथ 1962 की लड़ाई के बाद 1963 में उन्हें वायु सेना उप-प्रमुख बनाया गया था. एक अगस्त 1964 को जब वायु सेना अपने आप को नई चुनौतियों के लिए तैयार कर रही थी, उस समय एयर मार्शल के रूप में अर्जन सिंह को इसकी कमान सौंपी गई थी.अर्जन सिंह सेना के 5 स्टार रैंक अफसर थे. देश में पांच स्टार वाले तीन सैन्य अधिकारी रहे थे, जिनमें से फील्ड मार्शल सैम मानेकशॉ और फील्ड मार्शल के एम करियप्पा का नाम है, ये दोनों भी जीवित नहीं हैं. ये तीनों ही ऐसे सेनानी रहे, जो कभी सेना से रिटायर नहीं हुए. मार्शल अर्जन सिंह का जन्म 15 अप्रैल 1919 को लायलपुर (फैसलाबाद, पाकिस्तान) में हुआ था और उन्होंने अपनी शिक्षा पाकिस्तान के मोंटगोमरी से पूरी की थी. अर्जन सिंह 19 वर्ष की उम्र में पायलट ट्रेनिंग कोर्स के लिए चुने गए थे. अर्जन सिंह ने आजादी के दिन यानी 15 अगस्त 1947 को वायु सेना के 100 से भी अधिक विमानों के लाल किले के ऊपर से फ्लाइ-पास्ट का भी नेतृत्व किया था. पाकिस्तान के खिलाफ जंग में उनकी भूमिका के बाद वायु सेना प्रमुख के रैंक को बढ़ाकर पहली बार एयर चीफ मार्शल किया गया, उन्हें नागरिक सम्मान पद्म विभूषण से भी सम्मानित किया गया था.
पीपी राव:सुप्रीम कोर्ट के वरिष्ठ वकील और संविधान के जानकार पीपी राव यानी पवानी परमेश्वरा राव का निधन 13 सितंबर को हो गया. अपनी करियर में पीपी राव ने कई बड़े केस को लड़ा. इसमें 1992 में बाबरी मस्जिद विध्वंस के बाद चार राज्यों में राष्ट्रपति शासन लगाने के फैसले का बचाव शामिल है. उनका जन्म 1 जुलाई 1933 को हुआ और वे 84 वर्ष के थे. उन्होंने हैदराबाद की उस्मानिया यूनिवर्सिटी से एलएलबी और एलएलएम की डिग्री ली थी. वे केशवानंद भारती, एसआर बोमई, उन्नीकृष्णन बनाम आंध्र प्रदेश, टीएमए पाई और पीए ईनामदार जैसे बड़े केसों से जुड़े रहे थे. 1991 में उन्हें सुप्रीम कोर्ट बार असोसिएशन का अध्यक्ष चुना गया था. 2006 में उन्हें पद्म विभूषण का सम्मान मिला. 2014 में वे लोकपाल चयन समिति में न्यायिक सदस्य के रूप में शामिल हुए थे.
गौरी लंकेश: दक्षिणपंथी कट्टरपंथ की प्रत्यक्ष आलोचक और निर्भिक वरिष्ठ पत्रकार गौरी लंकेश की बंगलुरू में 5 सितंबर को गोली मारकर हत्या कर दी गई. चार अज्ञात हमलावरों ने राज राजेश्वरी इलाके में स्थित गौरी के घर के बाहर उन पर काफी करीब से फायरिंग की, जिससे मौके पर ही उनकी मौत हो गई. गौरी लंकेश साप्ताहिक मैग्जीन ‘लंकेश पत्रिके’ की संपादक थीं. इसके साथ ही वो अखबारों में कॉलम भी लिखती थीं. टीवी न्यूज चैनल डिबेट्स में भी वो एक्टिविस्ट के तौर पर शामिल होती थीं. लंकेश के दक्षिणपंथी संगठनों से वैचारिक मतभेद थे. वहीं दिसंबर महीने में गौरी लंकेश की हत्या के मामले में SIT टीम ने दो लोगों को गिरफ्तार किया है. गिरफ्तार लोगों में सुपारी किलर शशिधर और उसे हथियार की सप्लाई करने वाला ताहिर शामिल है.
एस. पॉल:रघु राय के बड़े भाई और फोटोग्राफी के मास्टर एस. पॉल उर्फ पॉल साहब का 88 वर्ष की आयु में 16 अगस्त को निधन हो गया. एस. पॉल पिछले 65 साल से फोटोग्राफी कर रहे थे. फोटोग्राफी के लिए मिलने वाले कई पुरस्कार इनके नाम हैं. 1971 में निकॉन इंटरनैशनल फोटो कॉन्टेस्ट जीतने वाले वह पहले भारतीय भी हैं. पॉल साहब की फोटोग्राफी 1953 से शुरू होती है. तब वो अपने परिवार के साथ शिमला में रहते थे. पॉल साहब और उनका परिवार भी 1947 में हुए बंटवारे का शिकार बना था. तब उनका परिवार पाकिस्तान के लाहौर से निकलकर हिंदुस्तान के शिमला में बस गया. अबके एस. पॉल तब शर्मपाल थे. वो हिमाचल सरकार में एक सरकारी मुलाजिम थे लेकिन फोटोग्राफी का भूत सवार था. एक शाम उन्होंने एक कैमरा, रोल, ट्राईपॉड और फोटोग्राफी सिखाने वाली एक किताब खरीदी. फोटोग्राफर एस. पॉल को देश के जानेमाने अंग्रेजी अखबार इंडियन एक्सप्रेस में 24 साल तक सेवाएं देने का मौका मिला. लेकिन सेवा से मुक्त होने के बाद भी वो लगातार फोटोग्राफी कर रहे थे. उनका कैमरा कभी नहीं रुका. अपने नाम के बारे उन्होंने आजतक के पत्रकार विकास को बताया था कि शर्मपाल थोड़ा लंबा नाम लगता था, मुझे. पहले मैंने इसे एस.पाल बनाया. फिर बाद में थोड़ा और प्रयोग किया और अपने नाम को एस. पॉल कर दिया.
सीताराम पंचाल:पान सिंह तोमर और पीपली लाइव जैसी फिल्मों में दिखे एक्टर सीताराम पंचाल का 10 अगस्त को निधन हो गया. वह पिछले चार साल से किडनी और लंग कैंसर से जूझे रहे थे. इस दौरान उनका वजन घटकर 30 किलो रह गया था. सीताराम पंचाल ने स्लमडॉग मिलेनियर, द लीजेंड ऑफ भगत सिंह, जॉली एलएलबी, सारे जहां से महंगा, हल्ला बोल, बैंडिट क्वीन जैसी फिल्में भी की थीं. अंतिम दिनों में वह आर्थिक तंगी से गुजर रहे थे. इस वजह से उन्होंने महंगा इलाज छोड़कर आयुर्वेद से अपना उपचार करने की कोशिश की थी. पांचाल ने अश्विनी चौधरी की डेब्यू हरियाणवी फिल्म लाडो में काम किया था जिसे नेशनल अवॉर्ड मिला था. सीताराम पांचाल का जन्म हरियाणा के कैथल जिले के डूंडर हेड़ी गांव में 1963 में हुआ था. उन्होंने हरियाणवी फिल्म लाडो के अलावा छन्नो में भी काम किया. ग्रेजुएशन के बाद दिल्ली के नेशनल स्कूल ऑफ ड्रामा में उनका सिलेक्शन हो गया था. उसके बाद से वे हिंदी फिल्मों में अलग अलग चरित्र भूमिकाओं में दिखते रहे थे.
उस्ताद सईदुद्दीन डागर:प्रसिद्ध ध्रुपद गायक उस्ताद सईदुद्दीन डागर का 30 जुलाई को निधन हो गया है. उनका संक्षिप्त बीमारी के बाद एक निजी अस्पताल में निधन हो गया. अलवर में 20 अप्रैल 1939 को प्रख्यात शास्त्रीय गायकों के घराने में सईदुद्दीन का जन्म हुआ था. उनके परिवार को हिंदुस्तानी शास्त्रीय गायिकी के एक आयाम ध्रुपद के लिये जाना जाता था. डागर ध्रुपद संगीत के इस प्रख्यात घराने की 19वीं पीढ़ी का प्रतिनिधित्व करते थे. इस घराने की स्थापना जयपुर के बेहराम खान डागर ने की थी. डागर ने पांच दशकों तक अपनी यादगार प्रस्तुतियों से ध्रुपद गायन शैली की ऐतिहासिक परम्परा को जीवित रखा थाउन्होंने देश विदेश में कई प्रतिष्ठित मंच पर अपनी कला का प्रदर्शन किया था. संगीत की शिक्षा उन्होंने अपने पिता हुसैनुद्दीन डागर उर्फ तानसेन पांडे से ली थी. उनके गायन में स्वरावलियों का अद्भुत अलंकरण होता थाउनके दो बेटे नफीसुद्दीन और अनीसुद्दीन डागर घराने की 20वीं पीढ़ी का प्रतिनिधित्व कर रहे हैं और ध्रुपद परंपरा को आगे बढ़ा रहे हैं.
यशपाल- 24 जुलाई भारत के मशहूर वैज्ञानिक और शिक्षाविद् प्रोफेसर यशपाल का निधन हो गया है. वे 90 साल के थे. यशपाल ने देश में वैज्ञानिक प्रतिभाओं को निखारने में विशेष योगदान दिया था. इसे देखते हुए भारत सरकार ने उन्हें साल 2013 में पद्म विभूषण से सम्मानित किया था. इससे पहले उन्हें साल 1976 में पद्म भूषण से भी नवाजा गया था. यशपाल ने पंजाब यूनिवर्सिटी से साल 1949 में फिजिक्स से ग्रेजुएशन किया और फिर साल 1958 में मैसेचुसेट्स इंस्टीट्यूट ऑफ टेकनोलॉजी से फिजिक्स में ही PHD की. यशपाल ने अपने करियर की शुरुआत टाटा इंस्टीट्यूट ऑफ फंडामेंटल रिसर्च से की थी. 1973 में सरकार ने उन्हें स्पेस एप्लीकेशन सेंटर का पहला डॉयरेक्टर नियुक्त किया गया. 1983-84 में वे प्लानिंग कमीशन के चीफ कंसल्टेंट भी रहे. विज्ञान व तकनीकी विभाग में वो सचिव रहे. इसके अलावा उन्हें विश्वविद्यालय अनुदान आयोग में अध्यक्ष की जिम्मेदारी भी दी गई. यशपाल दूरदर्शन पर टर्निंग पाइंट नाम के एक साइंटिफिक प्रोग्राम को भी होस्ट करते थे. शिक्षा के क्षेत्र में उनके रुझान और आइडियाज को देखते हुए साल 1986 से 1991 के बीच यशपाल को यूजीसी का चेयरमैन नियुक्त किया गया. साल 1970 में यशपाल के होशंगाबाद साइंस टीचिंग प्रोग्राम को खूब सराहना मिली. NCERT ने जब नेशनल करीकुलम फ्रेमवर्क बनाया, तब यशपाल को इसका चेयरपर्सन बनाया गया. हायर एजुकेशन में मानव संसाधन मंत्रालय ने 2009 में यशपाल कमेटी बनाई. कमेटी ने हायर एजुकेशन में काफी बदलाव के सुझाव दिए.
रीमा लागू:बॉलीवुड की स्टार मॉम रीमा लागू 17 मई को 59 साल की उम्र में इस दुनिया को अलविदा कह गईं. फिल्मों में एक सशक्त मां का किरदार निभाने वाली रीमा लागू ने यूं तो कई चुनिंदा फिल्मों में काम किया लेकिन फिल्म ‘वास्तव’ में उनके काम को खूब सराहा गया. इस फिल्म के एक सीन की शूटिंग के दौरान रीमा लागू बुरी तरह घबरा गई थीं. फिल्म ‘मैंने प्यार किया’, ‘आशिकी’, ‘साजन’, ‘हम आपके हैं कौन’, ‘वास्तव’, ‘कुछ कुछ होता है’ और ‘हम साथ साथ हैं’ जैसी कई फिल्मों में रीमा मां का किरदार निभाया, जिसे दर्शकों ने खूब पसंद किया. टीवी पर सीरियल ‘श्रीमान जी श्रीमती जी’, ‘तू तू मैं मैं’ में सास-बहू की लड़ाई को लोगों ने खूब पसंद किया, जिसमें वह सास के किरदार में थीं. रीमा लागू को बॉलीवुड में 90 के दशक से शुरू हुई नए जमाने की मां के रूप में याद किया जाएगा. वह सलमान खान की मां के रोल में दिखी थीं. ‘मैंने प्यार किया’ में सलमान खान की मां के किरदार के साथ उनको भी एक पहचान मिली थी. 1970 के आखिरी और 1980 की शुरुआत में उन्होंने हिंदी और मराठी फिल्मों में काम शुरू किया. उन्होंने मराठी एक्टर विवेक लागू से शादी की. हालांकि कुछ साल बाद ही दोनों अलग हो गए. उनकी एक बेटी भी है. रीमा लागू बेस्ट सपोर्टिंग एक्ट्रेस के लिए चार बार फिल्मफेयर अवॉर्ड जीता.
विनोद खन्ना:विनोद खन्ना का 27 अप्रैल को निधन हो गया. वे 70 साल के थे. पिछले कुछ दिनों से वे कैंसर से जूझ रहे थे. गुरुदासपुर से सांसद खन्ना ने मुंबई के रिलायंस फाउंडेशन अस्पताल में अंतिम सांस ली. विनोद खन्ना का निधन ब्लैडर कैंसर की वजह से हुआ. विनोद खन्ना ने 1971 में सोलो लीड रोल में फिल्म ‘हम तुम और वो’ में काम किया था. विनोद खन्ना ने राजनीति में भी सफल पारी खेली. एक वक्त में वे बीजेपी के स्टार प्रचारक थे. विनोद खन्ना ने ‘मेरे अपने’, ‘कुर्बानी’, ‘पूरब और पश्चिम’, ‘रेशमा और शेरा’, ‘हाथ की सफाई’, ‘हेरा फेरी’, ‘मुकद्दर का सिकंदर’ जैसी कई शानदार फिल्में की. विनोद खन्ना का नाम ऐसे एक्टर्स में शुमार था जिन्होंने शुरुआत तो विलेन के किरदार से की थी लेकिन बाद में हीरो बन गए. विनोद खन्ना ने 1971 में सोलो लीड रोल में फिल्म ‘हम तुम और वो’ में काम किया था. विनोद खन्ना का जन्म 7 अक्टूबर, 1946 में पेशावर, पाकिस्तान में हुआ था लेकिन विभाजन के बाद इनका परिवार मुंबई आकर बस गया था.
कवि कुंवर नारायण: कवि कुंवर नारायण का 90 साल की उम्र में निधन हो गया है. कुंवर नारायण की गिनती हिंदी के दिग्गज कवियों में की जाती है. उनकी कविता में मिथक, इतिहास, परंपरा और आधुनिकता का मेल नजर आता है. उन्होंने अपनी रचनाशीलता में वर्तमान को इतिहास और मिथक के जरिए ही देखा. कुंवर नारायण का जन्म 19 सितंबर 1927 को हुआ था. कुंवर नारायण ने लखनऊ यूनिवर्सिटी से इंग्लिश लिटरेचर में पोस्ट ग्रेजुएशन किया और अपने पुश्तैनी ऑटोमोबाइल के बिजनेस में घरवालों के साथ शामिल हो गए थे. कुंवर नारायण कविता के साथ कहानी, लेख, समीक्षा, रंगमंच पर लिखते रहे हैं. वो 6 दशक से साहित्यिक लेखन कर रहे हैं. उनकी पहली किताब ‘चक्रव्यूह’ साल 1956 में आई थी. कुंवर को भारतीय साहित्य के लिए दिए जाने वाले सर्वोच्च पुरस्कार ‘ज्ञानपीठ पुरस्कार’ से भी सम्मानित किया गया था. साल 1995 में उन्हें साहित्य अकादमी और साल 2009 में उन्हें पद्म भूषण अवार्ड मिला था. कुंवर ने साहित्य की कई विधाओं जैसे कविता, कहानियां, महाकाव्य, आलोचना, निबंध, सिनेमा और कला पर अत्यधिक लेखन किया.
कंवर पाल सिंह गिल:सुपर कॉप के नाम से चर्चित पुलिस अधिकारी रहे कंवर पाल सिंह गिल का 26 मई को निधन हो गया. 82 वर्ष की अवस्था में दिल्ली के गंगाराम अस्पताल में उन्होंने आखिरी सांस ली. सुपरकॉप केपीएस गिल का पूरा नाम कंवर पाल सिंह गिल है. 1958 में उन्होंने 24 साल की अवस्था में भारतीय पुलिस सेवा ज्वॉइन की. गिल को असम-मेघालय काडर मिला. पंजाब में आतंकवाद के खात्मे और अपनी आक्रामक नीतियों के लिए केपीएस गिल को खूब चर्चा मिली. दिलचस्प बात ये है कि असम में अपनी दशक भर की सेवा के दौरान गिल किसी एनकाउंटर का हिस्सा नहीं रहे. असम के कामरूप जिले में उनकी कठोर नीतियों की वजह से केपीएस गिल को ‘कामरूप पुलिस सुपरिटेंडेंट गिल’ कहा जाता था. 1988 में गृह सचिव की मेजबानी एक पार्टी का आयोजन किया गया. इस पार्टी में गिल पर एक वरिष्ठ महिला आईएएस अधिकारी के साथ दुर्व्यवहार करने का आरोप लगा. वह उस समय वित्त सचिव के रूप में काम कर रही थीं. मामले में 17 साल बाद गिल को दोषी ठहराया गया. मगर बाद में उनकी सजा कम कर दी गई. 2008 में केपीएस गिल की अगुवाई वाले भारतीय हॉकी महासंघ में भ्रष्टाचार के आरोपों के बाद भारतीय ओलंपिक संघ ने आईएचएफ को सस्पेंड कर दिया. 1989 में सिविल सर्विस में अपने योगदान के लिए केपीएस गिल को पद्मश्री से नवाजा गया. 2002 के गुजरात दंगे के बाद तत्कालीन मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी ने केपीएस गिल को राज्य का सुरक्षा सलाहकार नियुक्त किया. 2006 में नक्सलियों से निपटने के लिए छत्तीसगढ़ सरकार ने गिल से सुरक्षा सलाहकार के तौर पर मदद मांगी. गिल ने ‘द नाइट्स ऑफ फाल्सहुड’ नामक एक किताब भी लिखी है. केपीएस गिल फॉल्टलाइन्स नाम की पत्रिका प्रकाशित करते थे और इंस्टीट्यूट ऑफ कन्फ्लिक्ट मैनेजमेंट (आईसीएम) नाम की संस्था भी चलाते थे.
सुरजीत सिंह बरनाला:पंजाब के पूर्व मुख्यमंत्री और तमिलनाडु, आंध्र प्रदेश और उत्तराखंड के राज्यपाल रह चुके सुरजीत सिंह बरनाला का चंडीगढ़ में 14 जनवरी को निधन हो गया, वह 91 वर्ष के थे. साल 1985-1987 के बीच पंजाब के मुख्यमंत्री रह चुके बरनाला को अस्वस्थ होने पर चंडीगढ़ के पोस्ट ग्रेजुएट इंस्टीट्यूट ऑफ मेडिकल रिसर्च (पीजीआईएमईआर) में भर्ती कराया गया था, जहां शनिवार को उन्होंने अंतिम सांस ली.
इंदर कुमार:सलमान खान के करीबी दोस्त और फिल्म व टीवी एक्टर इंदर कुमार कर निधन 28 जुलाई को हो गया. 44 साल के इस एक्टर को आधी रात दिल का दौरा पड़ा था. उस समय वह मुंबई के अंधेरी स्थित अपने घर पर थे. इंदर कुमार ने 90 के दशक से अपना करियर शुरू किया था. वह अक्षय कुमार के साथ खिलाड़ियों के खिलाड़ी तो सलमान खान के साथ वॉन्टेड में नजर आए थे. इसके अलावा छोटे पर्दे पर वह क्योंकि सास भी कभी बहू थी में मिहिर के रोल में भी नजर आ चुके हैं. उनकी पूर्व पत्नी के अनुसार इंदर कुमार को ड्रग्स और एल्कोहल की आदत थी. सोनल ने बताया कि उन्होंने इंदर को यह सब करने से रोका भी था, लेकिन वो माने नहीं. वो अपनी ही दुनिया में रहते थे. काम और पैसे की तंगी के चलते इंदर काफी डिप्रेशन में थे. हालांकि इस डिप्रेशन के पीछे एक वजह उन पर चल रहा बलात्कार का मामला भी था. एक 25वर्षीय मॉडल ने साल 2014 में उन पर रेप का आरोप लगाया था.